माँ,
माँ क्या होती है यह हम सभी जानते हैं। लेकिन जब तक वह हमारे साथ होती है हमें उसके होने का एहसास नहीं होता, उसके होने की क्द्र नहीं होती और फिर जब वह हमसे दूर चली जाती है तब हमें पता चलता है कि सही मायनो में माँ क्या होती है। माँ से ही तो मायका होता है, वह न हो तो कितना ही स्वादिष्ट खाना क्यूँ हो मगर जाएका कहाँ होता है।
यूं तो हर माँ अपने बच्चों के साथ सदैव खड़ी रहती हैं। लेकिन कुछ माएं ऐसी भी होती है जो इस बात का केवल दिखावा करती है कि वह सदैव अपने बच्चों के साथ हैं। किन्तु समाज के डर से उनके पक्ष में बोल नहीं पाती उल्टा उन्हें भी वही समाज का डर दिखाकर चुप करादेना चाहती हैं। यह जानते हुए भी कि कई मामले ऐसे होते हैं जिसमें उनके बच्चे सही किन्तु समाज गलत होता है। फिर भी समाज कि दुहाई उन्हें अपने ही बच्चों के मन से दूर करती चलती जाती है और उन्हें पता भी नहीं चलता।
लेकिन मैं एक ऐसी माँ से मिली जिसने अपने पति के रहते हुए भी अपने बच्चों का साथ कभी नहीं छोड़ा और पति के चले जाने के बाद भी कभी अपने बच्चों का हाथ और साथ दोनों नहीं छोड़ा। कम से कम इस बेरहम समाज के नाम पर तो कभी ही नहीं छोड़ा। यह बात पढ़ने, कहने में जितनी सहज लगती है। वास्तव में उतनी सहज है नहीं बहुत दम खम चाहिए इस सामज में अपनी ज़िंदगी अपनी शर्तों पर जीने के लिए। हर किसी के बस का नहीं होता यह काम विशेष रूप से एक स्त्री के लिए तो बहुत ही मुश्किल है। लेकिन फिर भी मैंने उन्हें देखा कि किस निर्भीकता से उन्होने अपने बच्चों को पढ़ाया लिखाया उन्हें अपने परों पर खड़ा किया और उन्हें अपनी ज़िंदगी अपने तरीके से जीने कि आज़ादी प्रदान कि या यूं कहिए कि उन्हें वह हौंसला दिया कि वह बिना किसी के विषय में सोचे अपने जीवन को अपने अनुसार जी पाएँ। फिर चाहे वह देर रात बाहर रहना हो, परिधान में फ़ैशन का मामला हो या खाने-पीने, घूमने फिरने की आज़ादी हो। उन्होने जो किया अपने बच्चों के साथ मिलकर किया।इस सब में सबसे बड़ी और अहम बात यह है कि उन्होने अपने बच्चों को जो भी दिया अपने भरोसे के साथ दिया उन पर पूर्णतः विश्वास किया।
लेकिन इस "सो कॉल्ड समाज" में ऐसी आज़ादी को लोग अच्छा नहीं मानते। इसलिए मैंने ऐसा कहा। अपनी शर्तों पर जीने वाला हर व्यक्ति यहाँ बेशर्म, बेहाया, के नाम से जाना जाता है। बिगड़े हुए लोगों में उसका नाम लिया जाता है। ऐसे में यदि एक लड़की की विधवा माँ उसके साथ कंधे से कंधा मिलाकर चले तो उससे बड़ा पापा तो इस समाज में कोई दूजा हो ही नहीं सकता। इसलिए अच्छी ख़ासी पढ़ी लिखी नौकरी पेशा लड़की से कोई महज इसलिए शादी नहीं करना चाहता कि वह बहुत मर्डेन है, ज़बान की तेज़ हैं सही को सही और गलत को गलत कहने की हिम्मत रखती है, इसलिए तेज़ है। जबकि दिखने में भी मोटी, काली, नाटी,और भी न जाने क्या-क्या है ऊपर से फ़ैशन तो देखो उसका बस चले तो कपड़े ही न पहने। ऐसी लड़कियां थोड़ी न घर की बहू बनाने लायक होती है।
