मैं जानती हूँ आज मैं जो कुछ भी लिख रही हूँ उससे बहुत से लोग असहमत होंगे खासकर वह लोग जो यह समझते है या मानते हैं कि मैं अपनी पोस्ट में हमेशा पुरुषों का पक्ष लेती हूँ। जो कि सरासर गलत बात है मैं किसी का पक्ष या विपक्ष सोचकर नहीं लिखती बस वही लिखती हूँ जो मुझे महसूस होता है मगर फिर भी कुछ लोग हैं, जिन्हें ऐसा लगता है कि मुझे लिखना ही नहीं आता। जी हाँ इस ब्लॉग जगत में लिखते मुझे दो साल हो गये यह मेरा पहला अनुभव है जहां मुझे अपने कुछ आलोचकों से यह जानने को मिला कि मुझे लिखना ही नहीं आता। इस बात से एक बात और भी साबित होती है कि जिन लोगों को ऐसा लगता है वह लोग भी मेरी पोस्ट पढ़ते ज़रूर है भले ही कमेंट न करें क्योंकि उनका यह कहना ही इस बात का प्रमाण है कि मैं चाहे अच्छा लिखूँ या बुरा वह मेरा लिखा पढ़ते है। तभी तो यह तय कर पाते हैं कि मैंने अच्छा लिखा या बुरा इसलिए मैंने सोचा आज मैं उन सभी लोगों को यह बताती चलूँ कि मैं केवल वो लिखती हूँ जो मुझे महसूस होता है, जो मेरा अपना, या मेरे अपनों का या मेरे आस-पास के लोगों का अनुभव होता है। मगर फिर भी कुछ लोग ऐसे हैं जो सीधी बात को भी टेढ़ी नज़र से देखते है और अपनी सोच के आधार पर किसी भी व्यक्ति या विषय के प्रति अपनी ही एक धारणा बना लेते है और यह सोचने लगते है कि जो उन्हें दिख रहा है या दिखता है वही सच होता है।
खैर मैं यहाँ अपनी सफ़ाई नहीं दे रही हूँ न ही मेरा ऐसा कोई इरादा है लेकिन जब पानी सर से ऊपर हो जाए तो बोलना ही पड़ता है। अब बात करते हैं कुछ नारीवादी लोगों की, वैसे मेरे हिसाब से तो नारी के पक्ष में कही जाने वाली कोई भी बात फिर चाहे उस बात को स्वयं नारी कहे या कोई पुरुष नारीवादी करार देना ही नहीं चाहिए। मगर यह बात कुछ वैसी है जैसे कोई चलन या आम बोल चाल की भाषा में प्रयोग किया जाने वाला कोई शब्द (नारीवादी विचारधारा) लेकिन जब ऐसा कोई विषय उठाया जाता है जिसमें नारी के प्रति किसी तरह का कोई चिंतन दर्शाया जा रहा हो, या उसके मान सम्मान या अधिकारों के प्रति कोई बात कही जा रही हो तो लोग उसे नारीवादी पोस्ट कहने लगते है, जो कि गलत है। क्यूंकि पुरुष भी तो हमारे ही समाज का एक अंग हैं फिर हम यदि किसी भी विषय पर कुछ सोचते हैं तो उन्हें अलग कैसे कर सकते है यहाँ मेरी सोच यह है कि स्त्रियों से संबन्धित विषयों में भी सभी की सोच एक दिशा में होनी चाहिए तभी कुछ बात बन सकती है। क्यूंकि वह लोग भी हमारे समाज का एक अहम हिस्सा हैं कोई शत्रु तो नहीं है। जो हर बार हम उन्हें अलग करके सोचते हैं।
