जाने क्यूँ कुछ भी लिखने जाती हूँ, तो मुझे अपनी ही पोस्ट का सही शीर्षक समझ नहीं आता कि आखिर मैं अपनी पोस्ट को क्या नाम दूँ, जो लिखना चाहती हूँ उस विषय में भी तरह-तरह के ख़्याल आते है और कभी-कभी उन ख़्यालों में, मैं खुद ही उलझ कर रह जाती हूँ। समझ ही नहीं आता है कहाँ से शुरू करूँ, आज का विषय भी कुछ ऐसा ही है। हालांकि आप को लग रहा होगा कि आज कल मेरी हर पोस्ट की शुरुआत ज्यादातर इन्हीं लाइनों से हो रही है। मगर क्या करूँ खैर आखिर कहाँ जा रहे है हम.... क्या चाहते हैं प्रकर्ति से, जो हम अपनी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए प्रकर्ति की अनमोल देन पेड़ों को खत्म करने में लगे हुये हैं। क्या मिल जायेगा हमको बड़ी-बड़ी इमारतें बनाकर जब उन इमारतों में रहने वाले इंसान साँस ही ना ले सकेंगे।
खैर आज कल जब भी मैं कभी कोई समाचार पत्र पढ़ने बैठती हूँ, तो रह-रह हर मन में यही ख़्याल आता है। कि यदि ऐसा ही चलता रहा तो क्या मानव जीवन किसी भी सूरत में सुरक्षित रह पायेगा? हम अपना घर बनाने के लिए दूसरों का घर छीन रहे है। क्या यह सही है ? इतना मतलबी और ख़ुदग़र्ज हो गया है मानव, कहाँ चली गई है वो इंसानियत, जो फर्क दिखाया करती थी, एक इंसान में और एक जानवर में, कहते है इंसान जानवर से ज्यादा क़ाबिल है। क्यूँकि उसके पास दिमाग के साथ-साथ दिल भी है। जिसमें अन्य लोगों के प्रति प्रेम है। अच्छे बुरे और सही गलत के फेर को समझने की क्षमता है। तो कहाँ खो गई है, आज वो क्षमता। कहाँ खो गया है वो दिल जिसमें दूसरों के दर्द को समझने की ताकत और समझ हुआ करती थी।
आज जहां देखो एक ही तरह की खबर पढ़ने को मिल रही है , एक समाचार आम होता हुआ सा मालूम होता है। जंगली जानवरों का अपने घरों में से बाहर आना अर्थात जंगल से निकाल कर शहर में आना।
यह आज की तारीख में बहुत आम बात हो गई है क्यूँ ? ऐसी क्या मजबूरी है, उन मासूम जानवरों की, जिसके चलते उन्हें अपना इलाक़ा छोड़ कर शहर की और रुख करना पड़ रहा है। इस विषय में यदि गंभीरता से सोचो तो केवल एक ही बात दिमाग में आती है। वो यह कि उनका घर हम ही तो छीन रहे है। तो वो बेचारे और कहाँ जायेंगे। जिस तरह तेज़ी से पेड़ों के काटने का काम जारी है। उससे लगातार जंगलों का कम होना स्वाभाविक है, जिसके कारण भविष्य में बहुत जल्द आम आदमी को इस समस्या से गुज़रना होगा। प्रकर्ति हमेशा आने वाले हादसों के प्रति संकेत देती हैं मगर शायद हम ही उन संकेतों को समझ नहीं पाते या फिर समझना ही नहीं चाहते ऐसा करके प्रकर्ति भी शायद आने वाली आपदा का संकेत दे रही है जिसकी शुरुआत लगभग हो चुकी है। क्या इस तरह से जानवरों का जंगल छोड़ कर बाहर आना ही कोई संकेत दे रहा है आने वाले खतरे का ? बहुत दिनों पहले भी एक बार समाचार सुनने और पढ़ने में आया था, आपने भी पढ़ा , सुना और देखा भी होगा टीवी पर फ़िल्म अभिनेत्री हेमामलिनी जी के घर में तेंदुआ घुस गया था। जिसने किसी की जान माल को कोई नुक़सान नहीं पहुंचाया था और उस दौरान हेमा मालिनी जी भी अपने घर से बाहर किसी दूसरे देश में गई हुई थी।
