Monday, 15 April 2013

मास्टर शैफ़ और थोड़ा सा आश्चर्य


सोमवार को जब मास्टर शैफ़ इंडिया का पिज्जा वाला एपिसोड देखा और यह जाना कि खोकू नाम की एक प्रतिभागी ने कभी पिज्जा खाया ही नहीं तो मुझे थोड़ा आश्चर्य हुआ, ज्यादा इसलिए नहीं हुआ क्यूंकि मैं जानती हूँ कि हमारे देश की जनसंख्या का एक बहुत बड़ा हिस्सा ऐसा है जिसे आमतौर पर दो वक्त की रोटी भी नसीब नहीं होती और जिन्हें होती है उनके लिए भी दो वक्त की रोटी जुटाना आसान काम नहीं है। तो फिर ऐसे में पिज्जा खाने के बारे में सोचना भी एक सपने के जैसी बात है।

खैर अब सभी यही कह रहे हैं कि हमारा देश तेज़ी से प्रगति की और बढ़ रहा है धीरे-धीरे न सिर्फ लोगों की सोच में परिवर्तन आ रहा है बल्कि लोगों के रहन सहन एवं खान पान में भी परिवर्तन हो रहा है अच्छी सेहत बनाने और स्वस्थ रहने की तरफ भी लोगों का रुझान बढ़ रहा है। हर कोई कैलौरी की तरफ ध्यान देकर ही खाना पीना पसंद कर रहा है। लोग वापस व्यायाम के पुराने तरीकों पर आकर स्वस्थ लाभ के लिए आयुर्वेद और योगा इत्यादि अपना रहे हैं।

लेकिन वहीं दूसरी और जिस विपरीत आबो हवा की नकल करने के चक्कर में हम बह रहे हैं जिसके चलते पिज्जा और बर्गर जैसी चीज़ें खाना मोर्डन होने की श्रेणी में आता है उसे भी नज़र अंदाज़ नहीं किया जा सकता। लेकिन यदि यहाँ की बात कि जाये तो यहाँ उल्टा ही है। यहाँ की सरकार परेशान है कि यहाँ के गरीब तबके के बच्चे खाने के मामले में सस्ता होने के कारण इस कदर जंक फूड खा रहे हैं कि बच्चों में ओबेसिटी यानी मोटापे की समस्या दिनों-दिन तेज़ी से बढ़ रही है। जिसे न सिर्फ मोटापा बल्कि मोटापे से संबन्धित कई अन्य गंभीर बीमारियाँ भी बढ़ रही है। जैसे शक्कर की बीमारी अर्थात diabetes  ह्रदय संबंधी रोग इत्यादि क्यूंकि पहले ही यहाँ मौसम के चलते बच्चों का बाहर जाकर खेलना कूदना बंद रहता है। ऊपर से यह जंक फूड रही सही कसर पूरी कर रहा है और खाने के मामले में तो आप सभी जानते ही हैं कि यहाँ के लोग मांस के नाम पर कुछ भी खा सकते है, फिर क्या मुर्गा, मच्छी और क्या भेड़, सूअर और गाय और इस बार तो हद ही हो गयी कुछ कंपनियों के बर्गर में घोड़े तक के मांस के अंश पाये गये।

अब जहां खाने के मामलों में ऐसे हालात हों वहाँ किसी के विषय में ऐसा सुनो कि उसने पिज्जा जैसी आम चीज़ नहीं खाई तो थोड़ा आश्चर्य तो बनता है भाई :-) इसलिए भईया हमने तो यह सोचा है कि यह सब चीज़ें कभी-कभी मूड बदलने या मजबूरी के चलते खाने के लिए ही ठीक हैं और ज्यादा हो तो छोटी-मोटी पार्टी के लिए ठीक हैं। वो क्या कहते हैं उसे गेट टुगेदर के लिए ही ठीक हैं। रोज़ के खाने में तो अपना "सादा जीवन उच्च विचार" ही भला "दाल रोटी खाओ प्रभु के गुण गाओ".... और वैसे भी जो बात अपने हिन्दुस्तानी घर के बने सादे खाने में है वो छप्पन भोग में भी कहाँ। वैसे घर में पिज्जा बनाने की अच्छी और आसान तरकीब सीखा गया यह एपिसोड अब कभी मैं भी कोशिश करूंगी शायद इस बहाने बदलाव के लिए अपने बेटे को हरी सब्जी खिला सकूँ। क्यूंकि पिज्जा और बर्गर हम कभी-कभी ही खाते है इंसलिए इन सब में तो जैसे उसकी जान बस्ती है।

