यूं तो बात अनुभव की है और कई बार अनुभव परिस्थितियों पर निर्भर करते है अर्थात यदि किसी विषय विशेष को लेकर आप को अपनी ज़िंदगी में कोई अनुभव होता है तो वो अनुभव बहुत हद तक परिस्थिति पर भी निर्भर करता है कि उस वक्त परिस्थिति आपकी मांनसिकता के अनुकूल है या विपरीत है क्यूंकि यदि उस वक्त आपकी मनः स्थिति के मुताबिक परिस्थिति अनुकूल है तो आपका अनुभव सुखद रहेगा और यदि परिस्थिति विपरीत है तो अनुभव दुखद भी हो सकता है दुखद अर्थात खरा या कड़वा या फिर यूं कहिए जैसे खाने में कभी-कभी नमक का ज्यादा होना। ऐसा ही कुछ मेरे साथ भी होता है कभी-कभी और क्यूँ न हो आखिर हूँ तो मैं भी एक इंसान ही इसलिए किसी-किसी बात को लेकर मेरे भी विचार बदलते रहते हैं। कभी ऐसा सोचती हूँ तो कभी वैसा।
अब देखिये ना कामकाजी महिलाओं और गृहणियों को लेकर आज तक मैंने कितना कुछ लिखा है। लेकिन फिर भी मुझे खुद कभी-कभी ऐसा लागने लगता है कि कामकाजी होना ज्यादा अच्छा है। अब जैसे उदहारण के तौर पर यदि मैं कहूँ तो मेरे बेटे की कक्षा में उसके जितने भी दोस्त हैं उन सभी दोस्तों की मम्मियाँ जॉब करती है जिसके चलते उसे भी ऐसा लगता है कि मेरी माँ को भी जॉब करनी चाहिए क्यूंकि उसे ऐसा लगता है कि यदि मैं जॉब नहीं करती तो मैं कुछ नहीं करती अर्थात मुझे बहारी दुनिया के विषय में कोई जानकारी नहीं जिसके चलते मैं यहाँ इंगलेंड में रहने लायक नहीं हूँ। दरअसल उसकी ऐसी भावना या ऐसी सोच उसके नज़रिये से गलत नहीं है, क्यूंकि उसकी पढ़ाई यही से शुरू हुई है और जब से उसे थोड़ी बहुत समझ आयी है, तब से उसने यही देखा है उसकी माँ के अलावा बाकी सभी बच्चों की माँयें यहाँ जॉब करती है। जबकि इंडिया में उसकी दादी, नानी चाचीयाँ कोई जॉब नहीं करता। तो स्वाभाविक है उसके मन में यही छवि बननी ही थी, कि इंडिया में सभी औरते ऐसी ही होती है जो केवल घर में रहती है। इसलिए उन्हें बाहर की दुनियाँ के विषय में कोई खास जानकारी नहीं होती है।
यही सब देख कर लगता है कि यार जॉब करनी चाहिए हालांकी मैंने उसकी यह गलतफ़हमी कई बार दूर करने की कोशिश भी की, कई बार उसे समझाया भी की ऐसा नहीं है जैसा वो सोचता है। लेकिन थोड़े दिन शांति रखने के बाद फिर उसे लगने लगता है कि नहीं वो जो सोचता है वही सही है। इस सब के चलते ही मुझे भी कभी -कभी लगने लगता है कि उसे दिखाने के लिए ही सही मुझे जॉब कर लेनी चाहिए। मगर फिर दूसरे ही पल यह भी लगने लगता है कि नहीं गृहणी होने में भी कोई बुराई नहीं है। क्यूंकि मेरे जॉब कर लेने से शायद उसकी यह सोच पक्की हो जाएगी जो मैं ज़रा भी नहीं चाहिती।