अब सवाल यहाँ यह उठता है कि हमेशा ऐसे सारे विषय एक नारी के द्वारा ही क्यूँ लिखे जाते हैं। जबकि समाज की सभी नारियां तो इन बातों से पीड़ित नहीं है फिर एक नारी ही हमेशा ऐसा सब कुछ क्यूँ सोचती है। समाज में रहने वाले सभी पुरुष तो खराब नहीं है फिर वो क्यूँ आगे आकर इन विषयों पर कुछ नहीं लिखते यहाँ शायद लोग कहें कि वह किसी तरह के झमेलों में फंसना नहीं चाहते इसलिये वह ऐसे विषयों पर नहीं लिखते या फिर लिखते भी हैं तो बहुत कम, माना कि नारी और पुरुष की तुलना हमारे समाज में सदियों से विद्यमान है मगर क्या आपको नहीं लगता कि हम इस तरह की बातें करके उन्हें और भी हवा दे रहे हैं। क्यूंकि यहाँ मुझे ऐसा लगता है कि इस तरह कि बातों से यह भेद भाव और भी ज्यादा गहरा हो जाता है और शायद जिन्हें महसूस नहीं होता उन्हें भी महसूस होने लगता है।
हो सकता है आप लोगों को ऐसा न लगता हो क्योंकि इस विषय में सबकी अपनी सोच, विचार और राय हो सकती है। मगर मुझे जो लगा मैं वही लिखने का प्रयास कर रही हूँ, नारी के अधिकारों के लिए माँग उसकी सुरक्षा के लिए आए दिन होते आंदोलन, समान अधिकार पाने की लड़ाई इत्यादि के बारे में लिखते –लिखते वाकई हमारी सोच सिर्फ नारीवादी होने तक ही सिमित हो गयी है (यहाँ नारीवादी लिखने से मेरा तात्पर्य है वह बातें जिसमें केवल हर तरह से नारी का जि़क्र हो) मैं कहती हूँ, क्या ऐसे चिल्लाने से अर्थात आंदोलन करने से, या इस तरह की पोस्ट लिखने से कुछ बदलने वाला है? जो लोग नारी शब्द को पकड़ कर बस शुरू हो जाते हैं। पिछले कुछ महीनों से इस मामले में तो मेरा अनुभव यह रहा है कि जिन लोगों को अपने ब्लॉग पर या अपनी पोस्ट पर कमेंट बढ़ाने का शौक होता है केवल वही लोग इस एक नारी शब्द को पकड़कर लिखते रहते है इस श्रेणी में आप मुझे भी सम्मिलित कर सकते हैं क्यूंकि मैंने स्वयं भी नारी से जुड़े विषयों पर बहुत लिखा है और यह पाया है कि मेरी जिस किसी पोस्ट में नारी के विषय में लिखा होता है उस पोस्ट पर कमेंट की झड़ी लगी होती है और जिस पोस्ट में ऐसा कुछ ना हो उस पोस्ट पर लोग आते ही नहीं और तो और यहाँ मैंने कुछ ऐसे लोगों को भी देखा हैं जो केवल नारी शब्द देखकर ही शुरू हो जाते है। पोस्ट में असल बात क्या कहना चाहा है लेखक/लेखिका ने उस बात कि तरफ ध्यान ही नहीं देते। अब ऐसे लोगों को कोई नारीवादी न कहे तो क्या कहे।
लेकिन मेरा इस पोस्ट को लिखने का मुख्य बिन्दु यह है कि इस तरह कि नारी मुक्ति मोर्चा टाइप पोस्ट लिखने से कुछ होने जाने वाला नहीं है आज सभी कहते हैं नारी ने अपने आपको अब हर तरह से सक्षम बना लिया है अब वो किसी भी मामले में पुरुषों से कम नहीं उसके अधिकारों के लिए बहुत सी संस्थाएँ आगे आयी है और नारी मुक्ति जैसे कार्यों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है नारी अब अबला नहीं है कमजोर नहीं है समाज बदल रहा है लोगों की सोच में परिवर्तन आ रहा है न सिर्फ आम ज़िंदगी में बल्कि शायद रूपहले परदे पर भी, बहुत अच्छी बात है....