Friday, 16 September 2011

क्या औरत की जिंदगी में विवाह का होना ज़रूरी है?

पिछले कुछ दिनों में देखने में आया था एक लेख जो लिखा गया था, नारी के विवाह को लेकर कि क्या किसी भी स्त्री का विवाह करना ज़रूर है। क्या बिना विवाह किये जीवन जीने लायक नहीं रहता और एसे ही कई प्रश्नो को उठाता "नारी ब्लॉग" जिसे शायद आपने भी पढ़ा और देखा होगा। उसमें से कुछ पर्श्नो को में यहाँ ले रही हूँ। क्यूंकि मैं उस विषय पर बहुत कुछ कहना चाहती हूँ। इसलिए मेरा "नारी ब्लॉग" की लेखिका से अनुरोध है कि वह उसको किसी तरह कि कोई चोरी ना समझे मैंने उन्ही के द्वारा कही हुई बातों को बस अपने नज़रिये से लिखना और बताना चाहा है सब कुछ वहाँ उस ब्लॉग पर कहना संभव नहीं था। इसलिए मैंने सोचा कि क्यूँ न इन सवालों को मैं भी आपने ब्लॉग के जरिये आगे बढ़ाऊं और जानने का प्रयास करूँ कि इस विषय में और इन उठाये गए प्रश्नो को लेकर क्या सोचती है, आज की भारतीय नारी। यहाँ मैं यह भी कहना चाहूंगी कि इस ब्लॉग के जरिये मेरा उद्देश्य केवल उठाये गए प्रश्नो  के जवाब जाने से है।  मैं ना तो नारी के खिलाफ हूँ। न ही पुरुषों के पक्ष में हूँ। सामाजिक सोच जानने से ज्यादा मेरा और कोई उदेश्य नहीं है। मैंने वहाँ कुछ पंक्तियाँ पढ़ी थी। जो निम्नानुसार हैं।

"बसना है अगर किसी नारी को अकेले 
हम बस्ने नहीं देंगे 
अगर बसाएँगे तो हम बसाएँगे 
चूड़ी बिंदी सिंदूर और बिछिये से सजायेंगे 
जिस दिन हम जायेंगे, नारी से सब उतरवा ले जायेंगे 
हमने दिया है हमने ही लिया इसमें बुरा क्या किया। "
यहाँ मैं कहना और पूछना चाहती हूँ। खास कर उन स्त्रियों से जो पुरुषों के प्रति इस प्रकार का रवैया रखती है, जैसा की उपरोक्त पंक्तियों में लिखा गया है। कि क्या बस शादी के पवित्र बंधन के यही मायने है। क्या हम सभी स्त्रियाँ इस विषय में ऐसा ही सोचती है। अगर ऐसा है तो फिर किसी भी स्त्री को कभी शादी करनी ही नहीं चाहिए, "ना रहेगा बांस न बजेगी बसुरी"। मैं मानती हूँ कि हमारे समाज में औरतों को आज भी वह दर्जा नहीं मिल पाया है। जिसकी वह वास्तव में हक़दार हैं। मगर इसका मतलब यह नहीं कि वह इस चिढ़ के चलते इस पवित्र बंधन पर तौहमत लगाना शुरू कर दें। आखिर कुछ भी हो जीवन में एक हमसफर, एक जीवन साथी, की जरूरत तो पड़ती ही है। जो जीवन भर आपके साथ रहे हर सुख दुख में आपका सहारा और होसला बन कर आप को आपके जीवन में आने वाली कठिनाइयों में आपका सच्चे मन से साथ निभाए, आपकी भावनाओं को समझे, जो बिना किसी शर्त के आपसे प्यार करे,  शुरू में हमको इस बात का एहसास नहीं होता, मगर जैसे-जैसे वक्त गुज़रता जाता है, इस रिश्ते की अहमियत समझ में आने लगती है। माता-पिता जिंदगी भर साथ नहीं रहते अगर कोई रहता है, तो वो है आपका हमसफर, आपका अपना जीवन साथी यह बात दोनों ही पक्षों पर लागू होती है। चाहे कोई स्त्री हो या पुरुष, वैसे भी कुछ भी कहो, भगवान ने भी कुछ सोच कर ही स्त्री और पुरुष दोनों का एक दुसरे का पूरक बनाया है। एक के बिना दूसरा पक्ष हमेशा अधूरा है और अधूरा ही रहेगा।

