
आज हर कोई विदेश आने को उत्सुक है। बस इस एक अवसर की तलाश में लोग गिद्ध की भांति नजरें गड़ाए बैठे रहते हैं। इसका कारण उनसे पूछो तो वे कहते हैं कि विदेश में काम के बदले अच्छा पैसा मिलता है। वहां भ्रष्टाचार बहुत कम है। अपने देश भारत में तो जीवन कई तरह से असुरक्षित हो चुका है।
विदेशों में भौतिक विलासिता की ओर बढ़ते जनजीवन के रुझान ने एशिया प्रशांत के अविकसित, अल्पविकसित व अर्द्धविकसित देशों के लोगों को भी अपनी चपेट में ले लिया है। भारतीय लोगों पर भी इसका दुष्प्रभाव पड़ रहा है। इस समय एशिया, अफ्रीका के अनेक देशों में अपनी पुरासंस्कृति से दूर होने और आधुनिकता के सिरमौर यूरोपीय पूंजी-संस्कृति को अपनाने की होड़ सी मची हुई है। हालांकि इन देशों के कुछ लोग यूरोप के इस पूंजीगत प्रभाव के दुष्परिणामों से भलीभांति परिचित हैं और वे इनको दूर करने के लिए अपने देश के लोगों को अपनी धरती व देश से जुड़े रह कर रोजगार, उद्यम करने को प्रेरित कर रहे हैं। चूंकि अधिकांश लोग वैश्विक रूप से पनप रहे एक प्रकार के विनाशी वातावरण को आत्मसात किए हुए चल रहे हैं इसलिए स्वदेशी संस्कृति और वैश्विक कुसंस्कृति के बीच के अंतर को समझने की उनकी दृष्टि कुन्द पड़ चुकी है। दूसरी-तीसरी दुनिया के देश जिसे “वैल्यू ऑफ लाइफ” समझते हैं वास्तविक रूप से वह कुछ और ही है और इसका सही-सही आकलन दूर से नहीं लगाया जा सकता। विदेशों में बसने का सपना देख रहे लोगों को यह कड़वा अनुभव उन्हें वहां जाने के बाद ही समझ आता है।
आज के इस आधुनिक युग में फर्राटेदार अँग्रेजी बोलता बच्चा सभी को बहुत लुभाता है। विदेश में शिक्षा ग्रहण करना भारत में हमेशा से ही बड़े गर्व की बात समझी जाती रही है। अब भी ऐसा ही प्रभाव व्याप्त है। पहले केवल उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए ही बच्चों को विदेश भेजा जाता था, लेकिन आज के अभिभावक ये चाहते हैं कि उनके बच्चे की प्रारंभिक और उच्च शिक्षा विदेश में ही हो। इसमें माता-पिता को ज्यादा गर्व होता है। जबकि वास्तविकता कुछ और ही है। अगर विशुद्ध पढ़ाई की बात की जाए तो विदेशी बच्चे भारतीय बच्चों की तुलना में उन्नीस ही सिद्ध होते हैं। भारतीय लोगों का ये सोचना कि यूरोपीय देश में जीवन बेहतर तरीके से जिया सकता है और इसमें वहां की शिक्षा महत्वपूर्ण योगदान देती है, एकदम गलत है। असल में यहां के समृद्ध जीवन के पीछे शिक्षा का कम और परिवार इकाइयों का आर्थिक रूप से समृद्ध होने का ज्यादा योगदान है।