अगर वास्तव में यह हक़ीक़त है तो, ? मगर मुझे तो वास्तविकता कुछ और ही नज़र आती है जब से नारी ने अपने अधिकारों के प्रति और अपने सम्मान के प्रति अपनी आवाज़ उठायी है तब से समाज में बलात्कार के मामलों में, या नारी उत्पीड़न के मामलों में कुछ ज्यादा ही तेज़ी आयी है यानि बजाय समस्यायेँ सुलझनें के हालत और भी ज्यादा बद से बदतर होते जा रहे हैं। कुल मिलाकर मुझे नहीं लगता कि इस तरह के आंदोलन से कोई फर्क पड़ने वाला है। फर्क किस चीज़ से पड़ेगा फ़िलहाल तो यह कहना बहुत ही मुश्किल काम है क्योंकि आजकल जो हालात नज़र आते हैं उसमें तो इस समस्या से निजात पाने का कोई तरीक़ा कम से कम मुझे तो नज़र नहीं आता। मगर शायद फिर भी मुझे ऐसा लगता है कि इस समस्या से निजात पाने के लिए यदि स्त्री और पुरुष दोनों ही साथ मिलकर चलें तो ज़रूर कुछ हो सकता है अकेली महिलाओं के हँगामाखड़ा करने से कोई हल निकलने वाला नहीं इन मुद्दों का, जरूरत है उन लोगों के आगे आकर काम करने की जिन्हें वास्तव में ऐसा लगता है कि वह एक दूसरे के सच्चे मित्र है विपरीत लिंग होते होते हुए भी एक दूसरे को अच्छी तरह समझते है फिर चाहे वो दोनों स्त्री पुरुष मित्र हों या पति पत्नी या फिर एक ही जगह काम करने वाले सहकर्मी, जब दोनों ही कि सोच एक ही दिशा में होगी तभी इस समस्या का निदान हो सकता है और हमारे देश में सदियों से विद्यमान कुछ कुप्रथाओं और अंधविश्वास का खात्मा भी केवल इसी एक दिशा सोच से ही हो सकता ना कि यूं एक दूसरे से प्रथक होकर इस दिशा में दिशा हीन होते हुए कार्य करने से।
ज़रा एक बार इस नज़र से भी सोचकर देखिये आपको क्या लगता है ?
गहरा नज़रिया गहरी सोच मगर ऐतराज़ करने वालों को तो बिना मुद्दे के भी मुद्दे मिल जाते हैं उनका कोई कुछ नही कर सकता।
ReplyDeleteअच्छा लिखा है आपने!
ReplyDeleteआपकी सोच एकदम सही है !
ReplyDeleteसाथ साथ चलने की ज़रूरत है किसी भी समाज में
ReplyDeleteहम एक ही विषय पर विमर्श कर रहे होते हैं, नज़रिया अलग-अलग हो सकते हैं, पर उद्देश्य तो एक ही होता है।
ReplyDeleteब्लाग में लोग अपने मन की ही लिखने आते हैं, अंतरजाल पर अभिव्यक्ति का सुलभ साधन होने के कारण ब्लाग लोकप्रिय भी है। असली पाठक तो सर्च इंजन से आते हैं और अपने काम का पढ़ कर बिना कमेंट किए चले जाते है। मै तो मानता हूं कि भले ही कमेंट एक भी न आए, परन्तु ब्लाग स्टेटस पर 1000-2000 पेज व्यु दिखने चाहिए। बेहतरीन पोस्ट के लिए आपको शुभकामनाए एवं बधाई.
ReplyDeleteआपने जो महसूस किया ...वो अपने दिल से लिखा और अच्छा लिखा !
ReplyDeleteहर नये अनुभव के लिए हमेशा तैयार रहें ..ख़ुशी-ख़ुशी !