कभी-कभी तो ऐसा लगता है यदि गलती से भी मैंने उसको पिज्जा और बर्गर रोज़ खाने की अनुमति दे दी तो फिर वो कभी घर का खाना खाएगा ही नहीं, मगर मैं जानती हूँ कि ऐसा सिर्फ लगता है। ऐसा होगा नहीं क्यूंकि यह चीज़ें बच्चों के मन को आकर्षित तो बहुत करती हैं। लेकिन उनका मन भर भी उतनी ही जल्दी जाता है वैसे यदि यही चीज़ें घर में सेहत को ध्यान में रखते हुए चतुराई के साथ सेहतमंद चीजों से बनाई जाये तो उसमें कोई बुराई भी नहीं है क्यूंकि बच्चों को तो हर दो चार दिन में कुछ नया चाहिए होता है खासकर जब इन चीजों से मन भर जाये तब तो सादे दाल चावल भी पकवान से कम नहीं लगते है ना !!! :)

वैसे चलते-चलते एक छोटा सा टिप देने का बड़ा मन हो रहा है, आप भी यदि घर में पिज्जा बनाने के विषय में सोच रहें हैं तो क्यूँ न उसका बेस भी भरवां परांठे की तरह बनाया जाये और फिर उसे पिज्जा का रंग रूप दिया जाये फिर चाहे आप ऊपर से उसमें केवल चीज़ और टमाटर का ही स्वाद और रंग रूप क्यूँ न दें अंदर तो हरी सब्जी होगी ही इस तरह "एक पंथ दो काज हो जाएँगे"। है न कमाल की टिप ट्राइ कीजिये और अपने अनुभव बाँटिए फिलहाल अभी के लिए जय हिंद :)      
      

18 comments:

  1. हिन्‍दुस्‍तानी घर का बना खाना तो है ही गजब। छप्‍प्‍ान भोग भी कभी हिन्‍दुस्‍तानी परिवारों में पकाए जाते थे।

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  2. पिज्जा हिंदुस्तानी बनाने के लिए बहुत बढ़िया टिप प्रस्तुत की है आपने .... ट्राइ करते हैं ...

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  3. अपने पारंपरिक भोजन को ही पिज़्ज़ा का रूप देकर बच्चों का मन भी रख सकते हैं और उनका स्वास्थ्य भी।

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  4. आपकी अंतिम वाली टिप हम अपनी माँ और बहन को पढ़वा देंगे :)

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  5. वैसे हिंदुस्तान में शायद बहुत बड़ी संख्या होगी लोगों की जिसने पिज्जा का नाम भी नहीं सुना होगा ..... बच्चों को खाने में नित नया चाहिए होता है ...आपकी टिप बढ़िया लगी .... आज कल एक विज्ञापन आता है आपने उसकी याद दिला दी ..... उंगली घुमा के बोल :):) किसान जैम और सौस का ।

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  6. पिज्जा का नाम तो सुना है,लेकिन आज तक कभी खाया नही है,टिप अच्छी लगी,कोशिश करूगां घर पर बनवाकर खाने की,,,आभार,,पल्लवी जी,,,

    Recent Post : अमन के लिए.

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  7. इसे कहेंगे हिंदुस्तानी पिज्जा ..:)

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  8. सही है ...
    बच्चों को यह पीजा खिलाएंगे :)

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  9. बिलकुल , बच्चों को स्वाद के साथ सेहत भी मिल जाये तो या क्या बात......

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  10. बिलकुल , बच्चों को स्वाद के साथ सेहत भी मिल जाये तो या क्या बात......

