आज मैं जो कुछ भी लिखने जा रही हूँ वह एक ऐसी घटना है जिसे यदि आप जीना चाहते हैं तो अपनी कल्पना शक्ति को बढ़ाईये. जितना ज्यादा आप अपनी कल्पना के घोड़े दौड़ाएंगे, उतना ही ज्यादा आपको इसे पढ़ने और फिर देखने में मजा आएगा... जी हाँ, ‘सही पढ़ा आपने’ देखने में भी मजा आयेगा. तो मान लीजिये आप एक 'रग्बी' जो की (खेल है) की टीम का हिस्सा हैं और आप अपनी टीम के अन्य साथियों के साथ एक हवाई यात्रा कर रहे हैं इसलिए इस वक़्त केवल हवाई यात्रा के विषय में ही सोचिये उड़ने से पहले होने वाले रोमांच और खुशी के बारे में सोचिये, सोचिये आप इतने खुश है कि आप ना सिर्फ अपने परिवार वालों के साथ बल्कि पूरे क्रू मेंबर्स के साथ भी फोटो खिंचवा रहे है. यह एक ऐसी यात्रा है जो उरुगुए से चिली एक चार्टड जहाज से शुरु होती है, ऐसे में आप अपने साथ के अन्य सभी यात्रियों को बस केवल नाम से जानते है और कुछ को बस उनके चेहरे से पहचानते है कि यह व्यक्ति आपके साथ पूरी यात्रा में रहेगा. इसके अतिरिक्त आपका और उस व्यक्ति आपस में कोई ओर सम्बन्ध नहीं है. हालांकि कुछ ऐसे भी लोग हैं जिन्हें आपकी टीम का सदस्य होने के नाते, आपकी उनसे गहरी मित्रता है. आपका उनसे एक अलग किस्म का लगाव, है जुड़ाव है.
फिर बारी आती है आपके ठीक बगल में बैठे आपके उस सहयात्री की जिसे आप अपना एक औपचारिक परिचय देते है. बदले में वह अभी आपको अपना एक सूक्ष्म परिचय देता है. कुछ देर बाद आप अपने सभी सह यात्रियों के साथ अपने गंतव्य की और उड़ान भरते है. पूरी यात्रा के दौरान आप और आपके सभी सह यात्री खुश है कुछ गीत गा रहे है, कुछ बाते कर रहे है, सभी अपने अपने तरीके से अपना और अपने साथियों का मनोरंजन कर रहे है. कुछ देर तक सभी कुछ सामान्य चल रहा है. कुछ ही देर में मौसम ख़राब होने की घोषणा होती है और सभी को अपनी जगह से ना हिलने और अपनी अपनी कमर की पेटी बाँध लेने की हिदायत दी जाती है. आप सब अपनी अपनी कल्पनाओं में इस बात का ध्यान रखें की यह कोई आजकल की साधारण उड़ान नहीं है, बल्कि यह उस समय की बात है जब हवाई यात्रा सभी के लिए आसान नहीं हुआ करती थी. खैर अब जरा सोचिये आपकी चील गाड़ी अर्थात हवाई जहाज अचानक एक ऐसी जगह जाकर गिर जाए मतलब क्रेश हो जाए, जहाँ का न्यूनतम तापमान इतना कम हो जिसके विषय में आप सोचना तो छोड़िये, आप वो भी नहीं कर सकते जो मैंने करने को कहा है... अर्थात कल्पना.
लेकिन रुकना नहीं है कल्पना तो करते ही रहिये. कल्पना कीजिये -30 तापमान की अर्थात ठंड की पराकाष्ठा, हाँ तो हम कहा थे प्लेन क्रेश होने पर, तो भई अब क्या....? सोचिये इतनी भयानक ठंड की खून जम जाये, आपके आस -पास के लोग जो अब तक आपके सह यात्री थे ठंड से मरने लगे, आपके पास ना खाने को कुछ है ना ही गरम कपड़ों की कोई व्यवस्था अर्थात जो आप पहनकर चढ़े थे बस वहीं आपका है. दूर दूर तक जीवन का कोई नामों निशान नहीं, सिर्फ बर्फ ही बर्फ, सर्द रातें और बर्फ़ीली हवाएं चल रही है. ना सिर्फ ठंड बल्कि भूख और प्यास से भी आपके आस पास के लोग तड़प तड़पकर मर रहे हैं. तो कोई एक यह निर्णय लेता है कि अब आपको अपने मरे हुए साथियों को काटकर खाने के अलावा जिंदा रहने के लिए कोई ओर विकल्प नहीं है. तो क्या होगा. ? आधे से अधिक लोग इस बात के लिए तैयार नहीं है. पर कुछ लोग तैयार हैं और उन्होंने प्लेन के उस टूटे हुए हिस्से से दूर जाकर ऐसा किया भी, ऐसा लगा जैसे मनुष्य अचानक राक्षस में बदल गया. और बहुत से भूखे लोग उस लाश पर टूट पड़े.
