MMS
घबरायें नहीं मैं आपको “रागिनी” MMS के विषय में कुछ कहने या बताने नहीं जा रही हूँ J यह विषय वैसे तो अब बहुत पुराना हो चुका है और आज इस विषय से कोई अंजान नहीं किन्तु फिर भी यदि मैं एक छोटा सा परिचय दूँ, तो यह कहा जा सकता है कि, यह एक ऐसी तकनीक है जो आज कल लगभग सभी MOBILE PHONES में पाई जाती है। जिसके माध्यम से किसी का भी विडियो बना कर संदेश की तरह किसी को भी भेजा जा सकता है। MOBILE आजकल हमारी ज़िंदगी का वो अहम हिस्सा बन गया है कि आदमी एक बार खाने के बिना ज़िंदा रह सकता है मगर MOBILE के बिना नहीं। क्यूँ भाई !! पहले भी तो लोग बिना MOBILE के हँसी ख़ुशी जिया करते थे। फिर आज ऐसा क्या और क्यूँ हो गया है, कि जिसके पास जीवन यापन के लिए अच्छे साधन भले ही, ना हों, मगर MOBILE जरूर होता है।
मुझे आज भी याद है जब हमारे घर में पहली बार LANDLINE फोन लगा था। इतनी ख़ुशी हुई थी हमको कि मैं उस ख़ुशी को शायद यहाँ शब्दों में ब्यान ही नहीं कर सकती। Mobile का उपयोग तो मैंने अपनी शादी के बाद करना शुरू किया था। इसके पहले MOBILE के बारे में जानकारी तो थी, मगर कभी इस्तेमाल नहीं किया था, ना मैंने और ना मेरे घर के किसी सदस्य ने। एक आज का ज़माना है, कि लोगों के पास नयी तकनीक से भरपूर MOBILE होने के बावजूद भी उनको हमेशा अब कौन सा नया मॉडल आया है जानने और लेने की उत्सुकता बनी रहती है।
खैर हम बात कर रहे थे MMS की, आज भी जब आप कोई समाचार पत्र उठा कर देखें, तो उसमें से दो चार समाचार तो आपको इस MMS से संबन्धित विषय पर जरूर मिलेंगे। जैसे फ़लाँ लड़की का MMS चलचित्र लेकर उसके और उसके परिवार वालों को पूरे समाज में बदनाम करने की धमकियाँ दी जा रही है, पुलिस ने केस दर्ज कर लिया है, तफतीश ज़ारी है वग़ैरा-वग़ैरा। इस विषय में सोचती हूँ तो बहुत दुविधा महसूस होती है, कि आखिर कहाँ कमी है। जिसके चलते यह विषय इतना आम हो गया है। इसका ज़िम्मेदार कौन है, हम या यह रोज़ नई तकनीक से भरपूर आने वाले MOBILE फोन। “हम” यहाँ मेरा तात्पर्य हम के रूप में समाज से है। ऐसा मैंने इसलिए कहा क्यूँकि कभी-कभी मुझे ऐसा महसूस होता है, कि इसके ज़िम्मेदार शायद कहीं न कहीं हम भी हो सकते है। शायद हम ही अपने बच्चों को ऐसे संस्कार देने में नाकामयाब हों रहे हैं। जो हमको मिले थे कभी, जिसके चलते हमारी आज की पीढ़ी आधुनिक उपकरणों से इस क़दर प्रभावित हो रही है, कि सब कुछ भुला कर केवल अपना रुझान देखना ही उसे ठीक लगता है।
अगर हम बात करें नित नई आने वाले आधुनिक तकनीक से भरपूर MOBILE कंपनियों की तो शायद यह कहना गलत नहीं होगा इसमें वह कंपनियाँ ज़िम्मेदार कम और दोषी हम ही लोग ज्यादा हैं। क्योंकि उनका तो काम ही है अपने व्यवसाय को सफलता के शिकार तक पहुंचाना फिर कोई देसी कंपनी हो या विदेशी। यहाँ कुछ लोगों का मानना इस विषय मे यह भी है कि विदेशी कंपनियों ने हमारे यहाँ आकर हमारी कंपनियों को दबा दिया। लेकिन इस मामले में भारतीय कंपनियाँ भी पीछे नहीं है।