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  11. हमारे यहां एक संस्‍था है, शिक्षान्‍तर। वे अमेरिका को छोड़कर यहां आये हैं। उनका कहना है कि अपने जितने भी अन्‍न थे उनमें जितना पोषण गुण है उन्‍हें वापस लाना होगा। इसलिए वे पिज्‍जा और बर्गर दोनों ही देसी अनाजों से बनाते हैं और बेहद स्‍वादिष्‍ट होता है। व़ैसे रोटी पर ही सब्‍जी रखकर खाना भारत में गरीबी का लक्षण माना जाता है। हमारे यहां तरह-त‍रह के अनाजों से निर्मित रोटी को कितनी ही सब्जियों से खाया जाता है जिसे षडरस भोजन कहा जाता है। भारत में पिज्‍जा मुश्किल से 5प्रतिशत लोग ही खाते होंगे।

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  12. हिन्दुस्तानी पिज़ा का सुझाव बहुत अच्छा लगा...घर के खाने का कोई ज़वाब नहीं....

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  13. क्या बात है जब अपने ढंग से बना हो तो देशी हो गया न.....पिज़्ज़ा वैसे मैंने भी अभी तक एक ही बार खाया है.......पसंद नहीं आया दोबारा खाने की तनिक भी इच्छा नहीं हुई ।

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  14. आधुनिकता को रोकना आसां तो न होगा .. हां इस प्रतियोगिता में हमें अपने देसी खानों को प्रतिस्पर्धा में लाना होगा ... वो भी तेज़ी के साथ ...

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  15. स्वाद के साथ सेहत का भी ख्याल होना ही चाहिए,बेहतरीन प्रस्तुति,आभार.
    "महिलाओं के स्वास्थ्य सम्बन्धी सम्पूर्ण जानकारी
    "

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  16. पूंजीपति अपने नफ़े के लिए आपकी सेहत का जनाज़ा निकाल सकते हैं
    जंक फ़ूड में कुछ ऐसे रसायन मिलाए जाते हैं जो कि ‘फ़ाल्स फ़ीलिंग ऑफ़ हंगर‘ पैदा करते हैं। एक बार उन रसायनों की गंध नाक के ज़रिये दिमाग़ तक पहुंची नहीं कि आदमी उसे खाने के लिए लपका नहीं और फिर वह उसका आदी हो जाता है किसी नशेड़ी की तरह। इन रसायनों की वजह से इंसान बिना भूख के खाता है और पेट भरने के बाद भी खाता रहता है। इसके नतीजे में मोटापा, डायबिटीज़ व हार्ट प्रॉब्लम्स पैदा हो जाती हैं।
    इसी वजह से हम तो घर के बाहर की बनी चीज़ें नहीं खाते। इससे भी बड़ी वजह यह है कि हमें ऐतबार ही नहीं है कि बाज़ार में बनी इन चीज़ों के इन्ग्रेडिएन्ट्स क्या हैं और उनमें से कोई ऐसा भी हो सकता है जिसे खाना हमारे लिए हराम हो।
    पूंजीपति अपने नफ़े के लिए आपकी सेहत का जनाज़ा निकाल सकते हैं।
    इसलिए ख़ुद भी सावधान रहने की ज़रूरत है और बच्चे को भी बचाए रखने की ज़रूरत है।
    Have a look on
    http://commentsgarden.blogspot.in/2013/04/blog-post.html

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  17. बढ़िया सुझाव!
    वैसे हमारे यहाँ दो/तीन महीने में शायद एक बार पिज़्ज़ा या बर्गर आता होगा..., वो भी शाम को...! खाने के टाइम पर सबको खाना ही चाहिए..भले ही वो खिचड़ी ही क्यों ना हो... :-)
    ~सादर!!!

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  18. Pallavi ji Pizza o maine bhi aajtak nahin khaya..Indian dishes hi itni milti hain ki aur kuch try hi nahin kiya...hamare liye to daal roti chawal aur ek sabji matlab indra sabha ka pakwaan...

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