रही बात चूड़ी, बिंदी, सिंदूर और बिछिये से सजाने की, तो यह तो हर औरत के लिए गर्व और सम्मान का प्रतीक है। एक भी महिला ऐसी नहीं होगी जो इन सबके बिना खुद के श्रंगार को कभी पूर्ण समझती होगी। अगर कोई है तो अपने दिल पर हाथ रख कर कहे, ज़माना चाहे कितना भी मोर्डन क्यूँ ना हो जाए। इन चीज़ों के महत्व को कभी कम नहीं कर सकता। आखिर कुछ भी हो हैं तो हम सामाजिक प्राणी ही ना और समाज के नियमों का पालन करना हमारा प्रथम कर्तव्य बनता है। हाँ मैं यह जरूर मानती हूँ कि हमारा समाज अधिकतर पुरुष प्रधान समाज है। मगर इसका मतलब यह तो नहीं कि इसमें नारी के कुछ अधिकार ही नहीं है। 
यदि इस बंधन को एक बार मजबूरी मान भी लिया जाये तो ज़रा बताइये पौराणिक काल में भी तो यह समाज पुरुष प्रधान ही था। किन्तु तब भी सभी ने विवाह किया ही था। लोग कहते हैं कि माता सीता ने भी इस समाज के कारण ही दुख उठाये चलो एक बार को यह बात सच मान भी ली जाये, तो क्या श्री राम ने उनके वियोग में दुख नहीं उठाया। यदि एक और बड़ा उदहारण देखा जाए तो वह तो नारी शक्ति का ऐसा प्रतीक है कि उससे तो स्वयं परमात्मा भी इंकार नहीं कर सकते है। एक और उदाहरण है माँ दुर्गा का, जब शुंभ-निशुभ और मधु-केटव जैसे राक्षओं का संघार स्वयं ब्रहमा, विष्णु और महेश जैसी शक्तियों से मिलकर भी न हुआ तब निर्माण हुआ एक शक्ति का जिसने नारी रूप को पाया था।  फिर कहाँ कम रहा है नारी का महत्व।
अर्थात कहने का तात्पर्य यह है कि शायद अपना -अपना नज़रिया है क्यूंकि जिस बात को जितना ज्यादा नकारात्मक तरीके से देखा जाएगा, वह बात उतनी ही नकारात्मक लगेगी और किसी भी चीज़ के अच्छे परिणाम यदि देखने हों तो उसके लिए सकारात्म सोच रखना भी ज़रूरी है अर्थात कुछ मुट्ठी भर लोगों के खराब होने से पूरी दूनिया खराब है, कहना गलत होगा और रही बात उस शक्ति रूप की जिसका मैंने ऊपर जिक्र किया है माँ दुर्गा, उसी शक्ति के आगे आज हर नर-नारी शीश नवाते है। सभी सुहागने उनसे ही अपने अमर सुगाह की कामना करती है। क्यूँ ? यदि जो स्त्रियाँ ऐसी सोच रखती हैं कि विवाह का बंधन केवल पुरुषों ने अपने मतलब के लिए और अपनी अहमियत के लिए बनाया है। तो फिर क्या ज़रूरत है। ऐसे लोगों के लिए मन्नतें मांगने की, लम्बी आयु की कामना करने की और यदि आखिरी की पंक्तियों पर गौर किया जाये तो कोई मुझे यह बता दे ज़रा। कि जाने वाला कब यह कह कर जाता है किसी को कि मेरे जाने के बार मेरी पत्नी से वो सारे श्रिंगार छीन लेना जो मैंने कभी उसे दिये थे।

दरअसल बात यह है कि हमारा समाज कोई एक वक्ती विशेष नहीं है कि उसने कुछ कानून बनना दिये जिनका पालन करना हर सामाजिक प्राणी का प्रथम कर्तव्य है। हमारा समाज बनना है दो तरह के लोगों से एक वह जो सकारात्मक सोच रखते है और दूसरे वह कुछ लोग जो नकारात्मक सोच रखते है। इसके लिए हम पूरे समाज के सभी लोगों को दोषी तो नहीं ठहरा सकते ना, आप ही लोग बताइये कि यदि समाज में किसी तरह के कोई नियम कानून नहीं होते तो संस्कार कहाँ से आते किस की तुलना करके हम किसी को बता पाते कि क्या सही है और क्या गलत। इसलिए मुझे ऐसा लगता है और उसी के आधार पर मैं यह कहना चाहती हूँ कि ऐसा नहीं है कि समाज के सभी कानून औरत के खिलाफ बनाये गए हैं। माना कि आज भी घरों में बहू को जला कर मार दिया जाता है। विधावाओं के साथ जानवरों से भी ज्यादा बुरा सलूक किया जाता है।लेकिन उस के पीछे है ज्ञान का अभाव, संकीर्ण मानसिकता, मगर पूरे समाज मे सभी ऐसे हैं। यह भी सच नहीं। कम से कम मैं तो नहीं मानती। क्यूंकि ऐसे परिवारों को भी नकारा नहीं जा सकता जहां बहू को बेटी से ज्यादा प्यार मिला, सम्मान मिला, विधवा की दुबारा शादी कारवाई गई, दुनिया में सब अच्छे ही हैं ऐसा मैं नहीं कहती। मगर दुनिया उतनी बुरी भी नहीं है जितना कि लोगों ने उसे कह-कह कर बना रखा है। जहां अच्छाई है वहाँ बुराई भी होगी ही। क्यूंकि लोगों को अच्छाई के मायने ही बुराई के बाद ही समझ आते है और बात का इतिहास गवाह है। मगर इसे हमारे भाग्य की विवशता ही कहा जा सकता है कि अब भी हमारे समाज में बुराई का पलड़ा अच्छाई से ज्यादा भारी है।
यह तो थी इन पंक्तियों पर मेरी विचारधारा। एक और महत्वपूर्ण सवाल उठाया गया था उस ब्लॉग पर, उन प्रश्नो  को भी मैं यहाँ लेना चाहूंगी। 
क्या माँ बनना औरत की जिंदगी की सम्पूर्णता हैं ?
क्या शादी करना और फिर माँ बनना, औरत कि जिंदगी कि संपूर्णता है 
अगर माँ बनना संपूर्णता है, अविवाहित माँ क्यूँ अभिशाप होती है 
अगर शादी करके माँ बनना संपूर्णता है, तो शादी की अहमियत है, या माँ बनने की 
क्या बच्चे को जन्म देने मात्र से ही औरत माँ कहलाती है 
क्या बिना बच्चे को जन्म दिये औरत माँ नहीं बन सकती।
तो अब प्रश्न आता है कि क्या माँ बनना औरत की जिंदगी की संपूर्णता है। मेरा मत है कि हाँ है। क्यूंकि यह कुदरत का वो वरदान है जिसे श्रष्टि ने केवल औरत को दिया है। लेकिन एक माँ को भी शादी के बाद ही माँ बनने पर ही सम्मान मिलता है। क्यूंकि शादी एक पवित्र बंधन है। यह बंधन समाज ने नहीं श्रष्टि ने स्वयं बनाया है। कहते हैं "बिना आग के धुआं नहीं होता"। जैसे आग और धूएँ का संबंध है। जैसे दिया और बाती का सम्बंध है, जैसे सागर और नदी का सम्बंध है। वैसे ही नारी और पुरुष का संबंध है तभी तो कहा जाता है सबकी जोड़िया तो पहले से ही परमात्मा बना कर भेजता है। क्यूंकि दोनों एक दूसरे के बिना अधूरे है और जब स्वयं भगवान भी इस बंधन से वंचित न रह सके तो हम तो तुच्छ इंसान मात्र हैं। इस पर कुछ लोग आदम और हऊवा का उदहारण देते है और कहते हैं उन्होने तो कभी विवाह नहीं किया था। हम सब उन्ही की संतान है। उनका तो पता नहीं लेकिन शास्त्रों के अनुसार विवाह के समय कुंडली मिलाना, गोत्र देखना, यह सब के पीछे केवल भ्रांतियाँ नहीं है कुछ वैज्ञानिक कारण भी है, अगर वह कारण ना होते यह नियम बनाने की जरूरत ही क्या थी। क्यूंकि जब सब उन्हीं की संतान है तो क्या फ़र्क पड़ता है। कोई भी किसी से भी विवाह करले। परंतु ऐसा होता नहीं है, और जहां होता है या कर लिया जाता है। वहाँ वैज्ञानिक तौर पर भी आने वाली नस्ल के परिणाम सामने आते हैं जिन्हे नकारा नहीं जा सकता है। वैसे भी यदि ऐसा होता तो दुनिया में रिश्ते और परिवार जैसी कोई चीज़ ही नहीं होती।