शुभकामनाएँ!
स्त्रियाँ ही ज्यादातर नारी सम्बन्धी विषय पर लिखती हैं, वो इसलिए कि वो एक स्त्री की समस्या को ज्यादा अच्छी तरह समझ सकती हैं।
ReplyDeleteजब पुरुष भी उनसे सम्बंधित समस्यायों को गहराई से समझने लगेंगे और अपना पूरा सहयोग देंगे तो फिर समस्याएं रहेंगी ही नहीं।
सहमत हूं, आपके विचारों से।
ReplyDeleteइस समस्या के समाधान के लिए स्त्री और पुरुष दोनों को अपनी सोच में परिवर्तन करना होगा। एकपक्षीय आंदोलनों से सामाजिक बुराइयां समाप्त नहीं होंगी।
जैसा दिखे वैसा ही लिखिये, औरों की तथाकथित उपाधियों से प्रभावित हुये बिना।
ReplyDeleteआपको जो अच्छा लगा महसूस किया लिखा,और लिखना भी चाहिए ,,,किसी आरोप प्रत्यारोप लगाने से क्या होता है,,,,
ReplyDeleteRECENT POST : समय की पुकार है,
वाह!
ReplyDeleteआपकी इस ख़ूबसूरत प्रविष्टि को कल दिनांक 05-11-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-1054 पर लिंक किया जा रहा है। सादर सूचनार्थ
बढ़िया प्रस्तुती |
ReplyDeleteबधाई ||
जो जी में आये लिखिए , अच्छा बुरा का कोई प्रतिमान नहीं है ,बाकि सामाजिक समस्या तो पुरे समाज के हल ढूढने पर ही समूल जाएगी .
ReplyDeleteजो कहते हैं कि आपको लिखना नही आता वो आपके अच्छा लिखने से परेशान हैं
ReplyDeleteनिर्भर है सब सोच पर, पढ़ी कथा इक आज ।
ReplyDeleteजुड़वाँ बच्चे एक से, शिक्षा दीक्षा काज ।
शिक्षा दीक्षा काज, एक है किन्तु पियक्कड़ ।
दूजा सात्विक सोच, नहीं बन पाता फक्कड़ ।
कारण लेता पूछ, बता देते यूँ रविकर ।
फादर दारुबाज, हमेशा पीते भर भर ।।
उत्कृष्ट प्रस्तुति का लिंक लिंक-लिक्खाड़ पर है ।।
ReplyDeleteSahmat Hun....
ReplyDeleteहालत बद से बदतर इसलिए हुए हैं क्योंकि महिलाओं के जीवन से जुड़ी समस्याओं को उस तरह से संबोधित ही नहीं किया गया जैसा की होना चाहिए था | सार्थक पोस्ट .....
ReplyDeleteअपने अनुभव आप बांटती हैं ... सबके अपने अपने विचार होते हैं .... आंदोलन या कानून बमामे से कुछ बदलने वाला नहीं ... यदि अधिकार की बात करते हैं तो कर्तव्यों को नहीं भूलना चाहिए ... सार्थक पोस्ट
ReplyDeleteपूरी तरह सहमत हूँ आपके विचारों से.
ReplyDeleteनारी से जुडी समस्याओं के बारे में नारियां बेहतर जानती अथवा लिखती हैं क्योंकि वह सब उनका भोगा यथार्थ होता है .
ReplyDeleteब्लॉग अभिव्यक्ति का सहज सरल माध्यम है ,सहजता से जो लिखा जाए वही उचित है .
हर समस्या को सिर्फ एक नारीवादी के चश्मे से देखना ठीक नहीं , अधिकार और कर्तव्य का सही संतुलन पुरुष और नारी दोनों के जीवन के लिए उपयुक्त है !