खैर ऐसा ही एक क़िस्सा भोपाल में भी सुनने में आया है भोपाल शहर स्थित "केरवाँ डैम" के आस पास के इलाक़े में आज कल एक बाघ का खौफ़ मंडरा रहा है। जिससे वहाँ के आस पास के ग्रामीण निवासी बहुत चिंतित और परेशान हैं। आज की तारीख में वह बाघ कुल मिलाकर 15 से भी अधिक जानवरों का शिकार कर चुका है। लेकिन वन विभाग के कर्मचारी अब भी उस बाघ को पकड़ने में नाकामयाब हैं। सच समझ नहीं आता कहाँ जा रहे हैं हम....... आज जब एक जानवर में प्यार और वफ़ादारी की भावना अब भी बाक़ी है। वहाँ हम इंसान शायद अपने अस्तित्व को खुद ही मिटा देने पर आमादा है। क़िस्सा है एक बार का एक आदमी जो कि मालिक था एक गाय और कुछ बकरियों का अपनी साइकिल पर सवाल होकर वापस आपने घर को आ रहा था। जैसे ही वो अपने घर में आया और आकर आराम करने बैठा ही था कि अचानक एक तेंदुए ने उसकी एक बकरी पर हमला बोल दिया। बकरी की आवाज सुन जैसे ही मालिक बकरी की और बढ़ा तेंदुए ने मालिक को अपनी और आता देख मालिक पर हमला बोल दिया। फिर क्या था पास ही बंधी हुई गाय ने जब अपने मालिक के साथ यह सब होते देखा उसने अपनी पूरी ताकत लगा कर रस्सी तोड़ी और उस तेंदुए से जा भिड़ी और देखते ही देखते अपने सिघों के माध्यम से एक बार ऐसी जोरदार पटकनी दी उस तेंदुए को, की वो वहाँ से भाग खड़ा हुआ। इस तरह उस सीधे-सादे माने जाने वाले जानवर ने अपनी जान पर खेल कर अपने मालिक से वफ़ादारी का सबूत दिया।
हम आज ना तो जंगल के प्राणियों को ही बख़्श रहे हैं और ना ही इस सीधे–सादे बहूपयोगी जानवर को ही आज कितने ख़ुदग़र्ज और मतलबी हो गए हैं हम, कि अपने मतलब के लिए ही जानवर को बड़े प्यार दुलार से पालते पोसते हैं और फिर उसी जानवर को बड़ी बेरहमी से मार कर या तो खा जाते है, या बेच देते है। इतना ही नहीं इस इंसान नामक हैवान की हैवानियत के बारे में जितना कहा जाये वो भी कम है। आज मनुष्य तरह-तरह की बीमारियों से घिरा रहता है! हर किसी को कोई न कोई बीमारी रहती है! हम लोग यह समझते हैं कि ये सब आज के भाग दौड़ से भरा जीवन, बढ़ता प्रदूषण, काम का टेंशन आदि के कारण होता है! लेकिन इसी वातावरण में बहुत से जानवर, पक्षी और कीट वग़ैरा रहते हैं! क्या आपने उन्हें कभी बीमार पड़ते देखा है नहीं देखा होगा! तो फिर मनुष्य क्यों बीमार पड़ जाता है! इसका कारण है कि कि हम वो आहार खाते हैं जो प्रकर्ति ने हमारे लिए बनाया ही नहीं है! मनुष्य को छोड़कर बाक़ी जीव इसलिए बीमार नहीं पड़ते क्योंकि वो वही आहार खाते हैं जो प्रकर्ति ने उनके लिए बनाया है और हम, अपने जीवन में वक्त के अभाव के कारण या फिर कुछ हद तक फ़ैशन के कारण और शायद कुछ हद तक आलस के कारण भी जो मिलता है, जैसा मिलता है खा लिया करते हैं। नतीजा तरह-तरह की नित नई बीमारियों से ग्रसित होना। जिनका पहले कभी दूर-दूर तक नाम भी नहीं सुना था। प्रकर्ति के नियमों से यदि यूंही हम खिलवाड़ करते रहेंगे तो नतीजा यही होगा ना।
मुझ में न तो यह हिम्मत थी और ना है, कि मैं यह हेवानियत का खेल देख सकूँ।
http://www.youtube.com/watch?v=6lPydQxTun0