खैरअब बात करें यदि कि अविवाहित माँ अभिशाप क्यूँ है। तो मैं यहाँ कहना चाहूंगी कि माँ एक ऐसा शब्द है जो कभी अभिशाप कहला ही नहीं सकता। क्यूंकि आपने माँ दुर्गा की आरती में वह लाइन पढ़ी और सुनी जरूर होगी कि "पुत्र कुपुत्र सुने है पर ना माता सुनी कुमाता" लेकिन हाँ अविवाहित माँ को लोग अच्छी नज़रों से नहीं देखते क्यूँ, यह सवाल मेरे मन में भी कई बार उठा मगर कभी जवाब नहीं मिला। औरों का तो पता नहीं मगर मेरी सोच यह कहती है कि विवाह को कुछ ध्यान में रख कर ही अहम दर्जा दिया गया होगा ताकि समाज में रहने वाले लोग पथ भ्रष्ट ना हों, क्यूंकि यदि सभी मन मानी करने लगे तो वो भी पूरे समाज के लिए हित कर नहीं होगा। कुछ तो जरूर अहम कारण रहा होगा। जिसको ध्यान में रख कर ऐसा कुछ सोचा होगा ना हमारे बुजुर्गों ने पागल नहीं थे वह, "जो उन्होंने स्त्री और पुरुष के लिए कुछ सीमित दायरे तय किए थे",  यह बात अलग है कि आज कल इन दायरों का पालन बहुत कम ही लोग करते हैं। शायद यही कारण रहा होगा कि शादी के बाद ही माँ बनने को अहमीयत दी गई है। 
रही बात बच्चे को जन्म देने मात्र से ही माँ कहलाने की तो, ऐसा ज़रा भी नहीं है। बिना बच्चे को जन्म दिये भी औरत माँ बन सकती है और इसका सबसे बड़ा उदाहरण है mother Teresa और उसके बाद 1994 में यह कानून भी लागू हो गया था कि बिना विवाह किए हुए भी कोई भी स्त्री बच्चा गोद ले सकती है। जिसकी शुरुवात कि सुश्री विश्व सुन्दरी सुष्मिता सेन के प्रयासों से हुई थी। उन्होने इसके लिये एक लम्बी लड़ाई लड़ी थी और कानून को बदलवाया था। आज वो दो बेटियों की माँ हैं और अविवाहित हैं। लेकिन  इन सब बातों के चलते यह कहना कि विवाह की प्रधानता इसलिये हैं क्यूंकि उससे पुरुष की प्रधानता है। मैं सही नहीं समझती। क्यूंकि विवाह का बंधन दोनों के लिए महत्व रखता है चाहे स्त्री हो या पुरुष, फेरों के वक़्त भी दोनों के वचन एक से हुआ करते हैं। अब यह आप पर है कि आप उस रिश्ते को कितनी अहमियत दे पाते है और निभा पाते हैं। इस रिश्ते की जितनी ज़रूरत एक स्त्री को है उतनी ही एक पुरुष को भी है। क्यूंकि दोनों की ज़रूरतें भी एक जैसी ही होती है बस अपना -अपना देखने का नज़रिया है।
अंत में बस इतना ही कहना चाहूंगी कि यदि एक तलाकशुदा महिला को यह समाज अच्छी नज़रों से नहीं देखता तो एक तलाकशुदा पुरुष को भी अच्छी नज़रों से नहीं देखा जाता है। मगर हमारा नज़रिया ऐसा बन गया है कि वजह चाहे जो हो हम पुरुष को ही गलत समझते हैं। उदाहरण के लिए यदि भरी भीड़ में एक औरत किसी मर्द को चांटा मार दे तो उस औरत से कोई नहीं पूछेगा कि हुआ क्या था। सीधे लोग या सारी भीड़ बिना यह जाने कि क्या हुआ था टूट पड़ेगी मर्द पर क्यूंकि मानसिकता ही ऐसी है कि जरूर कुछ बदतमीजी की होगी उसने, तभी तो मारा वरना कोई पागल है क्या कि यूंही किसी को भरी भीड़ में चांटा मारेगी। जबकि कई बार खुद महिलायें भी जानबुझ कर ऐसी हरकतें करती हैं और फिर खुद के बचाव के लिए इल्ज़ाम सामने वाले पर लगा दिया करती हैं हालांकी ऐसा बहुत कम देखने और सुनने को मिलता है। ज्यादातर मामलों में मर्द ही जिम्मेदार होते हैं। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि सभी एक जैसे होते हैं। अब मैं आप पर छोडती हूँ कि आप इस विषय में क्या सोचते हैं।   


