स्पेन यात्रा के विषय में लिखा गया मेरा यात्रा वृतांत .... बार्सिलोना -भाग-2 मेरी इस ताज़ा पोस्ट पढ़ने के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें।
मैंने इस blog के जरिये अपने जिन्दगी के कुछ अनुभवों को लिखने का प्रयत्न किया है
Wednesday, 27 November 2013
Monday, 25 November 2013
बार्सिलोना भाग -2
अब बारी थी अगले दिन के कार्यक्रम को बनाने की, पहले दिन जब गाउडी की बनी शानदार इमारत देखी। तब जाकर मन में स्पेन घूमने का थोड़ा उत्साह जागा। हालांकी मुझे तो इतनी शानदार इमारत देखने के बाद भी, मन में हल्की सी निराशा हुई थी। क्योंकि स्पेन जाने से पहले जैसा मैंने इस इमारत के विषय में पढ़ा था और जैसी मेरे मन ने कल्पना की थी, वैसा वहाँ कुछ भी नहीं था। लेकिन जो था, वह शायद मेरी कल्पना से ज्यादा बेहतर था। खैर उस दिन देर रात तक घूमने के बाद जब हम वापस होटल पहुँचे तो पैर जवाब दे रहे थे कि बस अब बहुत हुआ। अब और नहीं चला जाएगा हम से, अगले दिन के लिए कोई छोटी मोटी सी यात्रा का ही चयन करना। वरना हम चलने से इंकार कर देंगे। अब भला ऐसे में हम अपने पैरों की कही हुई बात को नज़र अंदाज़ कैसे कर सकते थे। आखिर हमारे लिए तो सभी एक बराबर है न। क्या दिल क्या दिमाग और क्या पैर, सबकी सुननी पड़ती है भई...
सो अगले दिन “ला रांबला” जाना तय हुआ। सुबह आराम से उठकर नहा धोकर जब स्पेन की गरमागरम धूप में बैठकर नाश्ता किया तो जैसे दिल बाग़-बाग़ हो गया। फिर तरो ताजे मन से हम चले अपनी मंजिल की और “वहाँ पहुँच कर क्या देखते है” कि अरे यह तो यहाँ का लोकल मार्किट है। अर्थात सड़क के एक छोर से दूर कहीं दूसरे छोर तक लगा हुआ बाज़ार है। जैसे अपने दिल्ली का सरोजनी मार्केट या करोल बाग है ना, ठीक वैसा ही। यह “ला रांबला” नाम की सड़क भी स्पेन के मुख्य आकर्षण में से एक है। जहां पर्यटकों को लुभाने के लिए साज सज़्जा से लेकर खाने पीने की कई तरह की दुकानें थी। छोटे मोटे कई रेस्टोरेन्ट थे। मगर अधिकांश लोग मदिरा (बियर) का सेवन करते हुए ही नज़र आए। मुख्यता इस सड़क पर हमने देखा कि वहाँ “बार्सिलोना” के मुख्य स्थलों की तसवीरों से सज़ा, साज़ो समान बिक रहा था। महिलाएं और बच्चे कपड़ों और खिलौनों की ख़रीदारी में व्यस्त थे। वहाँ सभी इमारते नंबर से जानी जाती है। वहीं पास में एक भारतीय रेस्टोरेन्ट भी था जिसका नाम "बोलीवुड" था, तीन दिन हम लोगों ने वहीं खाना खाया था तब एक दिन उस रेस्टोरेन्ट में काम करने वाले एक कर्मचारी ने हम से पूछा कि आपने वो डांस देखा क्या जो उस फिल्म में "ज़िंदगी न मिलेगी दुबारा" में दिखाया गया था। यह सुनकर हमारे दिमाग में एकदम से वह गाना आया नहीं तो वह बोला "अरे वही गाना सेनियोरिटा वाला" तब अचानक से याद आया अच्छा-अच्छा हाँ वो गीत ... तो "उसने कहा हाँ वही वाला डांस, यहाँ पास ही एक जगह है जहां होता है"। यह सुनकर हमारे मन भी बड़ी इच्छा हो आई कि हम भी वो डांस देखें। मगर जब टिकिट का दाम जाना तो इरादा रद्द करना ही उचित समझा। तीनों का मिलकर दो सो पचास यूरो हो रहा था वह भी यदि कोई अपना टिकट रद्द कर दे तब, उसके लिए 45 मिनट इंतज़ार करना।
खैर विषय से ना भटकते हुए हम फिर हम फिर वहीं आते है उस बाज़ार में भटकने बाद तभी हमने वहाँ सामने सड़क के उस पार एक और बाज़ार नजर आया। जहां सिर्फ खाने के शौक़ीन लोगों के लिए ही वहाँ मौजूद था। फिर चाहे वह मुर्गा, मच्छी हो या केंकड़े या फिर तरह-तरह की मिर्चीयां और मीठे के नाम पर चॉकलेट और आइसक्रीम, जी हाँ मजे की बात तो यह थी, कि वहाँ कई जगह रंग बिरंगी आइसक्रीम भी थी ठीक वैसी ही जैसी बचपन में हम और आप खाते थे ना, नारंगी रंग वाली। जिसमें सिवाय बर्फ़ और रंग के कोई स्वाद ही नहीं होता था। आह !!! फिर भी कितनी स्वादिष्ट लगती थी न। ठीक वैसी ही आइसक्रीम यहाँ भी बिक रही थी। मुँह में पानी आरहा है ना !!! फ़िलहाल आप तस्वीरों में भी देखकर ही काम चला सकते हैं। वहाँ भी (स्पेन) में और यहाँ (लंदन) में भी आजकल अलग-अलग स्वाद वाला फ़्रोजन दही बड़े चलन में है। जो देखने में एकदम आइसक्रीम की तरह ही दिखता है, मगर होता दही है। क्या बच्चे और क्या बड़े सभी इस दही का आनंद लेते नज़र आते है।
वहाँ से घूमते-घूमते हम पहुँचे एक थिएटर (Palau de la Música Catalana) जिसकी सुंदरता देखने लायक थी। उस थिएटर की विशेषता भी वही थी कि वहाँ बने स्तंभों दीवारों और छत पर टूटे हुए टाइल्स के टुकड़ों से बहुत ही सुंदर आकृतियाँ बनाकर उन्हें सजाया गया था और यह टूटे हुए टाइल्स से बनी चीज़ें भी बार्सिलोना के प्रमुख्य आकर्षणों में से एक है। मगर अफ़सोस कि उस दिन वहाँ पहुँचने में देर हो जाने के कारण, हम वह थिएटर अंदर से नहीं देख पाये। इतने सुंदर थिएटर को अंदर से ना देख पाने का दुःख तो हुआ। मगर क्या किया जा सकता था।
वहाँ से हम गोथिक क्वाटर्स की ऐतिहासिक गलियों से घूमते हुये, हम पहुँचे वहाँ के एक प्रसिद्ध गिरजाघर (Barcelona Cathedral) के पास जिसके द्वार पर बनी मूर्तियों की नक़्क़ाशी अपने आप में अत्यंत अदबुद्ध, अत्यंत सुंदर एवं सराहनीय थी। उस वक्त शायद वह गिरजाघर (चर्च) बंद था या नहीं ठीक से याद तो नहीं है। लेकिन ज्यादातर सभी पर्यटक गिरजाघर (चर्च) के बाहर सीढ़ियों पर ही अपना-अपना डेरा जमाए बैठे थे। जिनमें से अधिकांश लोग मुख्यतः गिरजाघर (चर्च) के द्वार की तस्वीरें लेने में व्यस्त थे। तो मेरा भी मन हो गया और