यानि मुझे "पल में तोला पल में माशा" वाली स्थिति महसूस होने लगती हैं। वैसे तो मुझे अपने पति देव से कोई शिकायत नहीं, ना ही मुझे पर किसी तरह की कोई बंदिश है। मैं जब चाहूँ जो चाहूँ कर सकती हूँ। फिर चाहे वो मन चाहा कोई काम हो या पैसा खर्च करना। मैं जब चाहूँ जितना चाहूँ बेझिझक पैसा खर्च कर सकती हूँ। उन्होंने आज तक मुझे कभी नहीं रोका। अरे-अरे आप यह मत सोचिए कि मैं किसी तरह का कोई दिखावा कर रही हूँ। ऐसा ज़रा भी नहीं है, मैं तो बस अपनी बात को सही ढंग से कहने की कोशिश कर रही हूँ कि मुझ पर किसी तरह की कोई बंदिश नहीं है फिर भी कभी-कभी लगता है कि यार जॉब करनी चाहिए। जॉब करने से आत्म निर्भरता तो आती ही है साथ ही आत्म विश्वास भी बढ़ता है। यानि कुल मिलाकर एक अलग सी स्वतंत्रता का अनुभव होता है।
कहने का मतलब और कुछ न हो कम से कम कुछ भी करने से पहले ज्यादा सोचना नहीं पड़ता। क्यूंकि आप जो भी करते हो वो आपका अपना निर्णय होता है, इसलिए अंजाम की ज्यादा चिंता नहीं होती। हालांकी इसका मतलब यह नहीं है कि अंजाम की परवा होती ही नहीं है। आखिर जो भी है आपकी मेहनत भी उसमें शामिल है ऐसे में बिना सोचे समझे तो आप उस पर पानी नहीं फिरने दे सकते है ना !!! ऐसा ही शायद हर गृहणी भी सोचती है इसलिए वो भी अपने पति की कमाई को यूं ही केवल अपने शौक के लिए नहीं उड़ा देती। इसलिए पति भी बेफिक्र रहा करते है और कोई बंदिशें भी नहीं लगाते, क्यूंकि उनको पता है कि मेरी पत्नी जो भी करेगी सोच समझ कर ही करेगी। यूं ही नहीं कोई भी निर्णय लेकर अपनी मन मुताबिक पैसा पानी की तरह बहा देगी। यानि दोनों ही सूरतों में पैसा खर्च करने से संबन्धित कोई भी निर्णय बहुत सोच समझ कर ही लिया जाता है। फिर चाहे वो कोई कामकाजी महिला का निर्णय हो या किसी गृहणी का, मगर फिर कभी -कभी दिल में ख़्याल आ ही जाता है विपरीत परिस्थिति का वो शायद इसलिए कि वो कहते है न
"पड़ोसी से के घर के आँगन की घास
हमेशा खुद के आँगन की घास से ज्यादा ही हरी नज़र आती है"
शायद इसलिए जैसे मुझे जॉब को लेकर लगता है कभी-कभी हो सकता है ऐसा ही जॉब वाली महिलाओं को हम गृहणियों को लेकर भी लगता ही कभी-कभी, कि रोज़-रोज़ की ऑफिस की टेंशन से अच्छा है पति की कमाई पर ऐश करो :-) आखिर हैं तो वो भी इंसान ही ना। वाकई ऐसे अनुभव ज़िंदगी में ना जाने कितनी बार होते हैं जिनमे ऐसा लगता है कभी यह सही तो कभी लगता है वो सही है और फिर थोड़ी देर बाद ज़िंदगी वही अपने ढर्रे पर आ जाती है और उस क्रम में चलने लगती है जैसे पहले चल रही होती है। बस ये कमबख़्त दिमाग ही है जो एवईं यहाँ वहाँ भटकता रहता है।