कुछ एक कंपनियों से कुछ ऐसे उत्पाद को खुले आम बेशर्मी से बेचा की उसके सकारात्मक प्रभाव कम बल्कि नाकारात्मक प्रभाव ज्यादा सामने आये। जिन्होने जागरूकता फैलाने के नाम पर ऐसी कई चीज़ें है, जो खुले आम बेचा, ऐसी कई चीज़ें हैं जो जागरूकता के नाम पर बिकने लगी है। जिनका पहले परिवार के लोगों तक के सामने जिक्र करना बेशर्मी समझा जाता था। आज जागरूकता फैलाने के नाम पर उन चीज़ों को खुले आम विज्ञापनों के माध्यम से बेचा जा रहा है और ऐसी सभी चीज़ें हर दवाइयों की दुकानों पर आसानी से उपलभ्ध है। जिनका आसानी से गलत फायदा उठाया जा रहा है और जो लोग माँग करेंगे उन्हें वही चीज़ आसानी से उपलब्ध करवाना उनके व्यापार के सफलता का साधन बनता चला गया और आज भी बनता चला जा रहा है। जहां तक मुझे लगता है। व्यवसाय का मुख्य उदेश्य होता है, पहले उपभोगकर्ता का रुझान अपनी और खींचना, फिर उसे उस वस्तु की आदत डलवाना और एक बार जब उपभोगकर्ता उस वस्तु की आदत का शिकार हो जाये तो बस फिर उसे वही चीज़ मन चाहे दामों में हर हालत में उपलब्ध करवाना और शायद यही वजह है, कि नई पीढ़ी नित नये आधुनिक तकनीक से भरपूर व्यसनों की तरफ आसानी से मोहित हो जाती है।
कुछ एक कंपनियों से कुछ ऐसे उत्पाद को खुले आम बेशर्मी से बेचा की उसके सकारात्मक प्रभाव कम बल्कि नाकारात्मक प्रभाव ज्यादा सामने आये। जिन्होने जागरूकता फैलाने के नाम पर ऐसी कई चीज़ें है, जो खुले आम बेचा, ऐसी कई चीज़ें हैं जो जागरूकता के नाम पर बिकने लगी है। जिनका पहले परिवार के लोगों तक के सामने जिक्र करना बेशर्मी समझा जाता था। आज जागरूकता फैलाने के नाम पर उन चीज़ों को खुले आम विज्ञापनों के माध्यम से बेचा जा रहा है और ऐसी सभी चीज़ें हर दवाइयों की दुकानों पर आसानी से उपलभ्ध है। जिनका आसानी से गलत फायदा उठाया जा रहा है और जो लोग माँग करेंगे उन्हें वही चीज़ आसानी से उपलब्ध करवाना उनके व्यापार के सफलता का साधन बनता चला गया और आज भी बनता चला जा रहा है। जहां तक मुझे लगता है। व्यवसाय का मुख्य उदेश्य होता है, पहले उपभोगकर्ता का रुझान अपनी और खींचना, फिर उसे उस वस्तु की आदत डलवाना और एक बार जब उपभोगकर्ता उस वस्तु की आदत का शिकार हो जाये तो बस फिर उसे वही चीज़ मन चाहे दामों में हर हालत में उपलब्ध करवाना और शायद यही वजह है, कि नई पीढ़ी नित नये आधुनिक तकनीक से भरपूर व्यसनों की तरफ आसानी से मोहित हो जाती है।
इसी आदत का गलत फायदा उठाते हैं कुछ लोग। मगर यहाँ सवाल यह उठता है कि आखिर इस हद तक लड़कियाँ जाती ही क्यूँ है की कोई उनका MMS बनाकर उनको BLACK MALE कर सके। कोई बता सकता है? यहाँ गलती किस की है। क्यूँ लड़कियाँ इस हद तक जाने लगी है, कि नौबत यहाँ तक आ रही है। शायद इसका एक ही कारण हो सकता है। सही शिक्षा का अभाव जिसे हम संस्कार कह सकते हैं। हाँ मैं इतना जरूर मानती हूँ कि कुछ मासूम लड़कियाँ जरूर इसका शिकार बन जाती है। वो भी इसलिए कि वहाँ जागरूकता की कमी है। अर्थात जानकारी का अभाव है। जहां तक मेरी जानकारी है। किसी भी विषय में जागरूक होने का मतलब होता है। उस विषय की सम्पूर्ण जानकारी का होना और सही तरीके से उस जानकारी का उपयोग करना, ना की जानकारी होते हुए भी उसका दुरूपयोग करना। इसी अभाव के चलते कुछ मासूम लड़कियां इस MMS का शिकार बन जाती है अर्थात उनका MMS बना लिया जाता है। उदहारण के तौर पर (शॉपिंग माल) जैसी जगह में अकसर कपड़े बदलने वाले कमरों में लगे हुए आईने के माध्यम से या फिर छोटे-छोटे (माइक्रो केमरे) के माध्यम से उनका MMS ले लिया जाता है। मगर सभी मासूम नहीं होते। लगता है, "शायद प्यार के मायने बादल गए है" यह भी एक अहम कारण है इस समस्या का, जिसकी लड़कियाँ अकसर शिकार होती है। कुछ अंजाने में और कुछ जान बूझकर भी।