हमने भी वहाँ एक फोटो खिंचवा ही लिया। यह सब घूमते घामते थक के चूर हो चुके भूख से व्याकुल हम लोगों ने फिर बर्गर किंग पर धावा बोला। क्या करो विदेश में हम जैसे चुनिंदा खाने पीने वाले लोगों के साथ बड़ी समस्या हो जाती है। ऐसे में फिर “मेकडोनाल्ड” या “बर्गर किंग” ही हम जैसों का एकमात्र सहारा बचता है। खैर फिर थोड़ा बहुत खा पीकर होटल वापस लौटने का तय हुआ। मगर फिर याद आया कि जहां हम खड़े हैं “एसपानीया” में वहाँ से कुछ ही दूर पर एक और दार्शनिक फब्बारा(The Magic Fountain at Montjuic) है। जिसे देखने लोग दूर-दूर से आते है। हमने सोचा चलो अब जब यहाँ तक आ ही गए है तो देख लेते हैं। बस यही सोचकर हम लोग किसी तरह गिरते पड़ते बस से वहाँ पहुँचे। लेकिन शायद उस दिन जैसे किसी बहुत अच्छी चीज़ को देखने का मुहूर्त ही नहीं था। वहाँ जाकर पता चला यह फुब्बारा केवल हफ़्ते में केवल दो ही दिन चलते है। शनिवार और इतवार को, यह सुनकर दिमाग का दही हो गया। मगर अब हो भी क्या सकता था। वापस लौट जाने के अलावा और कोई दूजा विकल्प भी नहीं था। तो बस “एसपानिया” से ट्रेन पकड़कर छोड़ आए हम वो गलियां...
सो अगले दिन “ला रांबला” जाना तय हुआ। सुबह आराम से उठकर नहा धोकर जब स्पेन की गरमागरम धूप में बैठकर नाश्ता किया तो जैसे दिल बाग़-बाग़ हो गया। फिर तरो ताजे मन से हम चले अपनी मंजिल की और “वहाँ पहुँच कर क्या देखते है” कि अरे यह तो यहाँ का लोकल मार्किट है। अर्थात सड़क के एक छोर से दूर कहीं दूसरे छोर तक लगा हुआ बाज़ार है। जैसे अपने दिल्ली का सरोजनी मार्केट या करोल बाग है ना, ठीक वैसा ही। यह “ला रांबला” नाम की सड़क भी स्पेन के मुख्य आकर्षण में से एक है। जहां पर्यटकों को लुभाने के लिए साज सज़्जा से लेकर खाने पीने की कई तरह की दुकानें थी। छोटे मोटे कई रेस्टोरेन्ट थे। मगर अधिकांश लोग मदिरा (बियर) का सेवन करते हुए ही नज़र आए। मुख्यता इस सड़क पर हमने देखा कि वहाँ “बार्सिलोना” के मुख्य स्थलों की तसवीरों से सज़ा, साज़ो समान बिक रहा था। महिलाएं और बच्चे कपड़ों और खिलौनों की ख़रीदारी में व्यस्त थे। वहाँ सभी इमारते नंबर से जानी जाती है। वहीं पास में एक भारतीय रेस्टोरेन्ट भी था जिसका नाम "बोलीवुड" था, तीन दिन हम लोगों ने वहीं खाना खाया था तब एक दिन उस रेस्टोरेन्ट में काम करने वाले एक कर्मचारी ने हम से पूछा कि आपने वो डांस देखा क्या जो उस फिल्म में "ज़िंदगी न मिलेगी दुबारा" में दिखाया गया था। यह सुनकर हमारे दिमाग में एकदम से वह गाना आया नहीं तो वह बोला "अरे वही गाना सेनियोरिटा वाला" तब अचानक से याद आया अच्छा-अच्छा हाँ वो गीत ... तो "उसने कहा हाँ वही वाला डांस, यहाँ पास ही एक जगह है जहां होता है"। यह सुनकर हमारे मन भी बड़ी इच्छा हो आई कि हम भी वो डांस देखें। मगर जब टिकिट का दाम जाना तो इरादा रद्द करना ही उचित समझा। तीनों का मिलकर दो सो पचास यूरो हो रहा था वह भी यदि कोई अपना टिकट रद्द कर दे तब, उसके लिए 45 मिनट इंतज़ार करना।