मगर फिर सोचा कि ऐसी कितनी महिलायें हैं हमारे देश में हमारे समाज में जिनको इस मामले में इतनी स्वतन्त्रता नहीं मिल पाती जितनी हमको मिली है। लोग आज भी अपनी पत्नियों के साथ कैसा-कैसा सुलूक करते है। उन महिलाओं के लिए तो जीवन जीना कठिन है फिर चाहे वो कामकाजी हो या ना हो, सामने वाले को कोई फर्क नहीं पड़ता। कई बार तो कई महिलाओं से काम कराया ही जाता है महज़ पैसे के लिए ताकि उनके पति अपने शौक और जरूरते पूरी कर सकें फिर चाहे उनकी पत्नी काम करना चाहे या ना चाहे उसकी मर्जी की कोई अहमियत नहीं हुआ करती। फिर ऐसे में बिना पति की इजाज़त पैसा खर्च करना चाहे जरूरत के लिए ही क्यूँ ना करना हो, उस स्त्री के लिए बहुत दूर की बात है और शौक का तो सवाल ही नहीं उठता।
मैं एक गृहणी हूँ मेरी मम्मी भी एक गृहणी है मेरे दादी, नानी सभी गृहणी ही रही है शायद इसलिए इसलिए मुझे कभी जॉब करने का ख़्याल भी नहीं आया न ही ज़रूरत ही महसूस हुई कभी, लेकिन कभी-कभी ऐसा कुछ हो जाता है कि कहीं दिल के किसी कोने में लगने लगता है कि जॉब करनी चाहिए। मगर जब उपरोक्त लिखी बातों को कहीं पढ़ती हूँ सुनती हूँ या देखती हूँ और जब यह ख़्याल आते हैं तो लगता है भगवान ने जिसको जो दिया वही अच्छा है उसमें ही इंसान को खुद को खुशनसीब समझना चाहिए, ना कि दूसरों को देखकर खुद को कम समझने की भूल करनी चाहिए। कामकाजी महिलाओं और गृहणियों दोनों का ही अपनी-अपनी जगह एक अलग ही महत्व है। है न ... आपको क्या लगता है
कहतें हैं संतोष धन सबसे बड़ा धन है.
ReplyDeleteजाब करने या न करने से कोई फर्क नही पड़ता,
जीवन में सार्थक लक्ष्य होना चाहिए और
उस लक्ष्य की तरफ बढ़ने का ईमानदार प्रयास.
एक ग्रहणी का लक्ष्य भी कभी कम नही होता.
फिर इन्टरनेट के इस युग में समय मिलने पर
कंप्यूटर पर भी आजकल की ग्रहणी अपनी सार्थकता
सिद्ध कर रहीं हैं.
आप बिना जाब के भी नेट पर अपना वैचारिक
सार्थक आदान प्रदान बनाए रखतीं है,यह भी किसी जाब से
कम नही.
समय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर आईएगा,पल्लवी जी.
हर एक का जीवन विशेष है, औरों के ढाँचों में ढलने योग्य तो बिल्कुल भी नहीं..
ReplyDelete"कामकाजी महिलाओं और गृहणियों दोनों का ही अपनी-अपनी जगह एक अलग ही महत्व है। है न ... "
ReplyDeleteगृहणियां
इस शब्द को आज कि स्थितियों मे कैसे परिभाषित करेगे ।
अपने देश कि राष्ट्रपति एक महिला हैं , विवाहिता हैं क्या वो गृहणी हैं ????
सोनिया गाँधी कांग्रेस कि नेता हैं , विधवा हैं क्या वो गृहणी हैं ??
सुषमा स्वराज विपक्ष कि नेता हैं , विवाहित हैं क्या वो गृहणी हैं ??
अगर वो गृहणी हैं तो क्या गृहणी वो केवल इस लिये हैं कि वो विवाहित हैं ??