         

56 comments:

  1. नारी - नर; Female - Male

    ऐसा लिख कर बताने के पीछे मेरा एक ही उद्देश्य हैं की नारी नर के बिना अधूरी हैं, शाब्दिक रचना भी देखिये की बिना नर के नारी नहीं बन सकता...

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  2. PALLAVI JI
    sundar POST ke liye badhai sweekaren.
    मेरी १०० वीं पोस्ट , पर आप सादर आमंत्रित हैं

    **************

    ब्लॉग पर यह मेरी १००वीं प्रविष्टि है / अच्छा या बुरा , पहला शतक ! आपकी टिप्पणियों ने मेरा लगातार मार्गदर्शन तथा उत्साहवर्धन किया है /अपनी अब तक की " काव्य यात्रा " पर आपसे बेबाक प्रतिक्रिया की अपेक्षा करता हूँ / यदि मेरे प्रयास में कोई त्रुटियाँ हैं,तो उनसे भी अवश्य अवगत कराएं , आपका हर फैसला शिरोधार्य होगा . साभार - एस . एन . शुक्ल

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  3. आपके विचार जान कर ख़ुशी हुई ...रिश्ते मन से ही निभाने चाहिए ...तभी उन की अहमियत है ...समाज ने कुछ सोच समझ कर ही विवाह सम्बन्धी रिवाज बनाए हैं ...शादी करना इस लिए भी जरुरी हो जाता है कि इंसान सुरक्षित महसूस करता है , जिम्मेदारी महसूस करता है , और जैसे कि हम सबने सुना है ..चले भी आओ के दुनिया का कारोबार चले ...

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  4. aap ne har pahalu ko bahota ache se samajha or likha sayad isaliye ki aap yeka achi patni or bahota pyari maa hai .

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  5. दरअसल ये शादीब्‍याह फोकटि‍या लोगों के काम है यदि‍ कि‍सी की जि‍न्‍दगी मे कोई सार्थक लक्ष्‍य है तो शादी वादी छोड़ी जानी अनि‍वार्य है...जरूरी है जी

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  6. शादी अनिवार्य नहीं लेकिन एक ऐसा प्यार भरा बंधन है जिसको इसका सुख उठाने वाला ही महसूस कर सकता है. शादी बंधन नहीं आज़ादी है. इस बारे मैं विचार खुले दिल से करने कि आवश्यकता. ऐसे रिश्ते जिनके कोई नाम ना दिया जा सके उसका अंत हमेशा दुःख ही हुआ करता है.
    अपने जायज़ रिश्तों के प्रति वफादार रहिये

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  7. हर मनुष्य को - चाहे नारी हो या नर - यह अधिकार है कि वह अपने जीवन का निर्णय स्वयं ले | नारी ब्लॉग मैं भी पढ़ती हूँ | उनकी बात मुझे तो गलत बिल्कुल नहीं लग रही - जबरदस्ती क्यों ? यदि किसीको लगता है कि उसके लिए आवश्यक है - तो है | लगता है कि नहीं है - तो उसके लिए नहीं है | यह निश्चय एक का दूसरे पर थोपा नहीं जा सकता | रचना जी यह नहीं कह रही हैं कि कोई भी स्त्री शादी न करे | वे यह कह रही हैं कि - यह जबरदस्ती नहीं होनी चाहिए कि यदि न की तो स्त्री अधूरी है | मैं उनसे सहमत हूँ |

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  9. इस पोस्ट पर बहुत गंभीर विमर्श की आवश्यकता है।
    अंतिम पैरा मे आपके दिये निष्कर्ष से सहमत हूँ।

    सादर

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  10. बहुत अच्छा मुद्दा उठाया आपने... पूर्वाग्रह त्याग कर इस पर सभी को विचार करना चाहिए...

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  11. आप सभी का तहे दिल से शुक्रिया... कृपया यूंहीं समपर्क बनाये रखें। :)

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  12. मेरे संज्ञान में ऐसी बहुत सी महिलाएं हैं, जिन्‍होंने इस मिथक को तोडने का साहस दिखाया है।

    ------
    मिल गयी दूसरी धरती?
    घर जाने को सूर्पनखा जी, माँग रहा हूँ भिक्षा।

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  13. विचारों को मथने वाली पोस्ट. दुनिया में अधिकतर लोग शादी करते हैं. अधिकतर दुखी होने का नाटक करते हैं. कुछ दुखी होते हैं. जो शादी नहीं करते उनमें से कुछ ही सुखी होते हैं. बाकी सुखी होने का नाटक करते हैं. कुछ सुखी होने का दंभ भरते हैं.