उपरोक्त लिंक को देखने के बाद अब आप ही बताइये जानवर कहलाने लायक कौन है। सचमुच के जानवर या हम इंसान ? इस विषय पर पहले भी मैंने एक लेख लिखा था। गो माता की हत्या पर शीर्षक था "गौ माता पर होता अत्याचार" तब मुझे एक सज्जन ने एक लिंक दिया था की मैं वो पढ़ूँ और फिर इस बात पर अफ़सोस ना करूँ, मगर उस लेख में, जिसका लिंक मुझे दिया गया था। यह बताया गया था कि जिन पशुओं को संक्रामक रोग हैं उनका काटा जाना ही उचित है जबकि मेरे लेख का मुख्य उदेश्य कुछ और ही था। खैर उस विषय पर फिर कभी बात होगी।
अंत में बस इतना ही कहना चाहूँगी कि चाहे जानवर हों या पेड़ पौधे दोनों ही हमारे लिए प्रकर्ति की देन हैं। जिनका हमको ख़्याल रखना चाहिए। क्योंकि प्रकर्ति का संतुलन बनाए रखने के लिये सभी का बराबर मात्रा में होना ज़रूरी है। यदि किसी एक का भी क्रम ज्यादा बढ़ा तो मुश्किलें होनी ही है और नतीजा यह हो सकता है कि या तो जानवर नहीं बचेंगे या फिर इंसान। इंसानियत का खात्मा तो लगभग होना शुरू हो ही चुका है। इसलिए प्रकर्ति का संतुलन बनाए रखने में ही समझदारी है। जिसका पहला कदम होगा व्रक्षारोपण अर्थात पेड़ लगाना जिससे ना सिर्फ जानवरों को उनका घर वापस मिलेगा। बल्कि मौसम संबंधी आपदाओं से भी राहत मिल सकती है। ज़रा सोचिए .... जय हिन्द
इसी तरह का कुछ एक और विडियो मैंने बहुत पहले देखा था...वो काफी दर्दनाक था...
ReplyDeleteएक लिंक दे रहा हूँ...मेरी दोस्त स्तुति ने एक बार लिखा था की उसकी सहेली का प्यार उसके कुत्ते के लिए...
वैसे आजकल आप अच्छे अच्छे विषयों पर लिख रही हैं और लिखने की फ्रीक्वेंसी भी कितनी बढ़ गयी है, पहले के मुकाबले :)
मैं तो यह सोच रही हूँ कि अगर सारे लोग शाकाहारी ही हों तो क्या बुराई है ......इंसानों में इतनी संवेदना तो होनी ही चाहिए
ReplyDeleteआजकल बहुत तेज़ी में हो :) पर बढ़िया लिख रही हो.
ReplyDeletein sabka jad hamari jansankhya hai, ham jab tak iss vishal jan samuh ko chhota karne ki koshish nahi karenge..aise hi eco system prabhavit hoga, aise hi koi bagh ya koi aur janwar hamare gharo me ghus aayega..!!
ReplyDeleteek aisee post jo sach me ye bata payee hai ki kuchh to sochna hoga..!
विचारणीय मुद्दा...
ReplyDeleteइंसान अक्सर जानवरों से भी बदतर हो जाता है. विचार करने योग्य लेख है.
ReplyDeleteआज इंसान में इंसानियत कहाँ रही है...बहुत विचारणीय प्रश्न उठाती सुन्दर पोस्ट..
ReplyDeletesamvendasheel vicharniya aalekh ke liye aabhar!
ReplyDeletehaan mujhe meri beti ne bhopal ke baare mein bataya .... wah NLIU mein padhti hai ....
ReplyDeleteaapne is post ke madhyam se kaafi sare tarksangat prashn uthaye hain
Kitna zalim hai insaan?
ReplyDelete------
मायावी मामा?
रूमानी जज्बों का सागर है प्रतिभा की दुनिया।
विचारणीय पोस्ट , ऑंखें खोलने में सक्षम आपका आभार ....
ReplyDeleteचिन्ता बहुत हद तक जायज है। लोग सोचना शुरू करें तो कुछ हो।
ReplyDeleteपौराणिक कहानियों में कहते हैं, राक्षस हमें मार कर खा जाते थे ....
ReplyDeleteक्या हम इन मासूम जीवों के लिए राक्षस नहीं हैं ?