एक अविवाहित नारी , जो अपना घर भी चलती हैं और बाहर काम भी करती हैं क्या वो गृहणी हैं ?? अगर नहीं हैं तो उसके लिये क्या शब्द कहा जायेगा ।
बदलते समय के साथ साथ शब्दों कि परिभाषाये भी बदलती हैं । आज के परिवेश मे सिंगल काम काजी महिला कि संख्या मे बढ़ोतरी हो रही हैं । उनमे से बहुत सी अलग रहती हैं और अपने काम के साथ साथ अपना घर भी चलाती हैं । गृहणी का सीधा अर्थ शायद घर चलने मे सक्षम होना ही होता हैं । लेकिन हमारे समाज मे गृहणी को एक विवाहिता से जोड़ कर देखा जाता हैं ऐसा क्यों । http://indianwomanhasarrived.blogspot.in/2010/07/blog-post_27.html
क्या यही से तो नहीं "एक गृहणी का दोयम का दर्जा " शुरू होता हैं गृहणी को नॉन प्रोडक्टिव वर्कर माना गया हैं यानी जो बाहर काम करता हैं वो प्रोडक्टिव वर्कर होता हैं । जनगणना में देश की गृहणियों को वेश्याओं, भिखारियों और कैदियों की कैटेगिरी में रखा गया। इतना ही नहीं उन्हें पूरी तरह से नॉन-प्रोडक्टिव वर्कर भी बताया गया। http://indianwomanhasarrived.blogspot.in/2010/07/blog-post_24.html
हमारे ब्लॉग जगत कि बहुत सी नारियां विवाहित हैं क्या वो अपने को गृहणी मानती हैं ?? क्या ये गृहणी होना उनका स्वेच्छा से चुना हुआ "काम " हैं या समाज कि बनी हुई लकीरों पर चलने के कारण वो "गृहणी " बन गयी हैं ।
क्या बाहर नौकरी करना और अपना घर भी संभलना ज्यादा मुशकिल काम हैं जैसे एक अविवाहित , नौकरी करती नारी करती हैं
या
केवल घर संभालना , पति और बच्चो कि देखभाल करना ज्यादा मुशकिल काम हैं जैसे एक विवाहित नारी करती हैं
या
घर और ऑफिस दोनों संभालना जैसे एक विवाहित नारी करती हैं
पल्लवी जी
बात महत्व की नहीं हैं क्युकी हर व्यक्ति का समाज में एक योगदान हैं और उसका महत्व हैं बात हैं आज के समय में हमे अपनी सोच में कामकाजी और गृहणी की परिभाषा को सही करना होगा . आप ने जिस प्रकार से महत्व की बात की हैं वो सोच आज की नारी की स्थिति में सही नहीं बैठी
नौकरी महज पैसा कमाने के लिये नहीं होती हैं , नौकरी अपने को समान समझने , अपने को आगे लेजाने , अपने को सशक्त करने के लिये भी की जाती हैं
नारी की नौकरी से परेशानी भी हैं आराम भी हैं आप ये कहना चाहती हैं मै समझ सकती हूँ , चुनना हमे हैं ये भी समझ सकती हूँ पर
कामकाजी और गृहणी दो अलग अलग विभाजित सेक्टर हैं ये मै नहीं मानती ये बहुत कंडीशन की ही सोच हैं
पल्लवीजी, आपकी समस्या है कि आपका बेटा आपको बुद्धिमान नहीं मानता क्योंकि आप नौकरी नही करती। आप प्रतिदिन एक नवीन और प्रासंगिक विषय पर बात कीजिए, उसे समझ आ जाएगा कि नौकरी से ज्ञान का कोई वास्ता नहीं है।
ReplyDeleteविषय बड़ा गंभीर है, गृहणी का सम्मान |
ReplyDeleteधन अर्जन से जोड़ के, देखे शिशु नादान |
देखे शिशु नादान, चलो मूल्यांकन करते |
बिस्तर बस्ता केश, रोज ड्रेस टिफिन संवरते |
ममतामयी स्पर्श, व्यवस्थित कमरा पाता |
होमवर्क बिग-मार्ट, जरुरत पर लिपटाता ||
कामकाजी महिलाओं और गृहणियों दोनों का ही अपनी-अपनी जगह एक अलग ही महत्व है ...आपकी इस बात से सहमत हूँ सार्थकता लिए बेहतरीन प्रस्तुति।
ReplyDeleteaap bhi kisko samjha rahi ho rachna ji. pallvi ji ko ajit ji ki sikh man leni chahiye aur apne vicharo ko khichadi hone se rokna chhaiye, ye kabhi ekmat nahi ho sakti.