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  14. @ विचारों को मथने वाली पोस्ट. दुनिया में अधिकतर लोग शादी करते हैं. अधिकतर दुखी होने का नाटक करते हैं. कुछ दुखी होते हैं. जो शादी नहीं करते उनमें से कुछ ही सुखी होते हैं. बाकी सुखी होने का नाटक करते हैं. कुछ सुखी होने का दंभ भरते हैं.

    sahmat hun Bhushan Ji se

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  15. अच्छा मुद्दा उठाया है आपने ........चिंतन करने योग्य

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  16. its about our upcoming publication pallaviji and our team find your words quite honest... right from your heart.

    we will sincerely consider your writing.

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  17. नारी को अपनी पहचान बनानी होगी । खुद शिक्षित होकर स्वयं को समाजोपयोगी बनाना होगा । विवाह एक बंधन है , गुलामी नहीं, यह बात वह अपनी सूझ-बूझ से बता सकती है।

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  18. --मोटे यानि बोल्ड अक्षरों में लिखी बातें विचारणीय थीं। कुछ सहमत, कुछ असहमत। मेरे खयाल से शादी एक व्यवस्था है और अनिवार्य रखना भी तो जबरदस्ती होगी। लक्ष्य तो संसार को बेहतर बनाने का है।

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  19. बहुत ही सुविचारित लेख. बधाई. अच्छा मुद्दा है. इस पर बात होनी चाहिए. इस लेख का उजला पक्ष यह है के आप ने नैतिकता का दमन नहीं छोड़ा, वरना आजकल कुछ महिलाएं ऐसे मुद्दों पर लिखते हुए दिशाहीनता की और चली जाती है.क्रान्ति के मूड में आ कर ऐसी बातें करने लगती हैं, जिससे समाज में अराजकता भी फ़ैल सकती है. आप का संतुलित आलेख सोचने पर विवश करता है, मगर नैतिक दायरे से बहार भी नहीं निकलता. मै भी कहता हूँ, कोई शादी करे न करे, यह उसकी अपनी निजता है. किसी पर दबाव नहीं डाला जा सकता है. मगर समाज के सुव्यवस्थित ढांचे के लिए विवाह -संस्था का बना रहना ज़रूरी है. कुछ लोग अकेले रहे, शादी-फदी न करे, मगर यह ध्यान रखें, की वे ऐसी हरकतें भी न करे, जिसको हम अनैतिक कहते हैं . अब कुछ लोग इसे अपनी स्वतन्त्रता भी कह सकते हैं. खैर,मुझे लगता है. विवाह करके समाज के बने बनाये ढाँचे के साथ सहयोग करने में कोइ बुराई नहीं है.

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  20. यहाँ हम कितनी ही बहस कर लें ..क्या उचित है क्या अनुचित ..जिसको जो पसंद हो वो करे ...किसी कि ज़िंदगी में बदलाव होने वाला नहीं ... यदि कुछ बदल सकते हैं तो खुद ही परिवर्तन लाएं ... सोच बदल रही है ..अंदाज़ बदल रहा है ...जो होगा अच्छा होगा ..जो हुआ अच्छा हुआ ... क्या होना चाहिए यह निर्णय नहीं किया जा सकता ... शादी से सब त्रस्त रहते हैं फिर भी हर साल खूब धूम धाम से लाखों शादियाँ होती हैं ...

    कुंडली आदि से ज्यादा ज़रुरी है मन का मिलना ...

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  21. और पुरुषों के?...दोनों को साथ लेकर चलना होगा कयोंकि विवाह स्त्री और पुरुष में ही होता है अब आज की बात और है कि समलैंगिक विवाह को भी कहीं-कहीं मान्यता मिल रही है पर हम उसे अपवाद ही कहेंगे

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  22. आपकी कुछ बातों से सहमत कुछ से नहीं.विवाह पवित्र बंधन है..बिलकुल पर तभी जब मन से निभाया जाये.जबर्दास्त्ती कोई भी बंधन पवित्र नहीं होता.
    जहाँ तक सामाजिक रिवाजों की बात है .उन्हें जब पूर्वजों ने बनाया वो उस वक्त के हिसाब से थे जरुरी नहीं आज के परिवेश में भी सही ही उतरें.ये बिछिये,चूड़ी,सिन्दूर ..जब उतारे जाते हैं न .या इन्हें जब उतारने को मजबूर किया जाता है औरत को.वो दृश्य देखिये कभी. कितना खौफनाक होता है.मुझे नही लगता कोई भी औचित्य है इस तरह के रिवाजों का.
    बाकी जिसको जो ठीक लगे, वह करे शादी करने वाले सुखी भी हैं दुखी भी.और बिना इस बंधन के भी लोग दुखी भी हैं सुखी भी.