मुद्दे तो कई होते हैं उनपर कोइ भी अपने विचार रख सकता है वह चाहे पुरुष हो या स्त्री |अपने विचार लिपि बध्य करने के लिए हर व्यक्ति स्वतंत्र भी है |यह तो अपना सोच है की किस विषय को लिखने के लिए चुने |मुझे तो आपका लेखन अच्छा लगा |चूंकि आप इस क्षेत्र में नई हैं बस एक बात का ध्यान अवश्य रखें की किसी व्यक्ति विशेष पर नाम से प्रहार ना करें निष्पक्ष
ReplyDeleteहो कर लिखें |मुझे आपके ब्लॉग पर अच्छा लगा |मेरी शुभकामनाएं |
आशा
सबसे महत्वपूर्ण बात है ,हमें बिना किसी पूर्वाग्रह के जो लगता है वही संयत ढंग से लिखें .ईमानदारी से लिखी हुई वस्तु अपना प्रभाव डाले बिना नहीं रहती.सबके अपने दृष्टिकोण हैं उनमें भी दूसरे की बात समझने का लचीलापन रहे तो बहुत ही अच्छा.
ReplyDeleteसौ प्रतिशत सही नज़रिया ...
ReplyDeleteपर दर्द वे लिखते हैं - जो मजबूत होकर भी कमज़ोर हैं और उनके शब्द परिवर्तन की बात नहीं करते
बल्कि कहते हैं - बचाओ ... या मेरी सुन लो
ye bada vast topic hai ...aap bahut achchha likhti hain ...hamko to bas itna pata hai...
ReplyDelete
ReplyDeleteहम सभी यहाँ वही लिखते है जो हमारा निजी अनुभव है या जो हम अपने आप पास देखते है , जिस तरह आप अपना नजरिया रखती है उसी तरह टिप्पणी में कुछ भी लिखना बस उस विषय पर अपने नजरिये से दूसरो को अवगत करना होता है , जो आप से सहमत और असहमत दोनों हो सकते है , उसे मानना न मानना आप के ऊपर है असल में तो हमें दूसरो के नजरियों को पढ़ कर एक बार खुद को अपने विचारो को परख लेना चाहिए वो भी केवल अपने लिए न की दूसरो के लिए , महिला विषयो पर पुरुष भी लिखते है और नारी ब्लॉग के पिछली पोस्टो को देखिये आप को समर्थन करती टिप्पणीय भी मिलेंगी । नारी विषयों पर लिखने का अर्थ बस ये होता है की जिन लोगो ने इस तरीके से सोचा नहीं है जो नारी के कष्टों को जानते नहीं है अपने नारी के प्रति पारंपरिक व्यवहार के परिणामो और प्रभावों के बारे में नहीं जानते है वो महिलाओ के लेखो से जान ले और एक बार फिर से अपने व्यवहार पर विचार कर उन्हें बदले , ये करना उनकी अपनी समझ है , ;लोग सामने ये बात माने या न माने जरुरी ये है की लोग अपने व्यवहार को बदले नारी को समझे और ये हो भी रहा है , केवल इस ब्लॉग जगत में मैंने इस बदलाव को देखा है , रातो रात कोई क्रांति हो जाएगी ऐसी उम्मीद तो कोई नहीं करता है बदलाव धीरे धीरे ही आते है और हर तरफ से काम करने से आते है ।
दिल से निकले सच्चे जज़्बात......सलाम है आपकी बेबाकी और सच्चाई को........आपकी बहुत सी बातों से सहमत हूँ......मैंने खुद कई बार ये लिखा है की सिर्फ रोना रोने से कुछ नहीं होने वाला हिम्मत जुटाओ और आगे बढ़ो......बहुत ही ज़बरदस्त लिखा है आपने ।
ReplyDeleteमेरा मानना है कि मन से लिखना चाहिए जैसा खुद को लगे.और यह ब्लॉग उसी अभिव्यक्ति का ही सुलभ माध्यम है. बाकी तो हर इंसान अलग है उसकी सोच अलग है.