जिस तरह हर बात के दो पहलू होते हैं। एक अच्छा, एक बुरा, ठीक उसी तरह इस बात के भी दो पहलू हैं। अच्छा यह कि यदि हम MOBILE में उपलब्ध इस सुविधा का सही प्रयोग करें तो बहुत हद तक समाज का भला किया जा सकता है और दुरूपयोग का नतीजा तो आपके सामने आये दिन समाचार पत्रों के माध्यम से आप तक पहुंचता ही रहता है। तो अब सवाल यह उठता है कि आखिर इस समस्या का समाधान हो तो किस प्रकार हो। जहां तक मेरी सोच कहती है। इस समस्या को दो ही तरह से सुलझाया जा सकता है।
पहला हम अपने बच्चों के दिलो दिमाग में यह बात बिठाने का प्रयत्न करें कि “किसी भी नई तकनीक को जानना या उससे प्रभावित होना कोई गलत बात नहीं है। मगर जरूरत है उससे होने वाले परिणामों की सम्पूर्ण जानकारी रखना” ताकि यदि कोई दूसरा व्यक्ति जब उस उपकरण का गलत उपयोग करे तब आप सावधान रह सको और औरों को भी सावधान कर सको।
पहला हम अपने बच्चों के दिलो दिमाग में यह बात बिठाने का प्रयत्न करें कि “किसी भी नई तकनीक को जानना या उससे प्रभावित होना कोई गलत बात नहीं है। मगर जरूरत है उससे होने वाले परिणामों की सम्पूर्ण जानकारी रखना” ताकि यदि कोई दूसरा व्यक्ति जब उस उपकरण का गलत उपयोग करे तब आप सावधान रह सको और औरों को भी सावधान कर सको।
दूसरा, जैसा कि मैंने पहले भी कहा था MOBILE फोन आज के युग की जरूरत बन गया है तो यदि आपको अपने बच्चे को MOBILE देना अति आवश्यक है, तो आप उसको ऐसा MOBILE दो जिसमें सिर्फ बात करने और संदेश भेजने की ही सुविधा हो, इससे ज्यादा और कुछ ना हो अर्थात् कम से कम तकनीक का प्रयोग हो लेकिन आज की आधुनिक और चकाचौंध भरी दुनिया में यह बात अब संभव नहीं और यदि किसी तरह संभव हो भी गया तो आपके बच्चे उस MOBILE को इस्तेमाल करने के लिए राज़ी होने से रहे। तो बेहतर यही होगा की आप पहला तरीक़ा अपनायें और अपने बच्चों को भटकने से बचायें। जय हिन्द ...
हर चीज़ के दो पहलू होते हैं। बेहतर होगा यदि हम सकारात्मक पहलू को अपनाएं और नकारात्मक से सावधान रहें।
ReplyDeleteआलेख बहुत अच्छा संदेश देता है।
सादर
हर नई तकनीक के साथ उसके फायदे और नुक्सान दोनों होते हैं अब यह हम पर है कि हम क्या अपनाएं.
ReplyDeleteसार्थक आलेख .
आज -कल बच्चे मानते कहाँ हैं .......उन्हें तो नई -नई चीजें ही आकर्षित करती है
ReplyDeleteachchayi aur burayi hamesha sath chalti hain ye ham par hai ham kise apnayein.
ReplyDeleteबच्चों को सकारात्मक बातें बताते रहने से ऐसी तकनीक के दुरुपयोग को कम किया जा सकता है. बढ़िया आलेख. बढ़िया चेतावनियाँ. MEGHnet
ReplyDeleteमानती हूँ कि शोहरत और नाम के फेर में उलझे लगो जानबूझकर इस दलदल में गिरते हैं ,लेकिन यह भी भयानक सच्चाई है कि तकनीक ने आजकल कैमरों को मॉल्स, होटल्स से लेकर लोगों के घरों तक पहुंचा दिया है , ऐसे में लड़कियां करें भी क्या!!