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  23. स्त्री और पुरुष दोनों एक ही सिक्के के पहलु हैं. ईस भौतिक संसार में जीवन प्राप्त करने के लिए नर- और मादा दोनों का होना जरुरी हैं. चाहे वो इंसानों में हो या जानवरों में. इन्सान का दिमाग जानवरों से तेज कम करता हैं और पूर्ण विकसित दिमाग हैं. इसीलिए इंसानी समाज ने अपने जीवन को सही तरह से निर्वाह करने के लिए कुछ परम्पराए बनाई. अगर हमारे पूर्वजो ने रीती -रिवाज का निर्माण ना किया होता तो आज इंसानी रिस्तो को भी जानवरों के रिस्तो कि तरह ही देखा जाता.

    में ज्यादा नहीं लिख सकता मगर ये सबको पता हैं कि शादी के बाद स्त्री और पुरुष एक सामाजिक बंधन में बंध जाते हैं और बिना शादी के जानवरों का समाज ..... .. ..अपने तो देखा ही होगा.

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  24. पल्लवी
    नारी ब्लॉग बनाने का मतलब ही यही हैं की बात हो , आप ने की , शुक्रिया . जितने कमेन्ट आये सब तकरीबन यही मानते हैं की शादी का निर्णय सबका व्यक्तिगत होना चाहिये .
    और अगर सिंदूर , बिंदी चूडी , मंगल सूत्र महज आभूषण हैं तो फिर क़ोई भी स्त्री , अविवाहित , तलाक शुदा सब ही क्यूँ नहीं पहन सकती .
    पुरुष की महिमा को मंडित करते हैं ये आभूषण इसलिये विधवा को नहीं पहनने दिये जाते
    और बेरंगी कपड़े किसी की पति की मृत्यु के बाद क्यूँ , आप कहेगी स्त्री का मन ही नहीं करता मै कहती हूँ उसको कंडीशन किया जाता हैं .
    सोच कर देखिये दुबारा आप को ये सब पुरुष और शादी के विरोध नहीं लगेगा आप को ये सब व्यवस्था का विरोध लगेगा
    इसके अलावा मैने अपनी हर पोस्ट में लिख रखा हैं की मेरी पोस्ट कॉपी राईट में आती हैं और इसकें अंश कहीं भी डालने से पहले आप को मुझसे परमिशन लेनी होगी .
    आप से आग्रह हैं मेरी कविता के नीचे मेरा नाम और मेरी पोस्ट का लिंक दे . कॉपी राईट का उलेंघन ना करे

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  25. pallavi
    you are requested to please immediately put my name and link of my blog within your post or clearly mention my name and my blog name in a separate paragraph

    all my post are under copyright and i have also given the link of copy right rules to make people understand that before they refer they should give the credit to original author

    kindly do it in this post
    thanks

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  26. "नारी ब्लॉग" की सभी लेखकों से अनुरोध है कि वह उसको किसी तरह कि कोई चोरी ना समझे
    please note i am the only author there now its no more a community blog and its covered under copy right which u are violating because u have not taken prior permission as mentioned on blog and post and u have not even given the link

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  27. rachanaa jee ...सिर्फ आपके कहने से कोई पोस्ट कापी राईट नहीं होजाती ..आपके विचार भी अपने मूल नहीं होते समाज द्वारा/ समाज को आपको/आपने क्या दिया उसी से बनते हैं ..ब्लॉग एक खुला जगत है ...कोई भी किसी भी विचार के ऊपर टिप्पणी या पोस्ट लिख सकता है सिर्फ मैंने पढ़ा है सन्दर्भ देकर....

    ---पल्लवी जी .बधाई ..बहुत सुविचारित पोस्ट है..प्रत्येक सामाजिक विन्दु पर इसी प्रकार की बहुकोणीय सोच वाले स्त्री-पुरुष ही समाज/राष्ट्र व दुनिया की आवश्यकता हैं..एकांगी सोच वालों की नहीं... .सब कुछ यहाँ मानव मात्र को सदाचारी बनाने के लिए ही आयोजित किया जाता है|
    ---पुराकाल में विवाह बंधन से पूर्व समाज में अनियमितताएं व यौन रोगों के फ़ैलने के कारण समाज में विज्ञजनों द्वारा विवाह-संस्था का आविष्कार किया गया|
    ---अब आपकी इच्छा है कि नियमित जीवन बिताएं या अनियमित , कुंठाग्रष्ट ....परेशानियां तो हर सिस्टम में होती हैं अविवेकी, मूर्ख व लोभी-लालची मानवों के कारण....
    ----ज़िंदगी के बड़े बड़े लक्ष्य प्राप्त नर/नारियों को भी युवाकाल तक तो सब पूछते हैं यौवन ढल जाने पर कुत्तों की भांति जीवन होता है..कोई क्यों पूछे.?? ..जब तक कोई स्नेह-बंधन न हो.....

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  28. पल्लवी जी अच्छा मुद्दा लिए लेख है बधाई |
    आशा

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  29. Dr shayam gupt
    you should please read the indian copy right laws the link has been provided in my every post on naari blog and if you dont know then its here again http://copyright.gov.in/Documents/CopyrightRules1957.pdf

    I think all of us should be ethical and honest
    Tommorrow if this post is used else where then at least those people will know who is the original author
    my original poem has been put in here without refrence

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  30. प्रकृति को जीना कौन नहीं चाहता ... पर वक़्त , परिस्थिति का भी महत्व है... और उसके आगे ज़रूरी कुछ भी नहीं

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  31. ये कुछ ऐसे मुद्दे हैं जिनपर कुछ भी कहना मेरे लिए काफी कठिन हो जाता है..फिर भी बहुत बातों से सहमति है..