ReplyDeleteपल्लवी जी
ReplyDeleteजो आप सोच रही है उसमे कुछ भी गलत नहीं है ये सारी बाते सभी महिलाए एक समय बात सोचती है हम जैसी भी जो बच्चो के कारण नौकरी छोड़ कर बठी है और वो भी जो नौकरी कर रही है और सोचती है की हाय बच्चो को ठीक से समय नहीं दे पा रही है | बेनामी जी कहा रहे /रही है की ये विचारो की खिचड़ी है आप बात को नहीं समझेंगी किन्तु वो गलत है ये वो मानसिक अवस्था है जब हम किसी भी बात के अच्छे और बुरे दोनों परिणामो को जानते है तब ये घालमेल होना और क्या निर्णय करे में परेशानी होना बड़ी आम बात है | बड़ी बड़ी वैचारिक बाते छोड़ आप को कुछ आम उपाय बताती हूँ , सबसे पहले की बेटो की नजर में ज्यादातर माँ कम जानकर होती है जब तक की माँ एक सुपर मॉम ना हो | अपने शहर और जिस देश में रह रही है उसके इतिहास भूगोल जितना कुछ भी जान सकती है जाने हर बात में भारत में ये वो का नारा देना बंद करे उसे विश्वास दिलाये की आप भले भारत से है किन्तु अब आप पूरी तरह से उस देश की है और वहा के बारे में उतना ही जानती है जितना की वहा रहा रही कोई महिला अपने शहर के हर गली नुक्कड़ की जानकारी रखिये भले वो आप के काम अभी ना आये | कभी भी घर से बाहर निकलने के लिए पति पर निर्भर ना हो मतलब की शापिंग के लिए पति और रविवार का इंतजार कभी भी ना करे बेटे का हाथ पकडिये और उसके साथ बाजार जाइये ये मत सोचिये की अकेले क्या खरीदूंगी कोई साथ हो तो अच्छा हो , अक्सर बच्चे ये समझते है की माँ अकेले कोई काम नहीं कर सकती है वो डम है | बच्चे के स्कुल से लेकर हर सरकारी घरेलु काम खुद करना शुरू कीजिये , मै कहा जा कर परेशान होंगी मुझे तो ठीक से रास्ते/ नियम /कानून भी नहीं पता अच्छा हो पति कर दे की सोच छोड़ दीजिये , बच्चे के साथ अकेले घूमने जाइये पति के साथ शनि-रविवार को घूमने जायेंगे तो ज्यादा मजा आयेगा की बात छोड़ दीजिये उसे लीजिये या उसके मित्रो और उनकी माँ को लीजिये और उसके साथ जाइये | उपाय बहुत सारे है जिसका मूल मंत्र इतना ही है की माँ भले काम ना करे पर वो किसी भी बात के लिए किसी और पर निर्भर नहीं है और ना उसकी जानकारी ज्ञान किसी से भी कम है और आप का बच्चा ऐसा सोच रहा है उसमे भी कुछ अनोखा नहीं है आज हर बच्चे को एक सुपर मॉम की चाहत होती है एक समय पिता उनका हीरो होता था अब वो माँ से भी चाहते है ये हम सभी के लिए खुश होने का कारण है इस पर चिंता ना करे |
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल के चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आकर चर्चामंच की शोभा बढायें
ReplyDeletebenami ji
ReplyDeletemaene kisi ko samjhayaa nahin haen , maene kewal pallivi ki post par apni samjh kae hissab sae apni baat kahii haen
"कामकाजी महिलाओं और गृहणियों दोनों का ही अपनी-अपनी जगह एक अलग ही महत्व है। मेरे ख्याल से तो गृहिणी किसी कामकाजी से कम नही बल्कि उससे ज्यादा ही कमाती है यदि देखा जाये तो ………फिर चाहे बच्चों को पढाना हो या रोजमर्रा के काम सब मे उसका योगदान कैसे नगण्य गिना जा सकता है ? अभी कुछ दिन पहले एक कहानी पढी थी जिसमे उसका पति ही उसे बताता है कि वो कितना कमाती है घर मे रहकर भी बस फ़र्क सोच का ही होता है क्योंकि जो काम काजी महिलायें हैं उन्हे हर काम के लिये उतने ही ज्यादा पैसे खर्च करने पडते हैं क्योंकि सब तरफ़ ध्यान नही दे पातीं फिर चाहे बच्चों की शिक्षा हो या गृहकार्य ………इसलिये दोनो के अपने अपने फ़ायदे और नुकसान हैं अब ये हम पर निर्भर करता है हम क्या बनना चाहते हैं और किससे हमे आत्म संतुष्टि मिलती है।
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ReplyDeleteमाफ कीजिएगा मेरे कहने का मतलब यह ज़रा भी नहीं है इस पोस्ट में की मेरा बेटा मुझे बुद्धिमान नहीं समझता है। और ना ही मैं इसे कोई समस्या मानकर चल रही हूँ। क्यूंकि यही तो ज़िंदगी है अगर ऐसे हर बात को समस्या मान लिया जाये तो जीना दूभर हो जाएगा। मेरी नज़र में यही तो परवरिश का मज़ा है हर दिन एक नयी चुनौती :-) है न !! उम्मीद है आप मेरी बातों से सहमत होंगी। आपने यहाँ आकर मुझे अपने महत्वपूर्ण विचारों एवं सुझावों से अवगत कराया उसके लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया कृपया यूं ही संपर्क बनाये रखें। धन्यवाद....
