Monday, 30 December 2019

बदलती परिभाषाएं।



तेजी से बदलते वक्त के साथ उतनी ही तेजी से बदलती जीवन की परिभाषाओं के चलते अब समय है खुद को बदलने का, अपनी सीमित सोच को बदलने का, अपनी सोच के दायरे को बढ़ाने का। साल खत्म होने को है। दिन महीना साल कैसे गुजर जाता है, कुछ पता ही नही चलता। समय के साथ-साथ जीवन बदलता जाता है। सही भी है। आखिर बदलाव का नाम ही तो ज़िन्दगी है। मैंने अब तक अपने जीवन में बहुत से बदलाव देखे, समझे फिर उसके अनुसार स्वयं को बदला। अब फिर समय बदलने को है। साल बदलेगा तो सोच बदलेगी, फिर नव जीवन का संचार होगा। अब यह बदलाव किस-किस के लिए सुखद और किस-किस के लिए दुखद होगा यह तो राम ही जाने।

खैर समय अनुसार सबको धीरे धीरे अपने हिस्से का सच पता चल ही जायेगा। यूँ भी दुनिया तेजी से बदल रही है और दुनिया के साथ -साथ तेजी से बदल रहे है बच्चे। आज के युग का कोई भी बच्चा पुरानी मान्यताओं में विश्वास नही रखता। सभी का अपने जीवन के प्रति एक अलग ही दृष्टिकोण हैं। और जैसा कि मैंने पहले ही कहा कि परिवर्तन का दूसरा नाम ही जीवन है। जिसे हम चाहें ना चाहे, हमें अपनाना ही पड़ता है। लेकिन दो पीढ़ियों से बीच का अंतर जिसे अंग्रेजी में (जनरेशन गेप) कहते है कि परिभाषाओं में भी इतना बड़ा बदलाव आगया है कि जिसे आसानी से समझ पाना शायद हर अभिभावक के लिए आसान नही होगा।

ऐसा मैं अपने अनुभव से ही कह रही हूँ। आज जब कभी में अपने युवा होते बच्चे और उसके दोस्तों की सोच को जानने और समझने का प्रायस करती हूँ तो मुझे लगता है बदलने की जरूरत इन बच्चों को नही बल्कि हम बड़ो को ज्यादा है। जैसे हम ईश्वर को मानते है। हर रोज पूजा पाठ करते हैं। ज्यादा कुछ नही तो कम से कम दीपक और अगरबत्ती लगाकर प्रणाम तो कर ही लेते है। ऐसा करने के पीछे कहीं ना कहीं हमारा यह उधेश्य होता है कि हमारा बच्चा भी यह सब करे क्योंकि बच्चों का मन कोमल होता है और बच्चे जो देखते हैं वैसा ही करते है। ऐसी हमारी सोच है, मान्यता है।

लेकिन वास्तविकता इस सब से बहुत अलग हो चुकी है, बदल चुकी है। आज जब तक बच्चा, बच्चा होता है अर्थात जब तक उसे समझ नही आजाती, बस तभी तक वह आपकी देखा देखी वही सब करता है जो उसके सामने आप करते हो। समझ आते ही उसके मन मस्तिष्क में ऐसे-ऐसे सवाल आते हैं जिनके विषय में आपने शायद कभी सपने में भी सोचा नही होता।

यूँ भी आज के बच्चे टेक्नोलॉजी के बच्चे होते है। जिन्हें अपने माता-पिता के अनुभवों पर कम किन्तु टेक्नॉलजी पर अधिक विश्वास होता है। आज के बच्चों को हर बात का प्रमाण चाहिए होता है। जब तक उन्हें उनकी पूछी गयी बात या उन्हें बतायी गयी बात का प्रमाण नही मिल जाता, तब तक वह अपने माता-पिता के साथ तर्क-वितर्क करते ही रहते है। वह अपने आपको सही और आपको पूरी तरह गलत साबित कर देंने  में अपनी पूरी शक्ति लगा देते है। किन्तु यह मानने को कतई राजी नही होते की जिस विषय वस्तु की वह बात कर रहे होते हैं, उस विषय में उनकी जानकारी और अनुभव दोनो ही कम होते है और फिर शरू होता है तर्क से कुतर्क का सिलसिला। जिसका आभास उस क्षण ना माँ-बाप को होता है ना बच्चों को, उस क्षण गुस्से में माता -पिता का हाथ उठ जाता है या फिर अनजाने में वह अनुचित भाषा का प्रयोग कर बैठते है।

जिसका नतीजा यह होता है कि बच्चों के मन से अपने  माता-पिता के प्रति सम्मान धीरे-धीरे कम होते होते एक दिन खत्म हो जाता है क्योंकि आज का जमाना तो वो रहा नही जब बच्चों को माता-पिता के चरणों में स्वर्ग दिखायी दे। ऐसे में बच्चे खासकर युवा होते बच्चे, यानी हमारे (टीनएजर्स) अपनो से दूर होते चलते जाते है और जब भी कभी कोई बच्चा अपनो से दूर हो जाता है। तब समझ लीजिए उसका भटकाव निश्चित है। यह भटकाव कितना संगीन हो सकता है यह तो सब जानते ही है। यूँ भी अवसाद का दौर है। आज कल कोई भी जीवन से बहुत जल्द हारकर अवसाद का शिकार हो जाता है। फिर चाहे वह बच्चे हों या बड़े। नतीजा आत्महत्या या आपराधिक प्रवृत्ति ही होती है। जिसके कारण आज अपराध भी बहुत तेजी से बढ़ रहे हैं। अब समय है परवरिश की परिभाषाओं को भी बदल डालने का, अब जब बदलते वक़्त के साथ हर चीज बदल रही है तो परिवरिश की परिभाषा को भी बदलना होगा।

आयीये हम सब इस आने वाले नए साल में यह प्रण लें कि अपने बच्चों के उज्वल, सुखद, एवं सुरक्षित भविष्य के लिए हम उन पर अपनी पुरानी सोच और मान्यताओं को जबरदस्ती उन पर ना मढ़ते हुए उनका दोस्त बनकर उनकी सोच को समझने का प्रयास करेंगे, ताकि उनके मन में हमारे प्रति सम्मान के साथ-साथ प्यार भी बना रहे और वह हम से अपने मन की बातें भी बिना किसी डर के आसानी से साँझा कर सकें।