खैर विषय से ना भटकते हुए हम फिर हम फिर वहीं आते है उस बाज़ार में भटकने बाद तभी हमने वहाँ सामने सड़क के उस पार एक और बाज़ार नजर आया। जहां सिर्फ खाने के शौक़ीन लोगों के लिए ही वहाँ मौजूद था। फिर चाहे वह मुर्गा, मच्छी हो या केंकड़े या फिर तरह-तरह की मिर्चीयां और मीठे के नाम पर चॉकलेट और आइसक्रीम, जी हाँ मजे की बात तो यह थी, कि वहाँ कई जगह रंग बिरंगी आइसक्रीम भी थी ठीक वैसी ही जैसी बचपन में हम और आप खाते थे ना, नारंगी रंग वाली। जिसमें सिवाय बर्फ़ और रंग के कोई स्वाद ही नहीं होता था। आह !!! फिर भी कितनी स्वादिष्ट लगती थी न। ठीक वैसी ही आइसक्रीम यहाँ भी बिक रही थी। मुँह में पानी आरहा है ना !!! फ़िलहाल आप तस्वीरों में भी देखकर ही काम चला सकते हैं। वहाँ भी (स्पेन) में और यहाँ (लंदन) में भी आजकल अलग-अलग स्वाद वाला फ़्रोजन दही बड़े चलन में है। जो देखने में एकदम आइसक्रीम की तरह ही दिखता है, मगर होता दही है। क्या बच्चे और क्या बड़े सभी इस दही का आनंद लेते नज़र आते है।
वहाँ से घूमते-घूमते हम पहुँचे एक थिएटर (Palau de la Música Catalana) जिसकी सुंदरता देखने लायक थी। उस थिएटर की विशेषता भी वही थी कि वहाँ बने स्तंभों दीवारों और छत पर टूटे हुए टाइल्स के टुकड़ों से बहुत ही सुंदर आकृतियाँ बनाकर उन्हें सजाया गया था और यह टूटे हुए टाइल्स से बनी चीज़ें भी बार्सिलोना के प्रमुख्य आकर्षणों में से एक है। मगर अफ़सोस कि उस दिन वहाँ पहुँचने में देर हो जाने के कारण, हम वह थिएटर अंदर से नहीं देख पाये। इतने सुंदर थिएटर को अंदर से ना देख पाने का दुःख तो हुआ। मगर क्या किया जा सकता था।
वहाँ से हम गोथिक क्वाटर्स की ऐतिहासिक गलियों से घूमते हुये, हम पहुँचे वहाँ के एक प्रसिद्ध गिरजाघर (Barcelona Cathedral) के पास जिसके द्वार पर बनी मूर्तियों की नक़्क़ाशी अपने आप में अत्यंत अदबुद्ध, अत्यंत सुंदर एवं सराहनीय थी। उस वक्त शायद वह गिरजाघर (चर्च) बंद था या नहीं ठीक से याद तो नहीं है। लेकिन ज्यादातर सभी पर्यटक गिरजाघर (चर्च) के बाहर सीढ़ियों पर ही अपना-अपना डेरा जमाए बैठे थे। जिनमें से अधिकांश लोग मुख्यतः गिरजाघर (चर्च) के द्वार की तस्वीरें लेने में व्यस्त थे। तो मेरा भी मन हो गया और हमने भी वहाँ एक फोटो खिंचवा ही लिया। यह सब घूमते घामते थक के चूर हो चुके भूख से व्याकुल हम लोगों ने फिर बर्गर किंग पर धावा बोला। क्या