ReplyDeleteबहुत सही बात कही आपने,आपकी लिखी सभी बातों एवं आपके दवारा दिये गए सभी सुझावों से पूर्णतः सहमति है। मैं भी यही मानती हूँ और यकीन मानिए वो सब करती हूँ जो आपने लिखा है। मेरी अगली पोस्ट में आप शायद यह बात देख पायें की मैं अपने या अपने बेटे से संबन्धित किसी भी तरह के कार्य के लिए पति पर निर्भर नहीं हूँ और वैसे भी जहां तक मेरी जानकारी है, आपको भी यह पता होगा शायद कि यहाँ अर्थात विदेशों में नौकर चाकर तो मिलते नहीं है। जिसके चलते सभी को अपने सभी काम स्वयं ही करना पड़ते है। जिसके कारण यदि मैं या मेरे जैसी कोई और स्त्री पति पर निर्भर रहना चाहे, तो भी संभव नहीं हो सकता है। क्यूंकि पति थोड़ी न सारा दिन घर पर रहते हैं और हर काम के लिए उनके घर आने तक का इंतज़ार भी नहीं किया जा सकता तो स्वाभाविक है की सभी काम मुझे ही करने पड़ते हैं और करती भी हूँ। लेकिन फिर भी जैसा की मैंने लिखा हो जाता है कभी-कभी की बच्चे की कुछ बातों में यह सोच नज़र आजाती है। जिसका मैंने अपने आलेख में ज़िक्र किया है। और एक अंतिम बात कहना चाहूंगी। मैं इसे कोई समस्या मान कर नहीं चल रही हूँ। क्यूंकि यही तो ज़िंदगी है अगर ऐसे हर बात को समस्या मान लिया जाये तो जीना दूभर हो जाएगा। मेरी नज़र में यही तो परवरिश का मज़ा है हर दिन एक नयी चुनौती :-) है न !! उम्मीद है आप भी मेरी बातों से वैसे ही सहमत होंगी। जैसे मैं आपकी बातों से हूँ। आपने यहाँ आकर मेरी बात को समझा और मुझे अपने महत्वपूर्ण विचारों एवं सुझावों से अवगत कराया उसके लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया कृपया यूं ही संपर्क बनाये रखें। धन्यवाद....
ReplyDeleteयदि आप अपनी जिंदगी से खुश हैं तो कौन क्या करता है , क्या कहता है , इससे क्या फर्क पड़ता है .
ReplyDeleteजो खुद को सही लगे , वही करना चाहिए .
एक माँ को अपने बच्चे को समझने - समझाने में कभी भी .... कोई भी गलतफहमी-परेशानी हो ही नहीं सकती .... !!
ReplyDeleteउसी तरह बेटा अपनी माँ को न समझे या कुछ गलतफहमी हो ? न-न ऐसा तो हो ही नहीं सकता .... !!
बस धैर्य रखें और जो उचित लगे करें .... !!
सहमत हूँ आपसे .... !!
ReplyDeleteअजित दी से सहमत
ReplyDeleteनौकरी का ज्ञान और संतुष्टि से कोई वास्ता नही है.