क्यूँ भाई ? क्यूंकि ऐसी लड़कियों आप दबा के नहीं रख सकते। उन्हें घरेलू हिंसा का शिकार नहीं बना सकते। उसके माँ-बाप से दहेज की मांग नहीं कर सकते। बस इसलिए ऐसी लड़कियां अच्छे घरों की बहू नहीं बन सकती। है ना ? है तो यही सच कोई माने या न माने। इस सब के चलते लोग उस माँ को भी ताने कसने से बाज़ नहीं आते जिसने हज़ार परेशानियाँ सहने के बावजूद अपने बच्चों को अपने परों पर खड़ा कर दिया। तो ज़ाहिर सी बात है। कोई इतना कब तक सहेगा। आखिर कभी न कभी तो समाज के ताने व्यक्ति का जीना कठिन कर ही देते हैं। बेटी की शादी सही समय पर न हो, तो माँ चाहे जैसी भी हो चिंता तो हो ही जाती है। समाज की परवाह सामने आ ही जाती है और जब अचानक एक दिन खबर आती है, मेरी बेटी की शादी है आप सब ज़रूर आना। तो लोग शादी में शामिल होने से ज्यादा यह देखने पहुँचते हैं कि ऐसी लड़की के लिए लड़का मिला कहाँ से। चलो ज़रा चलकर देखें । कौन है वह महान आत्मा जिसने इस लड़की से शादी करने के लिए हाँ करदी।
खैर लड़की की शादी के बाद बहू की कामना लिए वही माँ जब आलीशान घर बनवाती है। बेटे की नौकरी लगते ही उसे अकेले रहना होगा यह सोचकर अपनी आँखों में बहू के सपने लिए जब उसकी छोटी सी ग्र्हस्ती सजाती है। और बेटे की नौकरी जॉइन करते ही ऐसी बीमार पड़ती है कि एक छोटे से बुखार से कहानी शुरू होकर हमेशा के लिए खतम हो जाती है। सोचिए ज़रा ऐसे में क्या गुज़री होगी उन बच्चों पर जिनके पापा के जाने बाद उनकी माँ ही उनके जीवन में एक लोह पुरुर्ष की भूमिका निभाती है। ऐसा सोचकर ही मेरे तो परों तले ज़मीन निकल जाती हैं। तो उन बच्चों पर क्या बीत रही होगी। यह सोचकर आँख भर आती है। उन्हें देखकर मुझे लगता था कि काश यह मेरी मासी नहीं मेरी अपनी माँ होती तो कितना अच्छा होता। माँ हो तो ऐसी चटक-मटक व्यक्तिव सभी कि परेशानियों में तत्पर खड़े रहना का हौंसला हर किसी में नहीं होता। आज वह हमारे बीच नहीं है। तो यकीन ही नहीं होता कि यह सच है। उनकी फेस्बूक प्रोफ़ाइल, उनका व्ट्स एप नंबर में लगी उनकी तस्वीर जैसे यकीन करने ही नहीं देती कि अब वह हमारे बीच नहीं है। रह-रहकर उनकी बातें यादें आती हैं।जो होंटों पर मुस्कान और आँखों में नमी दे जाती है। "चिट्ठी न कोई संदेश जाने वो कौन सा देश जहां तुम चले गए"
ऐसे व्यक्ति और उसके ऐसे व्यकतित्व को मेरा सलाम और सच्चे दिल से विनम्र श्रद्धांजलि। ईश्वर से यही कामना है कि ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे एवं उनके बच्चों को यह अथाह दुख सहने कि शक्ति प्रादन करे।
ॐ शांति।