ReplyDeleteनारी पुरुष का तो सवाल ही नहीं है.
ReplyDeleteमुद्दों पर बात होनी ज़रूरी है. वह किसी से भी सम्बंधित हो सकती है.
जो खुद को सही लगे , वही लिखना चाहिए. लेकिन सोच को ओपन रखना चाहिए.
आपकी बात से बिल्कुल सहमत हूँ ... विचारात्मक प्रस्तुति
ReplyDeleteयूँ तो बलात्कार जैसी घटनाएँ वर्षों से होती चली आ रही हैं ।भारत सरकार ने बलात्कार जैसे अपराध को रोकने के लिए कठोरतम कानून बनाये हैं परन्तु इस कानून का लाभ कुछ ही लोगों तक पहुच पाता था । कारन स्पष्ट था की अपराधी को पकडवाने के लिए जागरूकता का अभाव था । आज महिलाओं के सामाजिक आन्दोलन से जागरूकता आयी है जिसका परिणाम है की अब बलात्कार की घटनाएँ बढती हुई सी प्रतीत होती हैं परन्तु वास्तविकता यह है की पहले ये अपराध दब जाते थे या इज्जत के नाम पर दबा दिए जाते थे परन्तु अब वे एफ आई आर में तब्दील हो रहे हैं । आपका पोस्ट नारी को अपने अधिकारों के लिए समस्या को जागरूक कर रहा है । इस प्रभावशाली प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार ।
ReplyDeleteइस बात से कि नारी अब सक्षम है उसकी मुक्ति के लिये किसी कोशिश की ज़रूरत नही रही, मैं असहमत हूँ । बिहार मे अभी भी दशा सचमुच ही शोचनीय है । पटना नगर मे भी वही आलम है । चिन्तनीय पहलू यह कि महिला यहाँ अपनी गुलामी की इतनी आदी हो चुकी है कि मुक्ति के लिये कोई छटपटाहट नही दीखती ।
ReplyDeleteइस मुद्दे पर प्रतिक्रिया की अपेक्षा है
ReplyDeletenayab soch aur nayab prastuti
ReplyDeleteसामाजिक परिवेश में, आयी है अब मोच।
ReplyDeleteलोगों की होने लगी, अलग किस्म की सोच।।
बिलकुल आपने अपने विचार यहाँ प्रस्तुति किए उसके लिए आपका हार्दिक धन्यवाद, किन्तु यहाँ उझे ऐसा लगा की केवल एक बिन्दु के अद्धार पर आपने पूरी पोस्ट का निष्कर्ष निकाल लिया क्यूंकि मैंने यह नहीं कहा की नारी अब सक्षम है तो उसकी मुक्ति के लिए किसी कोशिश की कोई जरूरत नहीं है। बल्कि यहाँ मेरे कहने का तात्पर्य यह था कि नारी मुक्ति के लिए या उसके अधिकारों के लिए प्रयास ज़रूर होने चाहिए लेकिन सिर्फ महिलाओं के हंगमा खड़ा करने से बात नहीं बनेगी इस विषय में, यदि वास्तव में जागृति लाना है तो वह तभी संभव है जब स्त्री और पुरुष एक ही दिशा में एक सी सोच रखकर कुछ करें।
ReplyDeleteअपने आलोचना को हमेशा साकारात्मक रूप में लेने से फ़ायदा ही होता है !! जो बोलते हैं आप को लिखने नहीं आता ,उनसे पूछिये आप और बेहतर कैसे लिख सकती हैं .... !!
ReplyDeleteब्लॉग एक खुला डायरी है .... इसमें तो वही होगा जो आप अपनी अनुभूति की अभिव्यक्ति करती हैं .... किसी को पसंद आता है या नहीं ,ये मायने नहीं रखता .... !!