करो विदेश में हम जैसे चुनिंदा खाने पीने वाले लोगों के साथ बड़ी समस्या हो जाती है। ऐसे में फिर “मेकडोनाल्ड” या “बर्गर किंग” ही हम जैसों का एकमात्र सहारा बचता है। खैर फिर थोड़ा बहुत खा पीकर होटल वापस लौटने का तय हुआ। मगर फिर याद आया कि जहां हम खड़े हैं “एसपानीया” में वहाँ से कुछ ही दूर पर एक और दार्शनिक फब्बारा(The Magic Fountain at Montjuic) है। जिसे देखने लोग दूर-दूर से आते है। हमने सोचा चलो अब जब यहाँ तक आ ही गए है तो देख लेते हैं। बस यही सोचकर हम लोग किसी तरह गिरते पड़ते बस से वहाँ पहुँचे। लेकिन शायद उस दिन जैसे किसी बहुत अच्छी चीज़ को देखने का मुहूर्त ही नहीं था। वहाँ जाकर पता चला यह फुब्बारा केवल हफ़्ते में केवल दो ही दिन चलते है। शनिवार और इतवार को, यह सुनकर दिमाग का दही हो गया। मगर अब हो भी क्या सकता था। वापस लौट जाने के अलावा और कोई दूजा विकल्प भी नहीं था। तो बस “एसपानिया” से ट्रेन पकड़कर छोड़ आए हम वो गलियां...
Friday, 15 November 2013
बार्सिलोना भाग-1
यूं तो पहले ऐसा कोई मन नहीं था स्पेन जाने का, लेकिन फिर सोचा यह एक कोना भी क्यूँ छोड़ा जाये जब इतना कुछ देख लिया है, घूम लिया है, तो फिर यह भी सही क्या पता कल हो न हो... और बस यही सोचकर श्रीमान जी ने बार्सिलोना के टिकिट बुक कर दिये और हम चले बार्सिलोना, लेकिन इस बार जाने क्यूँ हमने किसी को भी कुछ नहीं बताया सिर्फ परिवार वालों को पता था बाकी किसी को कुछ नहीं पता था न ही मैंने फेसबुक पर ही कुछ अपडेट किया था कि हम कहाँ हैं और पूरे 6 दिन किसी ने हम से पूछा भी नहीं कि कहाँ हो कैसी हो :(
खैर हमने देखा, स्पेन का एक खूबसूरत शहर बार्सिलोना जो अपने आप में कला प्रेमियों के लिए कला से भरपूर शहर था। जहां एक और पिकासो की बनी चित्रकारी थी तो वही दूसरी ओर कमिलले पिस्सारो की बनी बेहतरीन तस्वीरें जिन्हें देखकर मन मंत्र मुग्ध हो गया था। हालांकी मुझे चित्रकला या चित्रकारी के विषय में कोई खास जानकारी नहीं है। मगर आप खुद ही सोचिए कि जब मुझे उस विषय में कोई खास जानकारी नहीं है, उसके बावजूद भी मुझे उनकी चित्रकारी ने इतना प्रभावित किया। तो जिन्हें जानकारी होती होगी उनका क्या होता होगा। वहाँ सिर्फ चित्रकारी ही नहीं बल्कि आर्किटेक्चर का काम भी बहुत ही प्रसिद्ध है। आप सभी लोगों ने शायद "एन्टोनी गाउडी" का नाम सुना होगा। वह वहाँ के बहुत ही प्रख्यात आर्किटेक्ट थे। जिन्होंने वहाँ के सभी राजा महाराजों एवं आम जनता के लिए खूबसूरत इमारतों का निर्माण किया था। कई जगह तो ऐसा लगा कि वहाँ के लोगों का उन दिनों बिना गाउडी के काम ही नहीं चलता था जहां जाओ बस एक ही नाम गाउडी गाउडी और सिर्फ गाउडी...