माँ क्या होती है यह हम सभी जानते हैं। लेकिन जब तक वह हमारे साथ होती है हमें उसके होने का एहसास नहीं होता, उसके होने की क्द्र नहीं होती और फिर जब वह हमसे दूर चली जाती है तब हमें पता चलता है कि सही मायनो में माँ क्या होती है। माँ से ही तो मायका होता है, वह न हो तो कितना ही स्वादिष्ट खाना क्यूँ हो मगर जाएका कहाँ होता है।
यूं तो हर माँ अपने बच्चों के साथ सदैव खड़ी रहती हैं। लेकिन कुछ माएं ऐसी भी होती है जो इस बात का केवल दिखावा करती है कि वह सदैव अपने बच्चों के साथ हैं। किन्तु समाज के डर से उनके पक्ष में बोल नहीं पाती उल्टा उन्हें भी वही समाज का डर दिखाकर चुप करादेना चाहती हैं। यह जानते हुए भी कि कई मामले ऐसे होते हैं जिसमें उनके बच्चे सही किन्तु समाज गलत होता है। फिर भी समाज कि दुहाई उन्हें अपने ही बच्चों के मन से दूर करती चलती जाती है और उन्हें पता भी नहीं चलता।
लेकिन मैं एक ऐसी माँ से मिली जिसने अपने पति के रहते हुए भी अपने बच्चों का साथ कभी नहीं छोड़ा और पति के चले जाने के बाद भी कभी अपने बच्चों का हाथ और साथ दोनों नहीं छोड़ा। कम से कम इस बेरहम समाज के नाम पर तो कभी ही नहीं छोड़ा। यह बात पढ़ने, कहने में जितनी सहज लगती है। वास्तव में उतनी सहज है नहीं बहुत दम खम चाहिए इस सामज में अपनी ज़िंदगी अपनी शर्तों पर जीने के लिए। हर किसी के बस का नहीं होता यह काम विशेष रूप से एक स्त्री के लिए तो बहुत ही मुश्किल है। लेकिन फिर भी मैंने उन्हें देखा कि किस निर्भीकता से उन्होने अपने बच्चों को पढ़ाया लिखाया उन्हें अपने परों पर खड़ा किया और उन्हें अपनी ज़िंदगी अपने तरीके से जीने कि आज़ादी प्रदान कि या यूं कहिए कि उन्हें वह हौंसला दिया कि वह बिना किसी के विषय में सोचे अपने जीवन को अपने अनुसार जी पाएँ। फिर चाहे वह देर रात बाहर रहना हो, परिधान में फ़ैशन का मामला हो या खाने-पीने, घूमने फिरने की आज़ादी हो। उन्होने जो किया अपने बच्चों के साथ मिलकर किया।इस सब में सबसे बड़ी और अहम बात यह है कि उन्होने अपने बच्चों को जो भी दिया अपने भरोसे के साथ दिया उन पर पूर्णतः विश्वास किया।
लेकिन इस "सो कॉल्ड समाज" में ऐसी आज़ादी को लोग अच्छा नहीं मानते। इसलिए मैंने ऐसा कहा। अपनी शर्तों पर जीने वाला हर व्यक्ति यहाँ बेशर्म, बेहाया, के नाम से जाना जाता है। बिगड़े हुए लोगों में उसका नाम लिया जाता है। ऐसे में यदि एक लड़की की विधवा माँ उसके साथ कंधे से कंधा मिलाकर चले तो उससे बड़ा पापा तो इस समाज में कोई दूजा हो ही नहीं सकता। इसलिए अच्छी ख़ासी पढ़ी लिखी नौकरी पेशा लड़की से कोई महज इसलिए शादी नहीं करना चाहता कि वह बहुत मर्डेन है, ज़बान की तेज़ हैं सही को सही और गलत को गलत कहने की हिम्मत रखती है, इसलिए तेज़ है। जबकि दिखने में भी मोटी, काली, नाटी,और भी न जाने क्या-क्या है ऊपर से फ़ैशन तो देखो उसका बस चले तो कपड़े ही न पहने। ऐसी लड़कियां थोड़ी न घर की बहू बनाने लायक होती है।