अगर भारत की पढ़ाई किसी भी लिहाज से कमतर होती तो आज मैं यहाँ विदेश में नहीं बैठी होती और विदेशी अपने ही देश में अपनी ही नौकरियों के छिनने के कारण असुरक्षित नहीं होते। मैंने अपनी पूरी पढ़ाई-लिखाई अपने देश में रहकर ही की है। वहीं की शिक्षा-दीक्षा का ही असर है कि आज मैं ठोक बजाकर कह सकती हूँ कि भारतीय शिक्षा पद्वति में यूरोपीय शिक्षा पद्वति से अधिक गुणवत्ता है। देशवासियों को जान कर आश्चर्य होगा कि यहाँ लंदन की युवा पीढ़ी मतलब “टीनेजर”, इनमें भी खासकर लड़कियां आज कई खतरों से घिरी हुई हैं। कारण है युवाओं की गुटबाजी। सामान्य तौर पर गुटबाजी को बहुत आम बात माना जाता है क्योंकि यह चलन तो भारत में भी बहुत पहले से रहा है। लड़कों-लड़कियों के गुट में शामिल लड़कियां यहां आमतौर पर बलात्कार, सामूहिक सेक्स हिंसा की शिकार होती रहती हैं। खासकर लंदन में तो ऐसी घटनाएं युवाओं के जीवन का एक जरूरी हिस्सा बनती जा रही हैं। इस विषय को लेकर शासन, शिक्षक और अभिभावक बहुत परेशान हैं। युवाओं को ऐसे रास्तों पर चलने से रोकने के लिए आजकल यहां की पुलिस ही नहीं बल्कि कई समाजसेवी संस्थाएं और विश्वविद्यालय विशेष अनुसन्धान कर रहे हैं।
यहां बच्चों और युवाओं के समूह को गैंग कहा जाता है। ये अच्छे भी हो सकते हैं और बुरे भी। हर गैंग के अपने कुछ नियम-कानून होते हैं, जिनका पालन करना गैंग के सभी सदस्यों के लिए अनिवार्य है। कोई भी इन नियमों का पालन करने से इनकार नहीं कर सकता। फिर चाहे उसकी मर्जी हो या न हो। कई बार तो गैंग के निर्धारित नियमों का उसके किसी सदस्य द्वारा उल्लंघन किए जाने पर उसकी जान तक का खतरा उत्पन्न हो जाता है।
आखिर ऐसे गैंग बनते ही क्यूं हैं। इसके अनेक कारण हैं। पहला, यहाँ एक परिवार में कम अंतराल पर 4 से 5 बच्चे होते हैं। अभिभावक सबका ढंग से ध्यान नहीं रख पाते। बच्चा या बच्ची खुद को अकेला महसूस करने लगता है। घरवालों द्वारा उसकी अनदेखी होते रहने के कारण उसे अपनी अहमियत की जरूरत महसूस होती है। गैंग का मुखिया ऐसे बच्चे को भरमाने में देर नहीं लगाते और इस प्रकार एक अच्छे-भले परिवार का बच्चा कानूनन अवैध घोषित गैंग में शामिल हो जाता है। दूसरा, स्कूल में बड़ी कक्षा के बच्चों का छोटी कक्षा के बच्चों पर शारीरिक और मानसिक दबाव बनाना। बड़ी कक्षा के बच्चों का छोटी कक्षा के बच्चों से नौकर की तरह काम करवाना। छोटे बच्चों को यह सब पसंद है या नहीं इसकी चिंता बड़े बच्चे बिलकुल नहीं करते। डरा-धमका कर वे अपने से छोटे आयु-समूह के बच्चों से मनमाने और गलत व्यवहार करते हैं। बेशक यह सब स्कूली नियमों के विरुद्ध हो, पर इनकी हरकतें रुकने का नाम नहीं लेतीं। भारत में कॉलेज जानेवाले विद्यार्थियों के साथ रैंगिंग के नाम पर जो उल्टा-सीधा व्यवहार किया जाता है, वह यहां छोटी कक्षाओं में ही शुरु हो जाता है। तीसरा, कामकाजी माता-पिता घर में ज्यादा समय नहीं दे पाते। यह ध्यान देने वाला कोई नहीं होता कि बच्चा क्या कर रहा है, कहाँ जा रहा है इत्यादि। चौथा, किसी गुट की गुंडागर्दी, छेड़छाड़ से बचने के लिए बच्चा या बच्ची अपने मनपसंद गैंग का हिस्सा बन जाते हैं। उन्हें लगता है कि अब उनसे कोई बत्तमीजी नहीं कर सकता। इस प्रकार की गलत युवा-गतिविधियों के चलते किसी भी नवयुवक या नवयुवती का गैंग से प्रभावित होकर उसमें शामिल हो जाना कोई बड़ी बात नहीं है।