खैर हमने देखा, स्पेन का एक खूबसूरत शहर बार्सिलोना जो अपने आप में कला प्रेमियों के लिए कला से भरपूर शहर था। जहां एक और पिकासो की बनी चित्रकारी थी तो वही दूसरी ओर कमिलले पिस्सारो की बनी बेहतरीन तस्वीरें जिन्हें देखकर मन मंत्र मुग्ध हो गया था। हालांकी मुझे चित्रकला या चित्रकारी के विषय में कोई खास जानकारी नहीं है। मगर आप खुद ही सोचिए कि जब मुझे उस विषय में कोई खास जानकारी नहीं है, उसके बावजूद भी मुझे उनकी चित्रकारी ने इतना प्रभावित किया। तो जिन्हें जानकारी होती होगी उनका क्या होता होगा। वहाँ सिर्फ चित्रकारी ही नहीं बल्कि आर्किटेक्चर का काम भी बहुत ही प्रसिद्ध है। आप सभी लोगों ने शायद "एन्टोनी गाउडी" का नाम सुना होगा। वह वहाँ के बहुत ही प्रख्यात आर्किटेक्ट थे। जिन्होंने वहाँ के सभी राजा महाराजों एवं आम जनता के लिए खूबसूरत इमारतों का निर्माण किया था। कई जगह तो ऐसा लगा कि वहाँ के लोगों का उन दिनों बिना गाउडी के काम ही नहीं चलता था जहां जाओ बस एक ही नाम गाउडी गाउडी और सिर्फ गाउडी...
इसलिए शायद वहाँ की हर प्रसिद्ध इमारतों को देखकर उस व्यक्ति की सोच के बारे में जानकार और सोचकर बड़ा आश्चर्य सा होता है कि एक इंसान यदि सच में कुछ करना चाहे तो उसके लिए प्रेरणाओं की कमी नहीं है। बस प्रेरित होने की जरूरत हैं। हालांकी हर किसी के पास ऐसी नज़र नहीं होती। ऐसे सोच और समझ ऊपर वाला किसी किसी को ही देता है। जैसे गाउडी की प्रेरणा थी पायथन साँप की हड्डियों का ढांचा, पेड़ की झुकी हुई टहनियाँ, कछुए की पीठ का ढाँचा इत्यादि। इस सब से पता चलता है कि हमारे आस पास ही हर छोटी-छोटी चीजों में न जाने कितनी प्रेरणा भरी पड़ी है। बस उसे देखने, समझने और उस पर अमल करने की जरूरत है और यही सब देखने को मिलता है "गाउडी" के कार्यों में फिर चाहे वो इमारतों के नाम पर, गिरिजाघर में बनी आकृतियाँ हों या फिर राजसी महल हों या फिर आम आदमी के लिए बनी कोई इमारत या लकड़ी की कुर्सियाँ ही क्यूँ न हो। सभी चीजों में एक अलग तरह का काम देखने को मिलता है।
इसी सिलसिले में हमने पहले दिन देखा "कासा बाटलो" जो बार्सिलोना शहर का दिल कहा जाता है। यह गाउडी की सबसे प्रख्यात इमारतों में से एक है। क्यूंकि यह गाउडी के द्वारा बनाई गयी सभी इमारतों में से अपने आप में एक अनूठी इमारत है। इस इमारत का लोकल नाम Casa dels ossos है। इसे house of bones भी कहते है अर्थात हड्डियों का घर, लेकिन यहाँ ऐसा कुछ नहीं है। यह तो महज़ मध्यम वर्गीय परिवारों के रहने के लिए बनाई गयी इमारतों में से एक इमारत थी। जिसमें अंदर अलग अलग अपार्टमेंट भी बने हुए है। मगर गाउडी ने इसमें अपनी कला के माध्यम से जो आकार प्रकार दिया है, वह अपने आप अदभुत है। कितना अदभुत है, यह आपको यहाँ के कुछ चित्र एवं तस्वीरों के दवारा ही पता चल जाएगा। यह इमारत बार्सिलोना का दिल है शायद इसलिए यहाँ का टिकिट भी मंहगा है। जैसे हम तीनों का टिकिट हमें 57.5 यूरो का पढ़ा मतलब यदि भारतीय मुद्रा में कहें तो करीब करीब 5000 रूपये का पड़ा।