बर्तमान परिस्थिति को ध्यान में रख कर कार्य करना चाहिए ... बढ़िया विचारणीय पोस्ट...आभार
ReplyDeletepallavi ji kahne ko kuch nahi kyunki sach me ye koi nai post nahi hai lambe samay se chala aaya mudda hai .jo job karta hai uski8 apni samasyaein hai jo nahi karta uski apni.apni apni paristhtiyan ke hisab se sab nirnaya le lete hain....kahin koi tark sahi nahi aur koi tark galat bhi nahi. aur paise ka mudda hai to job ke sambandh paise tak sirf us varg ke lie hai jaha ghar ka karch mahilaon ke upar ho .me job karti hu par meri salary bank account ke siwa kahin nahi jati :) koi rok bhi nahi hai par sach ye bhi hai ki me kharcha karti hi nahi matlab pati ki salary se bhi fijulkharchi ya jyada shoukiya kharch nahi hai mere . aur jo kharcha karti hu wo bhi jarurat ke hisab se aur pati se salah karke aur yahi mere pati bhi karte hain (daily exp. isme shamil na mane :)).ye sab soch ka antar hai . aapka betu bhi jaldi hi samjh jaega....
ReplyDeleteआत्मनिर्भरता ज़रूरी है, खासकर जब कि भारत में महिलाओं के प्रति बड़ा ही भेदभाव पूर्ण रवैया आज भी अपनाया जाता है। लेकिन आपने जिस तरह विषय के विभिन्न पहलुओं पर विवेचना की है उस आधार पर लगता है कि अपने परिवेश और परिस्थिति के अनुसार निर्णय लेने की स्वतंत्रता भी उनकी ही है।
ReplyDeleteगृहणी की जिम्मेदारी को कमतर नहीं आँका जा सकता .पुरे परिवार को सम्हालने की कठिन जिम्मेदारी उनकी होती है. बढ़िया पोस्ट.
ReplyDeleteकामकाजी होना यदि भाग्य है तो गृहिणी होना सौभाग्य | नौकरी करना या न करना परिवार की परिस्थिति पर निर्भर करता है |उद्देश्य तो पारिवारिक सुख है |
ReplyDeleteहर इन्सान का अपना महत्त्व है ....साथ ही अपना अस्तित्व भी..... न गृहणी को कम आँका जा सकता है न कामकाजी महिला को..... हाँ हमें स्वयं ज़रूर संतुष्टि होनी चाहिए जो भी हम कर रहे हैं उससे.....
ReplyDeleteमेरे कुछ विचार जो इस विषयसे जुड़े हैं.....
ReplyDeletehttp://meri-parwaz.blogspot.ca/2012/02/blog-post_28.html
अच्छा आलेख
ReplyDeleteसादर
कामकाजी स्त्री हो या गृहिणी . दोनों ही परिवार की धुरी है . बच्चे बड़े होकर समझ जायेंगे इस सत्य को
ReplyDeleteजहाँ तक मुझे लगता है ..आजादी , स्वाभिमान, इज्जत , सब दिमाग से और विचारों से होते हैं. किसी गृहणी या कामकाजी जैसे स्टेटस से नहीं..भारत छोडो यहाँ इंग्लेंड में ही कितनी औरतें मैं दिखा सकती हूँ जो कामकाजी होने के वावजूद आजाद नहीं या जो अपने ही घर में तिरस्कार तक झेलती हैं.
ReplyDeleteऔर कितनी ही तथाकथित गृहणियां मिल जाएँगी जो किसी कामकाजी से ज्यादा आजाद हैं और अपने घरवालों में सबसे ज्यादा इज्जतदार और समझदार भी.
ज्यादातर यह हम और आप पर निर्भर होता कि खुद को क्या समझते हैं..बच्चे या बाकी लोग भी फिर एक दिन वही समझ जाते हैं.
इस तरह की दुविधा...कामकाजी..और गृहणी दोनों के मन में कभी ना कभी आती ही है...कितनी ही नौकरी वाली महिलाएँ...बच्चों के देखभाल के लिए नौकरी छोड़ घर संभालती हैं...और कितनी ही ऐसी हैं..जो
ReplyDeleteबच्चे बड़े हो जाएँ...तो नौकरी कर लेती हैं या फिर घर से ही कोई काम करती हैं...यह उनकी इच्छा...उनकी रूचि पर निर्भर होना चाहिए.
कामकाजी और गृहिणी होना अपनी सुविधा या सहूलियत की बात है ...