ReplyDeleteबहुत सार्थक आलेख लिखा है आपने!
ReplyDelete--
सौ की एक बात है जी!
दुरुपयोग किसी भी चीज का हानिकारक होता है!
आप सभी का तहे दिल से शुक्रिया ...यहाँ में भूषण अंकल की बात से पूरी तरह सहमत हूँ। साथ ही यह भी मानती हूँ की नई तकनीक के साथ उसके फायदे और नुक्सान दोनों होते हैं। मगर सही गलत का चुनाव हम तभी कर सकते हैं जब हमको हमारे बड़ों ने यह सिखाया हो ... किन्तु आप सभी ने अपने बहुमूल्य विचारों से मुझे अनुग्रहित किया उसके लिए आप सभी का बहुत-बहुत....धन्यवाद
ReplyDeleteसकारात्मक बातें तो हम हजार साल से बता रहे हैं लेकिन विवेकहीन तरीके से। और भला मशीन का क्या दोष दें? मॉल आदि में कपड़े बदलने की आवश्यकता तो कुछ महत्व की नहीं लगती। यह तमाशे करने के पहले लोग अपना दिमाग रखते कहाँ हैं? कपड़ों के लिए घर है न कि बाजार। अब खुद पर कुछ नियंत्रण न हो, तो दोष किसी को देने से क्या होगा? आपने व्यवसाय का मतलब अच्छा समझाया है। धन्यवाद!
ReplyDeletesarthak aalekh....waise bhi vigyan ek sikka hai, jiske dono pahlu hain.........nirbhar ham pe karta hai ki ham uske kis pahlu ko behtar ujagar karte hain..........!!
ReplyDeletesach me aapne jo likha usme dum hai!! aur sochne ki jarurat hai!!
बहुत अच्छा विश्लेषणात्मक लेख है आपका.
ReplyDeleteनिरंतर सजग रहने और अच्छे संस्कार अर्जित करने
की सद् प्रेरणा देता हुआ.
आभार.
मेरे ब्लॉग पर आईयेगा,
नई पोस्ट जारी की है.
बात तो आपकी सौ फीसदी सही है पल्लवी जी परन्तु न तो मोबाइल के बिना काम चलना है न ही उसके फायदों को नकारा जा सकता है. जरूरी है तकनीक के नुकसान पहुँचाने वाले प्रयोगों से सावधान रहने की.
ReplyDeleteबढ़िया सामायिक आलेख.
एक सामयिक और बेहद संवेदनशील मुद्दे पर आपने हमारा ध्यान आकर्षित किया है .....लेकिन फिर भी कहाँ इनका दुरूपयोग नहीं होता ..होता है ...आपने बहुत विस्तार से प्रकाश डाला है ...आपका आभार
ReplyDeleteMMS par aap ne acha lekha likha .MOBILE hmare life ki yek jarurat hai .mobile ka use aap kaise karte hai vo aap par nirabhar karta hai.
ReplyDeleteआपका लेख गंभीर सामाजिक रुग्णता को प्रदर्शित करता है..
ReplyDeleteसुन्दर रचना आपकी, नए नए आयाम |
ReplyDeleteदेत बधाई प्रेम से, हो प्रस्तुति-अविराम ||
लैंडलाईन के बात से याद आया की जब हमारे घर में भी फोन लगा था तो हम भी कम उत्साहित नहीं थे..:) हर सुबह मैं फोन को पोछ पाछ के अच्छे से रखता था :)
ReplyDeleteऔर जहाँ तक बात है मोबाइल के दुरूपयोग की तो मुझे ये जान बड़ा आश्चर्य होता है की एम्.एम्.एस के शिकार ज्यादातर लड़कियां पढ़ी लिखी होती हैं...या फिर जागरूक..हाँ, बहुत मासूम भी होती हैं...
वैसे नयी नयी और आधुनिक तकनीक जैसे जैसे आ रही हैं वैसे वैसे नए नए तरह के प्रोब्लम भी...
आपने अपनी तकनीकी जानकारी को सामाजिक संदर्भ के साथ जोड़ कर पेश किया है, वह बहुत अच्छा लगा।
ReplyDeleteएक उपयोगी आलेख।
"शायद प्यार के मायने बादल गए है" यह भी एक अहम कारण है इस समस्या का जिसकी लड़कियाँ अकसर शिकार होती है...बढ़िया आलेख!