ऐसे गैंग यहां बड़ी आसानी से पहचाने जा सकते हैं। सड़क पर हल्ला-गुल्ला करना, शोर मचाना, गंदगी फैलाना, गंदे शब्दों या गालियों का प्रयोग करना इनकी सामान्य गतिविधियां हैं। महंगे ट्रेक सूट, कूल्हों पर पोछानुमा भद्दी जींस, हुडवाली जेकेट या टोपी पहने लड़के रास्तों पर शोर मचाते, मस्ती करते हुए अकसर दिखाई पड़ जाते हैं। धुआँ उड़ाते और अपने साथियों को गन्दे स्ट्रीट नामों से जोर-जोर से पुकारते हुए इन्हें प्राय: देखा जा सकता है।
युवा होते बच्चों के माता-पिता के लिए यह समस्या एक डर का कारण बनती है, जिसके चलते परिवार में एक अजीब सी असमंजस की स्थिति बनी रहती है। खासकर एशिया मूल के अभिभावकों के लिए तो ऐसी परिस्थिति से समझौता करना और भी मुश्किल होता है। चूंकि उनके धार्मिक, राष्ट्रीय संस्कार अपने बच्चों को ऐसे कुपथ की छंटनी करने की इजाजत नहीं देते इसलिए उनके सिर पर रोजगार, काम, परिवार की जिम्मेदारियों के साथ-साथ बच्चों के प्रति ज्यादा सचेत रहने की जिम्मेदारी का बोझ भी आ जाता है। इस तरह के नकारात्मक व्यवहार के साथ समझौता करना माता-पिता को अनचाहे ही अवसादग्रस्त बना देता है।
हिन्दुस्तान में आमतौर पर अभिभावक लड़की के पालन-पालन, उसकी सुरक्षा के लिए ज्यादा चिंतित रहते हैं, लेकिन विदेश और खासकर लंदन में रहनेवाले एशियाई माता-पिता के लिए गैंग-संभावित क्षेत्र में लड़के को बड़ा करना ज्यादा बड़ी चुनौती होती है। वे चाहते तो हैं कि उनका बेटा भी बाहर की दुनिया में घुले-मिले, घूमे-फिरे, दोस्त बनाए और अनुकूल माहौल में अपने आपको ढालना सीखे, लेकिन एक डर उन्हें हमेशा घेरे रहता है कि अपने हमउम्रों की तरह बनने के चक्कर में उनका बेटा या बेटी अनजाने में कहीं किसी आपराधिक गैंग का हिस्सा न बन जाए।
अभी पिछले दिनों लंदन के एक अखबार ‘लंदन इवनिंग स्टैंडर्ड’ की खबर के मुताबिक एक संस्था ने आपराधिक गैंग के विषय पर शोध किया। इसके जो नतीजे सामने आए वह वास्तव में दिल दहला देनेवाले थे। संस्था के शोध के अनुसार दो सालों से हो रही जांच-पड़ताल के बाद इस तरह के गैंग में शामिल होनेवाली लड़कियों के शारीरिक शोषण की बात सामने आई है। स्कूली बच्चों के विषय में ऐसी बात सुन कर अभिभावकों को धक्का लगना स्वाभाविक है। यहाँ की केवल 11 साल की स्कूली लड़कियों के साथ बलात्कार ही नहीं बल्कि सामूहिक बलात्कार भी हो चुके हैं। जबकि किसी आपराधिक गैंग में शामिल सभी टीनएजर लड़कियों के साथ बलात्कार होना बड़ी सामान्य बात हो गई है। रेप शब्द अब लड़कियों की जिंदगी का एक आम हिस्सा बन गया है।