यह उलझन एक सच्चे मन के रचनाकार के लिए आम है - आप काफी संवेदित होकर लिखतीं हैं - यह मैंने कई लेखों में देखा है जो हमेशा आपके ब्लाग के शीर्षक को निरुपित भी करता है - मेरी शुभकामनाएं - हाँ वर्तनी पर अवश्य ध्यान दें
ReplyDeleteसादर
श्यामल सुमन
09955373288
http://www.manoramsuman. blogspot.com
http://meraayeena.blogspot. com/
http://maithilbhooshan. blogspot.com/
सही कहा आपने , मानव जीवन की रक्षा के लिए वन्य जीवन और प्रकृति को बचाए रखना अत्यंत आवश्यक है ।
ReplyDeleteजहाँ तक मांसाहार की बात है , शायद यह भी प्रकृति अनुसार एक बायो कंट्रोल है । यदि सभी शाकाहारी हो जाएँ तो पृथ्वी पर खाना कम पड़ जायेगा । लेकिन जानवरों पर अत्याचार नहीं होना चाहिए ।
वैसे हम स्वयं शाकाहारी हैं ।
आप ने हमारे ब्लॉग पर आकर अपने विचार व्यक्त किये उसके लिए धन्यवाद !!
ReplyDeleteइंसान जब अपने स्वार्थ के लिए अपने ही भाई बंधुओं को क़त्ल करने में नहीं हिचकिचाता तो इन बेजुबानो की क्या कहें ...
हम केवल दिखावे के चक्कर में प्रकृति के साथ जो गन्दा मजाक कर रहे है , हमें विनाश की ही ओर ले जा रहा है |
बहुत ही विचारणीय लेख !
धन्यवाद
देखकर दिल दहल गया।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और विचारणीय प्रस्तुति!
ReplyDeleteराम-राम!
प्रिय बिटिया, आपके द्वारा दिए लिंक को देखा. इतना दर्दनाक है कि दुनिया बनाने वाले को निर्दयी कहना पड़ेगा. आपकी ये पंक्तियाँ अपने आप में संपूर्ण हैं- "कहाँ खो गया है वो दिल जिसमें दूसरों के दर्द को समझने की ताकत और समझ हुआ करती थी।"
ReplyDeleteआपके लेखन ने गति पकड़ी है और पठन-पाठन ने भी. आपने लेखन शैली भी विकसित कर ली है. बहुत अच्छा लग रहा है. शुभकामनाओं सहित-
भारत भूषण
बहुत ही बढ़िया लिखा है आपने पल्लवी....जो सोचने को विवश करता है....मगर आदमी ने सोचना छोड़ दिया है....वह बस करता है.....और वो भी अपनी मनमानी....!!
ReplyDeleteप्रिय पल्लवी, बड़े ही मन से लिखा गया है यह लेख. आज इंसान हैवान हो गया है. स्वाद के चक्कर में उसने अपने आपको बहुत ही नीचे गिरा लिया है. जंगल कट रहे है, वहां इंसान अतिक्रमण कर रहा है, इसलिए अब जंगली पशु शहर की और चले आ रहे है. गाय के साथ भी मनुष्य ने बड़े अत्याचार किये हैं जिस गाय को माँ कहा जाता है, उसके साथ बर्बर व्यवहार किया जाता है. इस वेदना को मैंने अपने प्रकाश्य उपन्यास ''एक गाय की आत्मकथा' में व्यक्त किया है. हम लोग लिखते है इस विशवास के साथ की कुछ जागरण हो, हलचल मचे, उम्मीद है असर होगा. धीरे-धीरे, मगर होगा. बहरहाल इस सोच के लिए साधुवाद.
ReplyDeleteमन अजीब सा हो गया देख कर....बहुत चिन्तनपरक आलेख.....अच्छा चिन्तन दिया...
ReplyDeleteNice .
ReplyDeleteसही कहा आपने , मानव जीवन की रक्षा के लिए वन्य जीवन और प्रकृति को बचाए रखना अत्यंत आवश्यक है ।
जहाँ तक मांसाहार की बात है , शायद यह भी प्रकृति अनुसार एक बायो कंट्रोल है । यदि सभी शाकाहारी हो जाएँ तो पृथ्वी पर खाना कम पड़ जायेगा । लेकिन जानवरों पर अत्याचार नहीं होना चाहिए ।
वैसे हम स्वयं लगभग शाकाहारी हैं ।
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ये इश्क़ मुआ जगाता क्यों है ?
ये पंक्तियां डा. मृदुला हर्षवर्धन जी के इस सवाल के जवाब में
अब सो जाऊँ या जागती रहूँ ?
वर्तमान दशा का सटीक आकलन....
ReplyDeleteइंसान जब तक अपने आप को श्रेष्ठ समझता रहेगा दूसरों का दमन करता रहेगा ... हमारी राज करने और अपने आप को ही ठीक मानने की प्रवृति प्राकृतिक असंतुलन पैदा कर रही है ...
ReplyDeleteआपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है.
ReplyDeleteकृपया पधारें
चर्चामंच-645,चर्चाकार- दिलबाग विर्क
"हम आज ना तो जंगल के प्राणियों को ही बख़्श रहे हैं और ना ही इस सीधे–सादे बहूपयोगी जानवर को ही आज कितने ख़ुदग़र्ज और मतलबी हो गए हैं हम, कि अपने मतलब के लिए ही जानवर को बड़े प्यार दुलार से पालते पोसते हैं और फिर उसी जानवर को बड़ी बेरहमी से मार कर या तो खा जाते है, या बेच देते है।"
ReplyDeleteयह पंक्तियाँ ही बहुत कुछ कह देती हैं।
कल 23/09/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
ufff aapka diya huaa link dekh kar royen khade hogaye .haevaniyat ki had hai.
ReplyDeleterachana
सचमुच हृदयविदारक !!
ReplyDeleteदेखते-देखते जानवर तो जानवर ही रह गया, और इन्सान तो सबसे बड़ा जानवर बन गया !!
NICE ,,,
ReplyDeleteAap ka diya link dekh kar maan kharab ho gya .sab logo ko shakahari ho jana chahiye.
पर्यावरण सचेत पोस्ट .प्राणि मात्र के प्रति करुणा से आप्लावित .पर्यावरण संरक्षण के लिए सह -अस्तित्व और संतुलन ज़रूरी .
ReplyDeleteohh, sach mei mujh se to ye link dekhi bhi nahi gai, mai humesha se hi ye saB KHANE KE KHILAF RAHI HU par kfc walo ki darandigi asehniye hai
ReplyDeleteबहुत ही शानदार सार्थक आलेख. भोपाल में हम बी उस कालियासोत बाँध के कुछ पास ही रहते भैन जहाँ बाघ आया करता था. अब वह जंगल में लौट गया है. मैं आपके विडियो को देखना नहीं चाहता क्योंकि अप्रेल माह में ही एक बार में ३००० ऐसी मुर्गियों को कटते देख आया हूँ.
ReplyDeleteहकीकत बयां की है आपने ...आपने इस पोस्ट के माध्यम से ...बेहतरीन लेखन के लिये आभार ।
ReplyDeleteaankhen kholti si prastuti...aabhar
ReplyDeleteआप सभी पाठकों और दोस्तों का तहे दिल से शुक्रिया.... कृपया यूँहीं समपर्क बनाये रखें.... धन्यवाद :)
ReplyDeleteपल्लवी जी नमस्कार ......बहुत बढ़िया आलेख है ....सही जगह प्रकाश डालता हुआ ...
ReplyDeleteमैंने एक मेल भेजा है .....आशा है मिला होगा ....उम्मीद है शीघ्र मुलाकात होगी ....
.मासूम जानवरों पर होने वाले अत्याचार के मुद्दे को उठाती सार्थक पोस्ट ... मैंने लिंक नहीं देखा ..क्यों कि शायद देख नहीं पाती ... बहुत अच्छा लिखा है .
ReplyDelete@ संगीता आंटी, कोई बात नहीं आप यहाँ आईं और आपने अपनी महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया से मुझे अनुग्रहित किया उसके लिए आपका तहे दिल से शुक्रिया... :)
ReplyDeleteआप सभी पाठकों का तहे दिल से शुक्रिया ....
ReplyDeleteआपकी बात सही है। परन्तु पहाड़ी लोग तो प्रकृति के संरक्षण में सर्वोच्च योगदान देते हैं। तो क्या खूंखार जानवरों को नेशनल कार्बेट या राजा जी पार्क से खदेड़ कर स्वछन्द हो कर उन रिहायशी इलाकों में छोड़ दिया जाना चाहिए जहां लोगों का निवास है। प्रकृति को तहस-नहस करवानेवाले तो शहरों में आराम से हैं और झेलना पड़ता है दूर-दराज के निर्दोष लोगों को। ऐसे लोगों को जिन्हें प्रकृति को संरक्षित करने के लिए न कभी कोई रॉयल्टी मिली उलटे उन्हें प्रकृति के भक्षकों की ओर से गुलदार सौंप दिए गए हैं उनकी जान लेने के लिए। कभी पहाड़ के बारे में पढ़ेंगे तो जान जाएंगे कि सबसे ज्यादा संघर्ष वहां की नारियां ही करती हैं।
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