ReplyDeleteमैंने गृहिणी होते हुए भी स्वाभिमान पूर्वक आत्मनिर्भर होने के लिए पढाना , जॉब वर्क , कम्प्यूटर ट्रेनिंग जैसे कई कार्य किये हैं . बच्चों की जिज्ञासाओं के सरलता से उत्तर देती हूँ तो चौंक कर कहते हैं ." आप सब जानती है ...कैसे ?" ...गृहिणी होना बंध जाना नहीं है , ज्ञान का विस्तार घर में भी हो सकता है . आवश्यकता ना होने पर भी नौकरी करने पर कई जरुरतमंदों की रोजी छीन जाती है .
हम बचपन में स्कूल से लौटते थे तो हमें अपनी मां घर पर ही मिलती थी। हमें कभी पड़ोस की आंटी से चाबी लेकर घर का ताला नहीं खोलना पड़ा। कभी भूखा नहीं रहना पड़ा। कभी मैगी से पेट नहीं भरना पड़ा। बच्चों को पैदा करने के बाद उनकी परवरिश अपने आप में एक बहुत बड़ा जॉब है। पैसे में ज़्यादती के लिए परवरिश में कमी छोड़ दी जाए यह अक्लमंदी नहीं होती और मां घर के बजाय ऑफ़िस में हो तो परवरिश में कमी रहनी लाज़िमी है। पड़ोस के अंकल या घर के नौकर मां की ग़ैर मौजूदगी में बच्चे-बच्चियों के साथ जो करते हैं, वह अख़बारों में और टीवी पर सब देखते ही हैं। रूपया ज़रूरत है, मक़सद नहीं। ज़रूरतें पूरी हो रही हों तो मां की प्राथमिकता बच्चा होना चाहिए, भले ही बच्चे के विचार कुछ भी क्यों न हों !
ReplyDeleteयही सोचकर हमने अपने बच्चों को भी वही उपलब्ध कराया जो कि हमें बचपन में मिला था। हमारे बच्चे जब घर आते हैं तो उन्हें अपनी मां घर पर ही मिलती है।
बाहर के दुख उठाने और झिड़कियां खाने के लिए हम बहुत हैं। अपने बच्चों की मां को जब हम कुछ नहीं कहते तो भला कोई और ही क्यों कुछ कहे ?
पल्लवी जी ये इन्सान की फितरत है कि वो किसी भी हाल में संतुष्ट नहीं रह पाता.....जैसा की आपने ब्लॉग में कहा है जॉब करने वालो को कामकाजी जीवन की लालसा होती है और कामकाजी महिलाओ को जॉब करने की .....मानवीय प्रकृति का दृष्टिकोण हर क्षेत्र में देखने को मिल जाता है ...
ReplyDeleteविषय बहुत टेढ़ा है इस लिए इसे फलसफे में लपेट कर कह रहा हूँ. इंसान के विचार कभी एक जैसे नहीं रहते. नौकरी करने वाली महिलाओं की अलग समस्याएँ हैं और नौकरी न करने वाली महिलाओं की अलग. फैसला अपना-अपना.
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ReplyDeleteपल्लवी जी आपके लेख पढ़े .....हालाँकि सारे हमारी रोज मर्रा की हकीकतों से जुड़े हैं ...लेकिन एकदम सटीक हैं ... थोड़ी देर के लिए तो हम ये सोचने पे मजबूर हो जाते हैं की ये मुद्दा सच सोचनीय है ...मेरा भी एक छोटा बेटा है ... वैसे अभी वो बहुत छोटा है परन्तु ...उसकी मानसिकता जहां तक मैं समझ प् रही हूँ वो बिलकुल भिन्न है हमारे समय में उस उम्र में हम इतने फॉरवर्ड बिलकुल नहीं थे ... परन्तु ...अब टी वी का असर है या क्या पता नहीं .... जैसे की पहले बच्चे लकड़ी की घोडा गाड़ी से ही फुले नहीं समाते थी ...परन्तु आज उन्हें ...इलेक्ट्रोनिक गाजेट्स (gadgets ) चाहिए .... super Mom चाहिए ...:)) मजा आया पढ़ के ....