शोध करनेवाले संस्थान ने लड़के और लड़कियों के गैंग के बारे में 180 लोगों से बात की। लोगों की राय के आधार पर उक्त संस्थान का दावा है कि अकेले लंदन में 2,500 लड़कियां बलत्कृत होने के खतरे से जूझ रही हैं। उनके अनुसार लोगों का खुल कर इस बारे में बात नहीं करने से ऐसे मामलों की गिनती कम ही दर्ज की जा सकी। जबकि हकीकत कुछ और ही बयां करती है। अपने स्तर पर संस्था ने जो शोध-पत्र तैयार किया है उसमें अकेले लंदन में ही लगभग 3,500 गैंग सदस्य हैं, जिसमें से लगभग 2,500 जेल जा कर बाहर भी आ चुके हैं। अगर हर गैंग के सदस्य की एक-एक गर्लफ्रेंड भी होगी तो करीब 3500 के करीब लड़कियां हमेशा रेप के खतरे में हैं। जबकि गैंग के कई सदस्य तो ऐसे हैं जिनकी 10-10 गर्लफ्रेंड्स भी हैं। इनमें से कुछ लड़कियां तो 21 वर्ष की आयु तक पहुंचते-पहुंचते पांच बच्चों की मां बन चुकी होती हैं।
इस मामले पर काम कर रही संस्था और बेडफोर्डशायर विश्वविद्यालय ने जब ऐसे ही किसी गैंग की एक लड़की से बात की तो इन्हें ज्ञात हुआ कि गैंग की सदस्य लड़कियां उस गैंग के लड़कों के लिए एक मांस के टुकड़े से ज्यादा और कुछ नहीं हैं। गैंग में शामिल लड़की गैंग द्वारा थोपे गए वातावरण से इतनी दिग्भ्रमित हो जाती है कि स्कूल के गेट से बाहर आते ही उसका इंतजार करता हुआ लड़का जब उसको कहता है कि मेरे साथ चलो तो वह उसे मना नहीं कर सकती, क्योंकि गैंग के नियम के अनुसार लड़की के पास ‘ना’ कहने का कोई विकल्प ही नहीं है। यदि एक लड़की एक लड़के से शारीरिक संबंध बना भी ले तो इस पर उसकी जान नहीं छूट सकती। इसके अलावा गैंग के अन्य लड़के भी उसी लड़की के साथ संबंध बनाना चाहें तो वह लड़की मना नहीं कर सकती। इस प्रकार एक मासूम लड़की वासना में लिप्त कुत्तों के लिए मांस के टुकड़े के अतिरिक्त और कुछ नहीं रहती। जिसका बारी-बारी सभी उपभोग करना चाहते हैं और करते भी हैं। पुलिस के अनुसार इस तरह से पीड़ित कोई भी लड़की गैंग या इसके किसी लड़का सदस्य के विरुद्ध कभी कोई शिकायत दर्ज नहीं कराती।
साक्षात्कार में उस लड़की ने यह भी बताया कि जब पहली बार किसी लड़के के साथ संबंध बनाने के लिए कहा जाता है तो गैंग-मुखिया के शब्द होते हैं, ‘तुम्हें और मुझे मालूम है कि यह गलत है मगर धीरे-धीरे तुम्हें इसकी आदत पड़ जाएगी, क्योंकि यदि तुम्हें इस गैंग में रहना है तो इसके नियमों का पालन तो करना ही होगा। वरना अंजाम अच्छा नहीं होगा’।
इस समस्या से निपटने के लिए यहां की पुलिस ने कुछ कार्यक्रम भी बनाए हैं, जिसके तहत पुलिस ऑफिसर बच्चों को इन गैंग्स में शामिल होने से रोकने के लिए स्कूलों में जाकर जागरुकता का कार्यक्रम चला रहे हैं। इनमें बातचीत के माध्यम से बच्चों को गैंग के प्रति आकर्षित होने से रोके जाने की कोशिश की जाती है। कई स्कूलों में सेक्स शिक्षा (सेक्स एजुकेशन) भी दी जा रही है ताकि बच्चे भ्रमित न हों, सही और गलत का फर्क समझ सकें। साथ ही बच्चों को यह भी बताया जा रहा है कि यदि कोई उन्हें किसी गैंग में शामिल करने की कोशिश करे या इसके लिए जबर्दस्ती करे तो कैसे इन सब से बचा जा सकता है।
(साभार : राजस्थान पत्रिका के बुधवार 25 दिसंबर 2013 के अंक में प्रकाशित मेरा एक आलेख) http://epaper.patrika.com/203312/Rajasthan-Patrika-Jaipur/25-12-2013#page/12/3







