दिन बहुत बीत चुके थे कोई भूख से मर रहा था तो कोई ठंड से, कुछ जो घायल थे वह संक्रमण का शिकार हो चले थे. अधिकतर लोगों को उस समय भगवान याद आ रहे थे. तो किसी किसी ने उम्मीद का दामन अब भी नहीं छोड़ा था. इतने मुश्किल समय में भी साथ रहने पर लोगों को एक दूसरे की अहमियत समझ आने लगी थी. कुछ लोगों के बीच दोस्ती गहराने लगी थी. जरा सोचिये कोई एक आपके पास एक इंसान की लाश का एक कच्चा टुकड़ा लेकर आता है और कहता है इसे बर्फ के साथ खा लो दोस्त, खाने में आसानी होगी और पता भी नहीं चलेगा.... तो क्या आप खाएंगे...? यह दृश्य देख कुछ की आँखों में डर है, तो कुछ की आँखों में दुःख के आँसू, तो कोई हताश निराश यह सोच रहा है कि उसके मरने के बाद उसकी लाश भी उसके साथियों के काम आएगी. लोग दिल पर पत्थर रख बस अपने ही साथियों की लाशों के टुकड़े कच्चे ही खा रहे हैं. बस सिर्फ इसलिए कि वह ज़िंदा रहना चाहते है. इस तरह जीते -जीते अब केवल 17 लोग शेष रह गए हैं. कुछ और समय बीत जाने के बाद लगभग 57 दिन, तीन लोग यह निर्णय लेते हैं कि वह जीवन की तलाश में निकलेंगे. बाकी के 14 लोग चौदह लोग उनमें विश्वास दिखाते है और उनके साथ भोजन के लिए वही मांस के टुकड़े बाँध देते हैं.
किसी तरह बर्फ़ीली पहाड़ियों पर खुद को ज़िंदा रखते हुए वह एक ऐसे स्थान पर पहुँच जाते हैं, जहाँ से वह एक दूसरे व्यक्ति के जरिये मदद माँगने और उन्हें अपने साथियों के विषय में बताते है साथ ही वह यह भी बताते हैं कि वह कौन से वाले प्लेन क्रेश में बचे हुए लोग हैं. सरकार तुरंत हरकत में आती है और तुरंत ही निर्णय लेती है और बाकी बचे 14 लोगों के लिए हैलीकाप्टर भेजती है. जिसमें वो व्यक्ति भी बैठकर जाता है, जिसने यह निर्णय लिया था कि वह जीवन की खोज में निकलेगा...और उसका दूसरा साथी वहीं रुककर अपने अन्य साथियों के आने का इंतजार करना पसंद करता है और अपने साथ लाए हुए अपने सह यात्री की लाश के उन टुकड़ों को मिट्टी में दफन करता है जिन्हें वह ज़िंदा रहने के लिए खाने को लाया था क्यूंकि तब वह भी यह नहीं जानता था कि उसे मंजिल मिलेगी भी या नहीं.कुल मिलाकर सभी लोग ऐसी हालत में 72 दिन रहे थे जरा सोचिए कैसे रहे होंगे और जीवन बच जाने के बाद भी उन्हें इस सब से मानसिक रूप से निकालने में कितना समय लगा होगा.
बहुत बढ़िया प्रस्तुतिकरण
ReplyDeleteयदि यह सत्य घटना है, तो निश्चित रूप में घटना के साक्षी यात्रियों को कितना कष्ट व पीड़ा हुयी होगी!! इसकी सुरक्षित व्यक्ति कल्पना ही कर सकता है। आपने उक्त फिल्म की कथा पर अच्छी समीक्षा की है। वास्तव में यह पढ़कर एक विस्मयकारी अनुभव हुआ।
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