क्यूँ भाई ? क्यूंकि ऐसी लड़कियों आप दबा के नहीं रख सकते। उन्हें घरेलू हिंसा का शिकार नहीं बना सकते। उसके माँ-बाप से दहेज की मांग नहीं कर सकते। बस इसलिए ऐसी लड़कियां अच्छे घरों की बहू नहीं बन सकती। है ना ? है तो यही सच कोई माने या न माने। इस सब के चलते लोग उस माँ को भी ताने कसने से बाज़ नहीं आते जिसने हज़ार परेशानियाँ सहने के बावजूद अपने बच्चों को अपने परों पर खड़ा कर दिया। तो ज़ाहिर सी बात है। कोई इतना कब तक सहेगा। आखिर कभी न कभी तो समाज के ताने व्यक्ति का जीना कठिन कर ही देते हैं। बेटी की शादी सही समय पर न हो, तो माँ चाहे जैसी भी हो चिंता तो हो ही जाती है। समाज की परवाह सामने आ ही जाती है और जब अचानक एक दिन खबर आती है, मेरी बेटी की शादी है आप सब ज़रूर आना। तो लोग शादी में शामिल होने से ज्यादा यह देखने पहुँचते हैं कि ऐसी लड़की के लिए लड़का मिला कहाँ से। चलो ज़रा चलकर देखें । कौन है वह महान आत्मा जिसने इस लड़की से शादी करने के लिए हाँ करदी।
खैर लड़की की शादी के बाद बहू की कामना लिए वही माँ जब आलीशान घर बनवाती है। बेटे की नौकरी लगते ही उसे अकेले रहना होगा यह सोचकर अपनी आँखों में बहू के सपने लिए जब उसकी छोटी सी ग्र्हस्ती सजाती है। और बेटे की नौकरी जॉइन करते ही ऐसी बीमार पड़ती है कि एक छोटे से बुखार से कहानी शुरू होकर हमेशा के लिए खतम हो जाती है। सोचिए ज़रा ऐसे में क्या गुज़री होगी उन बच्चों पर जिनके पापा के जाने बाद उनकी माँ ही उनके जीवन में एक लोह पुरुर्ष की भूमिका निभाती है। ऐसा सोचकर ही मेरे तो परों तले ज़मीन निकल जाती हैं। तो उन बच्चों पर क्या बीत रही होगी। यह सोचकर आँख भर आती है। उन्हें देखकर मुझे लगता था कि काश यह मेरी मासी नहीं मेरी अपनी माँ होती तो कितना अच्छा होता। माँ हो तो ऐसी चटक-मटक व्यक्तिव सभी कि परेशानियों में तत्पर खड़े रहना का हौंसला हर किसी में नहीं होता। आज वह हमारे बीच नहीं है। तो यकीन ही नहीं होता कि यह सच है। उनकी फेस्बूक प्रोफ़ाइल, उनका व्ट्स एप नंबर में लगी उनकी तस्वीर जैसे यकीन करने ही नहीं देती कि अब वह हमारे बीच नहीं है। रह-रहकर उनकी बातें यादें आती हैं।जो होंटों पर मुस्कान और आँखों में नमी दे जाती है। "चिट्ठी न कोई संदेश जाने वो कौन सा देश जहां तुम चले गए"
ऐसे व्यक्ति और उसके ऐसे व्यकतित्व को मेरा सलाम और सच्चे दिल से विनम्र श्रद्धांजलि। ईश्वर से यही कामना है कि ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे एवं उनके बच्चों को यह अथाह दुख सहने कि शक्ति प्रादन करे।
ॐ शांति।