ReplyDeletepallavi ji , its nice to come at your blog . and really u shared very valuable thought among us ..
ReplyDeletehere i just want to say that technology is not bad until our thougth regarding using that are not bad ..
so its a basic need that adopting anything rather its technology or any thing else , we should take it in a healthy way...
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteहर बात के अच्छे बुरे दोनों पहलु होते है..बस, इसे किस तरह अपनाया जाये..वही निर्धारित करना होता है...अच्छा लेख.
ReplyDeleteSamyik . Prerk tatha sargarbhit .Samyik . Prerk tatha sargarbhit .
ReplyDeleteपल्लवी जी आपकी जो चिंता जतायी है वो जायज है कमोबेश हर मातापिता आज इसका सामना कर रहे हैं । हम घर में बच्चों को जो संसकार देते हैं वो बहुत प्रभावी होते हैं लेकिन pear group का दबाब बच्चों पर बहुत होता है मेरे दो टीन एजर बच्चे हैं । उनके माध्यम से बहुत सी बातें पता चलती रहती हैं । उनकी अवधारणाएं स्पष्ट हैं लेकिन साथ ही जब अपने दिल की बात करते हैं तो ये भी कहते हैं -- mama when you are in a group you can not be odd man out . because than they make fun of you . शायद अपने हम उम्र बच्चों के बीच अलग थलग पड़ना उन्हें अपना अपमान लगता है । बच्चे कुछ गलत काम बुरी सोहबत के कारण भी कर जाते हैं । उनका दिल बुरा नहीं होता लेकिन एम एम एस जैसे विषय काफी गंभीर है और इन पर बच्चों को समझाना बहुत ज़रूरी है । प्रेम से समझाओगे तो वो समझ जाते हैं ।
ReplyDeleteआप रसबतिया पर आयीं बहुत बहुत धन्यवाद ।विदेश में रहते हुए अपनी भाषा और संस्कृति से जुड़ी हैं जान कर अच्छा लगा । अब संवाद बना रहना चाहिए ।
ReplyDeleteसचमुच चिंताजनक बात है।
ReplyDelete------
कब तक ढ़ोना है मम्मी, यह बस्ते का भार?
आओ लल्लू, आओ पलल्लू, सुनलो नई कहानी।
मोबाइल का हिस्सा होना ज़रूरी था ... पर जब भी कोई ज़रूरत बनती है तो उसके साथ कई बेज़रूरत की बातें होती हैं ... किसी का भी mms , किसी की तस्वीर - जाने इससे क्या मिलता है ! ... जहाँ तक प्रश्न है लड़कियों का तो समानता की , आधुनिकता की दौड़ ने उनको बेपेंदी का लोटा बना दिया है... यूँ भी लड़कियां प्यार , विश्वास के नाम पर हमेशा मूर्ख ' की ही श्रेणी में आती रही हैं .
ReplyDeleteदोनों पहलुओं के साथ सामंजस्य बनाना होगा - प्रेरक तथा सार्थक प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत सार्थक लेख .. हर चीज़ के फायदे नुक्सान होते हैं .. ज़रूरत है की बच्चों को आगाह करते रहना चाहिए ... सही गलत की जानकारी देते रहना चाहिए .. विचारणीय लेख
ReplyDeleteज्ञानवर्धक..!!!
ReplyDeleteSadar Pradam,
ReplyDeletePallavi ji,
apki jo chinta hi o aj ke hamre pure samaj ki hai.
isi subject par mene ek poem likhi thi. "ADHUNIK BANU YA INSHAN" jo amar ujala me published bhi hui thi.
ab ap ko taji ghatna batau..
isi mobile ka pridam aur ladkiyo ki bewkufi.
mere ek dost ki bahan thi... bahut sajjan aur shushil ..pure goan me usi charcha rahti thi ki ladki ho to uske jaise.
yaha tak ki me uske ghar jata tha to akar paw chhuti thi....!!
ghar me thi mobile ... kisi ka wrong call aya.
isne mana kiya ....
usne fir 2 din bad call kiya ...fir kiya fir kiya . aur ye bat karne lagi.