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  32. विवाह का बंधन दोनों के लिए महत्व रखता है चाहे स्त्री हो या पुरुष, फेरों के वक़्त भी दोनों के वचन एक से हुआ करते हैं। अब यह आप पर है कि आप उस रिश्ते को कितनी अहमियत दे पाते है और निभा पाते हैं। इस रिश्ते की जितनी ज़रूरत एक स्त्री को है उतनी ही एक पुरुष को भी है। क्यूंकि दोनों की ज़रूरतें भी एक जैसी ही होती है बस अपना -अपना देखने का नज़रिया है। very true, excellent

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  33. रचना जी आपके कहे अनुसार आपका नाम और आपके ब्लॉग का लिंक मैंने आपकी दोनों रचनाओं के नीचे लगा दिया है। लेकिन आपको बताना चाहूंगी कि मेरा आपको ठेस पहुंचाने का कोई उद्देश्य नहीं था, इसलिए मैंने अपने ब्लॉग के शुरुआत में आपके ब्लॉग का जिक्र BOLD LETTERS में किया है।

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  34. जी जानती हूँ और इसीलिये पहले कमेन्ट में अपनी राये दे दी
    ब्लॉग जगत में पता नहीं क्यूँ लोग नाम नहीं देना चाहते हैं
    बात आगे जाये तब ही अच्छा हैं और सही और नैतिक तरीके से
    ठेस की क़ोई बात नहीं हैं
    आप को सही लगे तो आप अपनी पोस्ट को कमेन्ट के रूप में वहाँ भी दे सकती हैं वैसे मैने लिंक कर दी हैं

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  35. Again here too I go with Shilpa ji's opinion.

    @Dr Shyam Guptaji,

    "अब आपकी इच्छा है कि नियमित जीवन बिताएं या अनियमित , कुंठाग्रष्ट ....परेशानियां तो हर सिस्टम में होती हैं अविवेकी, मूर्ख व लोभी-लालची मानवों के कारण....
    ज़िंदगी के बड़े बड़े लक्ष्य प्राप्त नर/नारियों को भी युवाकाल तक तो सब पूछते हैं यौवन ढल जाने पर कुत्तों की भांति जीवन होता है..कोई क्यों पूछे.?? ..जब तक कोई स्नेह-बंधन न हो....."


    Bahut hi ghatiya soch rakhte hain aap. Kisne kah diya aapko ki vivah na karne wale 'कुंठाग्रष्ट' jeevan bitate hain? Do you know Swami vivekananda, Mother Teresa etc.? Aur haan kuch purushon ka life shadi karne ke baad bhi kutte ki bhanti hoti hai, jinki aadat kai jagah muh marne ki hoti hai.


    rgds.

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  36. बहुत सही कहा है आपने इस आलेख में ...बेहतरीन लेखन ।

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  37. ---बात सामान्य नारी-पुरुषों की होती है जो सांसारिकता में जीते हैं .....विवेकानंद आदि की नहीं जो सिर्फ समाज के लिए जीते हैं...वैसे विवेकानंद आदि भी सिर्फ महापुरुष ही कहे जाएँगे...एक ध्येय के लिए जीवन व्यतीत करने वाले,वे सम्पूर्ण नहीं कहे जायेंगे.. भगवान के स्तर पर वे नहीं पहुँच सकते.... ...पूर्ण पुरुष-पूर्ण नारी बनना ही मानव जीवन का लक्ष्य है तभी वह मानव से ऊपर उठ सकता है आदर्श बन् सकता है ...
    ----आपका कौन सा भगवान या देवी जिसकी आप व सारा जग पूजा करता है, सर्वथा आदर्श मानता है .. अविवाहित है...सोचिये क्यों.....
    ---अपनी सोच को ज़रा विस्तार दीजिए ...संकुचित सोच है आपकी ...अभी विषद ज्ञान प्राप्त करिये , ज्ञान-दृष्टि को खोलिए...

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  38. रचना जी...वैसे लेखिका ने आपका नाम लिख दिया है ....परन्तु आपका ब्लॉग सार्वजनिक प्रदर्शन के हेतु है ....अतः आपकी कविता आदि का लेख में समीक्षा के उद्देश्य व टिप्पणी हेतु उद्धृत किया जाना गलत नहीं है ..क्योंकि लेखिका ने कहा है कि उसने किसी ब्लॉग पर पढ़ा है .एवं आपके नारी-ब्लॉग का ज़िक्र भी किया है ....

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  39. डॉ शाम गुप्ता जी,
    सर,मैं आपकी सभी उपरोक्त टिप्पणियों से सहमत हूँ। आपका बहुत-बहुत धन्यवाद की आपने मेरे उदेश को समझा और अपनी महत्वपूर्ण टिप्पणियों के द्वारा सभी को यह बताया की मैंने कुछ गलत नहीं किया है। आभार
    सादर
    पल्लवी