साथ ही यहाँ ओडियो गाइड का भी खासा चलन है। जो आपको लगभग सभी इमारतों या संग्रहालयों में दी जाती है। उसका पैसा भी अलग से लिया जाता है। लेकिन फिर भी उस ओडियो गाइड की मदद से आपको उस जगह या उस स्थान के बारे में जानने और समझने में बहुत सुविधा हो जाती है। इस इमारत की खास बात यह है कि इसकी छत किसी ड्रेगन की पीठ की तरह दिखाई देती है और खिड़कियों के बाहर आधे चेहरे की आकृति है। इस पूरी इमारत को अंदर बाहर से देखने के बाद ऐसा लगता है जैसे इसमें सीधी दीवारों को न बनाने पर ज़ोर दिया गया है। या फिर उस चीज़ को जानबूझ कर नज़र अंदाज़ किया गया है। इसलिए इस इमारत में बनी लगभग हर चीज़ में आपको एक तरह का घुमाव नज़र आएगा।
लेकिन इस सबसे भी अदभुत बात यह है कि उस जमाने में भी जिन तकनीकों का इस्तमाल किया गया है वह कमाल है और वही एक ऐसी चीज़ है जो हमें फिर एक बार यह सोचने पर विवश करती है कि क्या वाकई तरक्की के नज़रिये से हम आज आधुनिक हुए हैं? जबकि वास्तविकता तो यह है कि जिन चीजों की खोज करके हमें ऐसा लगता है कि इसे हमने अब पा लिया दरअसल वह सब तो हमारे पुरखे बहुत पहले ही खोज चुके थे। बस उन चीजों को ही आधुनिक रूप देकर हम उसे अपना या आज का आविष्कार समझने लगते हैं। अब जैसे उस जामने में एयर वेंटीलेशन के नाम पर लकड़ी से बना एक नमूना जो उस जमाने में ही बन गया था और बहूत सही इस्तेमाल में भी आता था। जिसे किसी भी तरह के विपरीत प्रभाव का कोई डर नहीं था। अर्थात किसी भी तरह के प्रदूषण या कोई भी और हानि होने की कोई संभावना नहीं थी। बस हवा के रुख के माध्यम से आपको सेटिंग बदलने की जरूरत होती थी।
ऐसी कई सारी छोटी बड़ी जरूरतों को ध्यान में रखते हुए गाउडी ने बड़े ही अदभुत तरीके से काम किया है। यहाँ नीचे पहली मंज़िल से छत तक एक से एक कलाकृतियाँ मौजूद है और एक खास बात यहाँ बनी सभी कलाकृतियों में जो बात सबसे साधारण होते हुए भी अपने आप में बहुत ही महत्वपूर्ण है वह है इमारतों को सजाने के लिए बेकार हो चुके टाइल्स के टुकड़ों का इस्तेमाल और वही इस शहर की खासियत है। यहाँ बने लगभग कर इमारत में साज सज्जा के समान में, कपड़ो पर बनी डिजाइन में सभी में आपको यही एक खास बात देखने को मिलेगी।
आज के लिए केवल इतना ही अभी तो छः दिन का सफर बाकी है दोस्तों यह तो केवल एक दिन का ही यात्रा वृतांत था :) पिचर अभी बाकी है मेरे दोस्त....
Subscribe to:
Posts (Atom)