Ab yaha shale dogale ladke ate hain... jo dusaro ki ijjat ko ijjat nahi samjhate unke time pass ya mauj masti ko pyar samjh kar mashum aur bewkuf ladkiya apna to barbad karti hi hain.... unke sath-2 ghar wale bhi jate hain.
matra ek mahina bat kare o ladki ghar se bhag gai...ham logo ne bahut samjhaya ...use duniya ke bare me bataya. yaha tak kaha gaya ki hamlog use bare me pata lagate hin..par o nahi mani.
ye bat bite 10 din bit gaya... bahut khoje ham log kahi pata nahi use ghar walo ka to bura hal hai hi...meri tabiyat bigad gai ki agar uske jaise samjhdar ladki ye kar sakti hi to kis ladki ko samjhdar kaha jaye.
Ap mere bat ka anyatha na lewe..!
ReplyDeleteo bhi mere ghar jaisa hi tha... yahi bat dimag me ghum rahi hi is liye likh diya.
kyo ki blogg bhi mera ghar hai..!!
सुन्दर और सार्थक लेख !
ReplyDeleteआप सभी पाठकों का तहे दिल से शुक्रिया कृपया यूंहीन संपर्क बानये रखें धन्यवाद....
ReplyDeleteअच्छा लिखा है आपने....अपन तो यथा-संभव सही रास्ते पर चलते और औरों को बतियाते हैं....बाकी जिसे जो समझ में आये....तो अपन का काम है....सही करना....बताना....और समझना....आपकी बातें भी शिरोधार्य...!!
ReplyDeleteपल्लवी जी ,पहली बार आप के ब्लॉग पर आई हूँ |आपका लिखने का तरीका बहुत अच्छा है |सरल भाषा में बहुत बड़ा मुद्दा उठाया है |
ReplyDeleteबधाई अच्छे लेखन के लिए |
आशा
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माचिस जैसी बात है। चूल्हा जलाएं या घर!
ReplyDeleteअच्छा - बुरा, सही - गलत तो एक ही सिक्के के दो पहलु हैं. जिस कारण से मोबाइल का विकास किया गया था वह कारण तो अब नगण्य हैं, अब लोग उसे मात्र बातचीत का एक यन्त्र न मानते हुए status symbol मानते हैं. तुम्हारे फ़ोन में कितने megapix का कैमरा हैं, कितने apps हैं. इन सब में उस फ़ोन का मूल उद्देश्य तो कहीं गुम हो गया हैं.
ReplyDeleteयह बात आज कल हर क्षेत्र में लागू होने लगी हैं की मूल उद्द्शेय को प्राप्त करने के लिए कम ही लोग प्रयासरत होते हैं, बाकी लोग तो अपना उल्लू सीधा करने के लिए उस उद्द्शेय की आड़ लेते हैं...
ना तो मैं इतना समझदार हू और ना ही इतना जिम्मेदार पर फिर भी मैं आप लोगो को यह कहना चाहता हूँ की इस MMS की असली जड़ हम नहीं बल्कि हमारे parents होते हैं! जिन्हें सब पता होता है पर फिर भी यह ऐसा बोलते है जैसे की कुछ हुआ ही नहीं हो!
ReplyDeleteऔर दूसरी बात आज कल की लड़किया खुद को पता नहीं क्या समझती है, आप अपने बेटी या फिर उन लोगो से पूछ सकते है जो की अपने घर से दूर हॉस्टल पे रह कर पढाई कर रही हो, आप को उनके फोन से कम से कम ५-१० लडको के no.s तो जरुर मिल जायेंगे! अगर आप इनको फोन पे बात करते हुए सुन लो तो में शर्त लगा कर कह सकता हूँ की आप शर्म के मारे पानी पानी हो जाएँगी !
एक बात और MMS बनाने के लिए लड़के नहीं लड़किया ही जायदा excited होती है. वो खुद को कैमरे में देखना जायदा पसंद करती है. मैं आपकी ब्लॉग की मर्यादा को ध्यान में रखते हुए लिंक्स शेयर नहीं कर रहा हूँ. वैसे अगर आपको कुछ और जायदा जानकारी चाहिए वो भी बिना पोर्न के तो अप इसे याहू पे सर्च कर सकते है !!
( मेरी बातें अगर आपको गलत लगे या आपको मेरे से कुछ कहना हो तो, निःसंकोच बोल सकते हो)
अपने बात को इस तरह से पेश करने के लिए मैं ब्लॉग-एडमिन से माफ़ी चाहता हूँ!
धन्यवाद :
www.omu.co.in