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  40. ये बहुत बड़ा मिथ्या भ्रम हैं की ब्लॉग का लेखन कॉपी राईट में नहीं आता हैं
    जिस ब्लॉग पर ब्लॉग लेखक ने कॉपी राईट लगा रखा और साथ में लिंक दे रखा हैं भारतीये कॉपी राईट कानून का उस ब्लॉग का कुछ भी लेने से पहले वहाँ से लिखित में पूछना जरुरी हैं .
    दूसरी बात ये जो ब्लॉग लेखक अपना आलेख अखबारों में छपने से बहुत ख़ुशी महसूस करते हैं कभी सोच कर देखे वो चोरी को बढ़ावा दे रहे हैं और इसके अलावा वो अखबार हजारो रुपया विज्ञापन से कमाता हैं लेकिन १०० - १५० रुपया लेखक को नहीं देसकता और फ्री में ब्लॉग का लेख चोरी से छपता हैं . नारी ब्लॉग के पाठक जानते हैं की हमने इसके खिलाफ निरंतर आवाज उठाई हैं
    अजीब बात हैं नारी ब्लॉग पर साफ़ लिखा हैं श्याम गुप्ता जी की मुझ से पूछ कर ही वहाँ की सामग्री कही दी जा सकती हैं चलिये पल्लवी जी ने दे दी क़ोई बात नहीं , कहने पर लिंक भी दे दिया , थैंक्स लेकिन सार्वजनिक का अर्थ ये नहीं हैं की आप मूल लेखक की बात ही ना करे .
    किताबे भी छपती हैं और मार्केट में बिकती हैं पर क़ोई कहीं भी सन्दर्भ देता हैं तो मूल लेखक का नाम देता ही हैं .

    और चलते चलते आप हनुमान भक्त तो हो ही नहीं सकते

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  41. लेख के पहले भाग को ही गंभीरता से पढ़ा हूँ। जिसमें कविता का एक अंश उठा कर बात कही गई है।

    किसी भी कविता को पूर्ण रूप से ही पढ़ना चाहिए। सिर्फ एक अंश उठाकर समग्र व्याख्या नहीं हो पाती। कविता मुझे अच्छी लगी है और अपने आप में पूर्ण है।

    समाज के ठेकेदारों ने विवाह को विवाह रहने ही कहाँ दिया..? ऐसे विवाह न हों तो भी धरती में कोई भूचाल नहीं आ जायेगा। शंकर से वर्ण शंकर अधिक भले लगते हैं अब तो।

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  42. Maa Kali is one of the few Goddesses in the Hindu religion who have never married and have renounced all the worldly and marital pleasures.

    Ganesha's marital status, the subject of considerable scholarly review, varies widely in mythological stories.[107] One pattern of myths identifies Ganesha as an unmarried brahmacari

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  43. देवेन्द्र पाण्डेय said... किसी भी कविता को पूर्ण रूप से ही पढ़ना चाहिए। सिर्फ एक अंश उठाकर समग्र व्याख्या नहीं हो पाती। कविता मुझे अच्छी लगी है और अपने आप में पूर्ण है।
    Thank you very much and this is the sole reason why links should be given and proper names should be given

    i hope NOW pallavi will forgive me for insisting on copy right

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  44. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी की गई है!
    यदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।

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  45. आपने नारीवाद या पुरुषवाद के नजरिये से ऊपर उठकर मुद्दे की तह तक जाने की जो कोशिश की है वह लाजवाब है और आप उसमें कामयाब भी हुई हैं |

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  46. यदि आप को प्रेमचन्द की कहानियाँ पसन्द हैं तो यह ब्लॉग आप के ही लिये है |

    यदि यह प्रयास अच्छा लगे तो कृपया फालोअर बनकर उत्साहवर्धन करें तथा अपनी बहुमूल्य राय से अवगत करायें |

    http://premchand-sahitya.blogspot.com/

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  47. अंतहीन बहसों के भंवर में एक और विचारोत्तेजक लेख

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  48. अपना आलेख अखबारों में छपने के खिलाफ कथित आवाज उठाने वाले खुद उन कतरनों को इकट्ठा कर पोस्ट में दिखलाते हैं और उस पर मिली बधाई, खुशी बटोरते हैं

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  49. जी पाब्ला जी ने सही कहा हैं लेकिन जो गलती कर के सुधार कर ले वो गलती कर के ना सुधारने वालो से बेहतर होते हैं .
    जिस दिन से गलती का अहसास हो जाए और हम उस दिन से अपने को बदल ले तो समझिये हम जग गए
    कम से कम हम हम अपने ब्लॉग पर विज्ञापन लगा कर लोगो के जन्म दिन और शादी के दिन की बधाई दे कर उन की कमाई तो नहीं ही खाते हैं

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  50. सुधर चुकों को शुभकामनाएं

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  51. आप सभी पाठकों से अनुरोध है कि आप मेरे लेख से संबन्धित कुछ विचार प्रस्तुत करना चाहते हैं तो आपका हार्दिक स्वागत है। कृपया उपरोक्त टिप्पणियॉ को लेकर कोई और टिप्पणी न करें। धन्यवाद॥

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  52. " कहने का तात्पर्य यह है कि शायद अपना -अपना नज़रिया है क्यूंकि जिस बात को जितना ज्यादा नकारात्मक तरीके से देखा जाएगा, वह बात उतनी ही नकारात्मक लगेगी और किसी भी चीज़ के अच्छे परिणाम यदि देखने हों तो उसके लिए सकारात्म सोच रखना भी ज़रूरी है "- nice thought.Human must think positive.Thanks

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  53. अति उत्तम !
    विवाह एक पवित्र बंधन है परन्तु वर्तमान समय में तो विवाह की परिभाषा ही बदल गयी है|

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  54. aapki is post ka jawaab main aapko mail par dunga... yahan tippani ke roop mein itna hi kahna chahunga ki post ki abhivyakti umda hai... lekhan shaili aur saral shabdon ka upyog achha hai...

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  55. vivah aur aurat par har koi bolna chahta hai kintu
    asal duvidha ka karn koi nahin pahchanta; apne bahut achchha lihka hai...

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  56. बहुत संजीदा विषय लिया आपने...

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