जो हालात नारियों के आज हैं ,कमोबेश कल भी थे ,कल भी रहेगें ..... क्यूँ कि इसकी जिम्मेदार और जिम्मेदारी एक हद तक ख़ुद नारी ही थी ,है या होगी .... शासन करना कौन नहीं चाहता ..... ??
मैं तो सैकड़ों बार लिख चुकी हूँ कि हमारा समाज परिवारवादी समाज है इसलिए हमारा चिन्तन समग्रता में होना चाहिए लेकिन जो व्यक्तिवादी समाज की कल्पना रखते हैं वे ही केवल पुरुष और नारी के भेद से विचार करते हैं।
ReplyDeleteमेरे ख्याल से रश्मि रविजा जी की छोटी सी टिप्पणी में ही आपकी पोस्ट में उठाए गए सभी सवालों का जवाब आ गया।यदि स्त्री पुरुष सभी इन मसलों पर एक समान सोच रखने लगे तो समस्या वैसे ही नहीं रहेगी।और कोई आपके लेखन को सही नहीं मानता तो उनकी आप मत सुनिए क्योंकि आप अच्छा लिखती हैं।वैसे भी यहाँ तो हम अपने अनुभव ही रख रहे है।इसमें अच्छा लेखन और बुरा लेखन जैसी कोई बात ही नहीं है।
ReplyDeleteपल्लवी जी,
ReplyDeleteआपको पहली बार पढ़ा ... आप बिना पक्षपात के कहते हैं ... यही गुण ब्लोगर में होना भी चाहिए ... आपकी भाषा ऎसी नहीं जो समझ न आये .... मंतव्य स्पष्ट है, भाव स्पष्ट हैं।
— कुछ का लेखन ऐसा होता है जिस पर प्रतिक्रिया करने का तुरंत मन करता है। सबकुछ ऐसा न लिखो जो एक बार में मान लिया जाए ... इसलिए कुछ ऐसा भी लिखो जो विवादस्पद हो या मंतव्य को पहली बार में स्पष्ट न करता हो तब तो आप जरूर टिप्पणियों का शतक लगायेंगे मतलब एक गरमागरम बहस छेड़ देंगे।
— कुछ का लेखन उपदेशपरक होता है जिसपर केवल 'हामी' और 'साधुवाद' वाली प्रतिक्रियाएँ ही होंगी। वहाँ आने वाले पाठक उपस्थिति दर्ज कराकर औपचारिकता निभाते हैं या फिर सुबह-सुबह की धर्म डोज़ लेकर अपने-अपने कर्म क्षेत्रों में दौड़ जाते हैं।
— कुछ का लेखन उतार-चढ़ाव वाला होता है ... कभी भावों की नमी, कभी भावों की तीव्र गरमी, कभी भावों का झंझावात तो कभी भावों का बेतरतीबपना ...
शायद आपके लेखन में सभी रंग होंगे ... पिछले लेखों को पढूँगा तो जान जाऊँगा।
टिप्पणियों पर टिप्पणियाँ नहीं करूँगा ... मन तो बहुत था लेकिन पहली बार पाने पर शिष्टाचार निभाऊंगा। बहुतों की टिप्पणियाँ भी पसंद आयीं।
सुधार :
ReplyDeleteमन तो बहुत था लेकिन पहली बार आने पर शिष्टाचार निभाऊंगा।
Kuch logon k liye blogging famous hone ka jariya hai.. mera maanna hai ki blog par aap apne vichar likhety hain..
ReplyDeleteApne khud k blog par kya likhna hai kya nahi ye sirf aapko decide karna hai.. Jo kehtey hain aapne acha nahi likha unhe shayad khud par hi yakeen nahi hai..
Rahi baat naari ki to jarur ek blog post se kuch nahi hota lekin kai baar ek choti si chingaari ki hi jaruat hoti hai jaagrukta laane k lie.. :) :)
सार्थक पोस्ट.टिप्पणियों में भी सार्थक मंथन हो रहा है.
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